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विधानसभा चुनाव की वजह से जबलपुर में बर्बाद हुई हरे मटर की खेती, नहीं आए प्रवासी मजदूर, खेतों में ही सूख गई फसल

Pea trade affected in Jabalpur: जबलपुर में विधानसभा चुनाव हरे मटर की खेती की बर्बादी का कारण बन गया. चुनाव के चलते प्रवासी मजदूर काम पर नहीं आए. नतीजा यह हुआ कि खेतों में ही मटर सूख गया.

Pea trade affected in Jabalpur
जबलपुर में मटर का व्यापार प्रभावित
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 19, 2023, 2:16 PM IST

जबलपुर में बर्बाद हुई हरे मटर की खेती

जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर में चुनाव की वजह से मटर की फसल बर्बाद हो गई है. किसानों का कहना है कि चुनाव की वजह से प्रवासी मजदूर काम करने के लिए नहीं आए, इसका फायदा स्थानीय मजदूरों ने उठाया. मौके पर मजदूर नहीं मिलने की वजह से फसल सूख गई. वहीं, दूसरी तरफ बाजार में दाम कम हो गए. किसानों का कहना है कि ''इस साल मटर की फसल में लागत तक नहीं निकल पा रही है.'' बता दें कि जबलपुर के आसपास बड़े पैमाने पर हरे मटर की खेती की जाती है.

मटर का प्रोसेसिंग प्लांट लगाने का वादा अधूरा: हरे मटर की खेती जबलपुर के लिए यह एक राजनीतिक मुद्दा भी रहा है. यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि जबलपुर में मटर का प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जाएगा. हालांकि चुनावी दावा सही नहीं हुआ. एक बार फिर किसानों की फसल बर्बाद हो गई है. सुनाचार गांव के युवा किसान नीलेश पटेल का कहना है कि ''उन्होंने 30 एकड़ में हरे मटर की खेती की है, वे हर साल यह खेती करते हैं. मटर की खेती में यदि आपको अच्छा भाव चाहिए तो बरसात खत्म होते ही तुरंत मटर की बोनी करनी पड़ती है. जितनी जल्दी बोनी होती है उतने ही जल्दी फसल आती है.''

Pea trade affected in Jabalpur
जबलपुर में खेतों में सूख गई मटर की फसल

खेतों में सूख गया मटर: हरे मटर की फसल 60 दिनों में तुड़ाई लायक हो जाती है. नीलेश पटेल ने भी अपने खेत में जल्दी बोनी की और उनकी फसल भी जल्दी आ गई. लेकिन इसी बीच में मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव आ गए. इसके चलते जबलपुर में मटर तुड़ाई के लिए आने वाले प्रवासी मजदूर नहीं आए और स्थानीय मजदूर इतने अधिक नहीं है कि उनसे पूरी मटर की तुड़ाई हो सके. इसके चलते मटर की तुड़ाई होने के पहले ही वह खेतों में ही सूखने लगी.

किसानों को घाटा: मझौली के किसान सौरव राजपूत का कहना है कि ''उन्होंने भी 20 एकड़ में मटर की खेती की थी लेकिन उन्हें भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. इन दिनों जो मटर ₹60 से लेकर ₹90 किलो तक बिकता था वह ₹20 किलो से ₹30 किलो बिक रहा है. इस कीमत में मटर की लागत पूरी नहीं हो पा रही है.'' किसानों ने बताया कि ''मटर की 1 एकड़ खेती करने में लगभग डेढ़ क्विंटल बीज लगता है. मटर का बीज लगभग ₹15000 प्रति एकड़ लगता है. मटर के खेत में ट्रैक्टर खाद और दवाई का खर्चा लगभग ₹5000 आता है. इस तरीके से फसल तैयार करने में लगभग ₹20000 का खर्च आ जाता है. इसके बाद फसल की तुड़ाई होती है जो सामान्य तौर पर ₹3 किलो चलती थी. लेकिन इस साल मजदूर काम होने की वजह से 6 से ₹10 लग रही है. ऐसी स्थिति में किसानों की लागत खड़ी नहीं हो पा रही है. फसल इसलिए तोड़ रहे हैं ताकि गेहूं लगाया जा सके.''

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मटर का व्यापार प्रभावित: मटर के व्यापारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि ''मटर का ज्यादातर कच्चे का व्यापार कहलाता है. मतलब इसमें ज्यादातर पैसे का लेन देन नगद में होता है. लेकिन चुनाव आयोग के नियमों की वजह से नगद लाने ले जाने में समस्या हो रही थी. इसके चलते मटर का व्यापार प्रभावित हुआ और व्यापारी भी पर्याप्त संख्या में जबलपुर नहीं पहुंचे, इसलिए दाम कम हो गए.'' वहीं कुछ किसानों का कहना है कि ''इस मौसम में जैसी ठंड पढ़नी चाहिए थी वैसी ठंड नहीं पड़ी इसकी वजह से मटर की फसल प्रभावित हो गई.''

जबलपुर में बर्बाद हुई हरे मटर की खेती

जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर में चुनाव की वजह से मटर की फसल बर्बाद हो गई है. किसानों का कहना है कि चुनाव की वजह से प्रवासी मजदूर काम करने के लिए नहीं आए, इसका फायदा स्थानीय मजदूरों ने उठाया. मौके पर मजदूर नहीं मिलने की वजह से फसल सूख गई. वहीं, दूसरी तरफ बाजार में दाम कम हो गए. किसानों का कहना है कि ''इस साल मटर की फसल में लागत तक नहीं निकल पा रही है.'' बता दें कि जबलपुर के आसपास बड़े पैमाने पर हरे मटर की खेती की जाती है.

मटर का प्रोसेसिंग प्लांट लगाने का वादा अधूरा: हरे मटर की खेती जबलपुर के लिए यह एक राजनीतिक मुद्दा भी रहा है. यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि जबलपुर में मटर का प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जाएगा. हालांकि चुनावी दावा सही नहीं हुआ. एक बार फिर किसानों की फसल बर्बाद हो गई है. सुनाचार गांव के युवा किसान नीलेश पटेल का कहना है कि ''उन्होंने 30 एकड़ में हरे मटर की खेती की है, वे हर साल यह खेती करते हैं. मटर की खेती में यदि आपको अच्छा भाव चाहिए तो बरसात खत्म होते ही तुरंत मटर की बोनी करनी पड़ती है. जितनी जल्दी बोनी होती है उतने ही जल्दी फसल आती है.''

Pea trade affected in Jabalpur
जबलपुर में खेतों में सूख गई मटर की फसल

खेतों में सूख गया मटर: हरे मटर की फसल 60 दिनों में तुड़ाई लायक हो जाती है. नीलेश पटेल ने भी अपने खेत में जल्दी बोनी की और उनकी फसल भी जल्दी आ गई. लेकिन इसी बीच में मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव आ गए. इसके चलते जबलपुर में मटर तुड़ाई के लिए आने वाले प्रवासी मजदूर नहीं आए और स्थानीय मजदूर इतने अधिक नहीं है कि उनसे पूरी मटर की तुड़ाई हो सके. इसके चलते मटर की तुड़ाई होने के पहले ही वह खेतों में ही सूखने लगी.

किसानों को घाटा: मझौली के किसान सौरव राजपूत का कहना है कि ''उन्होंने भी 20 एकड़ में मटर की खेती की थी लेकिन उन्हें भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. इन दिनों जो मटर ₹60 से लेकर ₹90 किलो तक बिकता था वह ₹20 किलो से ₹30 किलो बिक रहा है. इस कीमत में मटर की लागत पूरी नहीं हो पा रही है.'' किसानों ने बताया कि ''मटर की 1 एकड़ खेती करने में लगभग डेढ़ क्विंटल बीज लगता है. मटर का बीज लगभग ₹15000 प्रति एकड़ लगता है. मटर के खेत में ट्रैक्टर खाद और दवाई का खर्चा लगभग ₹5000 आता है. इस तरीके से फसल तैयार करने में लगभग ₹20000 का खर्च आ जाता है. इसके बाद फसल की तुड़ाई होती है जो सामान्य तौर पर ₹3 किलो चलती थी. लेकिन इस साल मजदूर काम होने की वजह से 6 से ₹10 लग रही है. ऐसी स्थिति में किसानों की लागत खड़ी नहीं हो पा रही है. फसल इसलिए तोड़ रहे हैं ताकि गेहूं लगाया जा सके.''

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