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जबलपुर की 'धन्नो' ने जीती 20 किमी लंबी रेस, 12 घोड़ों को पछाड़ खिताब किया अपने नाम - asnimal news

जबलपुर में घोड़ों की रेस का आयोजन किया गया. जिसमें दुबली पतली सी घोड़ी लाली ने रेस जीतकर सबका मन मोह लिया.

'धन्नो'
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Published : Aug 19, 2019, 12:06 AM IST

जबलपुर। फिल्म शोले में आपने बसंती की धन्नो को दौड़ते हुए कई बार देखा होगा, लेकिन जबलपुर में तांगों के बीच मुकाबला कराया गया. जिसमें लाली नाम की घोड़ी ने ये खिताब अपने नाम किया. 20 किलोमीटर दूरी के दौड़ वाले इस आयोजन में शहर के कई तांगे वालों ने अपने घोड़े-घोड़ियों के साथ रेस में भाग लिया था.

'धन्नो' ने जीती 20 किमी लंबी रेस

पेट्रोल-डीजल से चलने वाली गाड़ियों के जमाने में घोड़ागाड़ी की रेस अपने आप में लोगों को आकर्षकित करने वाला खेल है. जबलपुर में पिछले 37 सालों से इस रेस का आयोजन होता रहा है. यह 20 किलोमीटर की रेस बेहद कठिन होती है. कड़ी धूप में घोड़े घोड़ियों को दौड़ाया गया. रेस में कई घोड़ों ने हार मान ली तो कुछ थक गए, लेकिन लाली ने इन सब के विपरीत बिना रुके सबको पछाड़ दिया.

घोड़ी लाली के मालिक का कहना है कि वह रोजाना घोड़ी को ट्रेनिंग देता है. साथ ही उसके खानपान का भी खासा ध्यान रखते हैं. उसे काजू, बादाम, मुनक्का और चना खिलाते हैं. इस रेस के दौरान कई घोड़े दौड़ते दौड़ते गिर गए और कई जख्मी हो गए. कई घोड़ों को सांस लेने में परेशानी होने लगी तो कई के मुंह से खून आने लगा. रेस को लोगों ने काफी एंजॉय किया, लेकिन इस तरह की रेस कहीं न कहीं जानवरों पर अत्याचार को भी बढ़ावा देता है.

जबलपुर। फिल्म शोले में आपने बसंती की धन्नो को दौड़ते हुए कई बार देखा होगा, लेकिन जबलपुर में तांगों के बीच मुकाबला कराया गया. जिसमें लाली नाम की घोड़ी ने ये खिताब अपने नाम किया. 20 किलोमीटर दूरी के दौड़ वाले इस आयोजन में शहर के कई तांगे वालों ने अपने घोड़े-घोड़ियों के साथ रेस में भाग लिया था.

'धन्नो' ने जीती 20 किमी लंबी रेस

पेट्रोल-डीजल से चलने वाली गाड़ियों के जमाने में घोड़ागाड़ी की रेस अपने आप में लोगों को आकर्षकित करने वाला खेल है. जबलपुर में पिछले 37 सालों से इस रेस का आयोजन होता रहा है. यह 20 किलोमीटर की रेस बेहद कठिन होती है. कड़ी धूप में घोड़े घोड़ियों को दौड़ाया गया. रेस में कई घोड़ों ने हार मान ली तो कुछ थक गए, लेकिन लाली ने इन सब के विपरीत बिना रुके सबको पछाड़ दिया.

घोड़ी लाली के मालिक का कहना है कि वह रोजाना घोड़ी को ट्रेनिंग देता है. साथ ही उसके खानपान का भी खासा ध्यान रखते हैं. उसे काजू, बादाम, मुनक्का और चना खिलाते हैं. इस रेस के दौरान कई घोड़े दौड़ते दौड़ते गिर गए और कई जख्मी हो गए. कई घोड़ों को सांस लेने में परेशानी होने लगी तो कई के मुंह से खून आने लगा. रेस को लोगों ने काफी एंजॉय किया, लेकिन इस तरह की रेस कहीं न कहीं जानवरों पर अत्याचार को भी बढ़ावा देता है.

Intro:लाली ने जीती 20 किलोमीटर लंबी दौड़ बिना रुके अपने तांगे को लेकर भागी लाली जबलपुर मैं आज भी होता है घोड़ा तांगा दौड़ का आयोजन


Body:जबलपुर लोगों को भ्रम है की घोड़े तेज दौड़ते हैं शोले फिल्म में भी बसंती की धन्नो गब्बर के घोड़ो तेज दौड़ी थी आज जबलपुर की लाली ने भी यह सिद्ध कर दिया कि घोड़ियां घोड़ों से तेज दौड़ती हैं

जानवरों की दौड़ को जानवरों पर अत्याचार मारने की वजह से कई जगह बंद कर दी गई लेकिन जबलपुर में घोड़े तांगे की एक रेस का आयोजन बीते 37 सालों से लगातार हो रहा है आज हुई इस रेस मैं 12 दावेदारों ने हिस्सा लिया पहले इस रेस में 50 से ज्यादा घोड़े तांगे होते थे लेकिन अब डीजल इंजन के जमाने में घोड़े तांगे धीरे-धीरे खत्म हो गए शौकिया तौर पर तांगा रखने वाले कुछ लोगों ने इस रेस में हिस्सा लिया कटंगी से आई दुबली पतली घोड़ी ने सभी घोड़ों को पछाड़ दिया और रेस जीत ली हाला की रेस बहुत कठिन थी लगभग 20 किलोमीटर तक भरी धूप में घोड़े घोड़ियों को दौड़ाया गया कुछ घोड़ों ने तो बीच में ही हार मान ली लेकिन लाली ने बिना रुके एक ही चाल में चलते हुए यह रेस जीत ली लाली को पालने वाले का कहना है कि वह इस घोड़ी को अपनी बच्ची के जैसे पालते हैं और दूध बादाम के साथ अच्छी से अच्छी खुराक उसे खिलाते हैं और दौड़ने की भी वह प्रैक्टिस करती है

रेस का एक दूसरा भी पहलू है दौड़ते दौड़ते दो घोड़े गिर गए और जख्मी हुए वही 20 किलोमीटर लंबी दूरी दौड़ने में घोड़ों को सांस लेने में समस्या होने लगी और उनके मुंह से खून आने लगा लेकिन रेस जीतने के चक्कर में लोग इन्हें दौड़ते रहे शायद इन्हीं वजहों से पशु पक्षियों की दौड़ की परंपराएं सरकार ने कम करवाए हैं

आयोजकों का कहना है कि लोगों को कम से कम 1 दिन डीजल पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की बजाएं बैटरी से चलने वाले वाहनों का और घोड़े गाड़ियों का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि प्रदूषण कम हो और प्रकृति और परंपरा को बचाया जा सके


Conclusion:हालांकि घोड़ों की दौड़ एक रोचक मामला होता है यदि इसे थोड़ा व्यवस्थित और छोटा कर दिया जाए तो पशुओं पर अत्याचार भी नहीं होगा और यह पर्यटन का एक अच्छा जरिया हो सकता है
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