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मौत के मुंह से मासूम को खींच लाए धरती के 'भगवान', दुर्लभ बीमारी से ग्रसित था 20 दिन का बच्चा

जबलपुर के नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने कमाल कर दिया. मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने मिलकर 20 दिन के बच्चे को नया जीवन दिया है. इस बच्चे को दुर्लभ बीमारी (Inguinal Diaphragmatic Hernia) थी. जिसका इलाज प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों ने भी करने से मना कर दिया था, लेकिन मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों की टीम ने इलाज कर बच्चे को ठीक कर दिया.

Doctors did successful treatment
डॉक्टरों ने किया सफल इलाज
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Published : Jul 10, 2021, 3:09 AM IST

Updated : Jul 10, 2021, 9:19 AM IST

जबलपुर। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों ने एक नवजात शिशु का जटिल ऑपेरशन करके उसे नया जीवनदान दिया. आर्मी में सेवाएं देने वाले सतना निवासी जवान की पत्नी ने करीब 20 दिन पहले एक बच्चे को जन्म दिया था. उन्हें पता चला कि नवजात बच्चे को कंजेनिटल डायफ्रेगमेटिक हर्निया (Inguinal Diaphragmatic Hernia) नामक दुर्लभ बीमारी है. जिसमें जन्म के समय से ही शिशु की आंतें, फेफड़े और ह्रदय अपने तय स्थान से दूसरी जगह शिफ्ट हो जाते हैं. इसके कारण बच्चा ना तो ठीक से सांस ले पाता है और ही दूध पी पाता है. डॉक्टरों ने बच्चे का इलाज कर उसे नया जिवनदान दिया.

parent standing with child
बच्चे को लेकर खड़े उसके माता-पिता
  • बेहद खर्चिला है बिमारी का इलाज

इस बीमारी का इलाज प्राइवेट हॉस्पिटल्स में बेहद खर्चीला है. इसमें रिस्क भी बहुत होती है. जबलपुर के मेडिकल अस्पताल के पीडियाट्रिक्स सर्जन डॉ. विकेश अग्रवाल और उनकी टीम ने इस बीमारी का इलाज करते हुए 20 दिन के बच्चे के शरीर के अंगों को सही जगह पर स्थापित किया. धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर्स की टीम ने करीब 2 घंटे तक दूरबीन सर्जरी की और सफल आपरेशन किया.

सरकारी डॉक्टरों का कमालः रेयरेस्ट ऑफ द रेयर बीमारी का 6 दिन में किया इलाज

  • बच्चे को कई निजी अस्पतालों में ले गए थे माता-पिता

बच्चे के माता-पिता बच्चे का इलाज करवाने के लिए कई निजी अस्पताल के चक्कर काटे. जहां डॉक्टर्स ने 3 लाख रुपए से ज्यादा का खर्च बताया. इसके बाद भी बच्चे के सफल ऑपेरशन की जिम्मेदारी नहीं ली. इसके बाद जब बच्चे को मेडिकल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. विकेश अग्रवाल के पास लाया, तो उन्होंने बच्चे का इलाज करने का निर्णय लिया. टीम बनाकर 2 दिनों तक बच्चे के टेस्ट करवाए. उसे सर्जरी के लिए शारीरिक तौर पर तैयार किया. फिर डॉक्टर्स ने ऑपेरशन कर बच्चे को नया जीवन दिया.

  • बहुत मुश्किल था ऑपरेशन

डॉ. अग्रवाल का कहना है कि इस तरह के ऑपेरशन किसी चुनौती से कम नहीं होते. क्योंकि बच्चे के शरीर में ऑपेरशन के उपकरण डालने के लिए जगह नहीं थी. लेकिन 3 मिलीमीटर के उपकरण के माध्यम से सभी अंगों को सही जगह पर स्थापित करना और फिर वे वहीं स्थिर रहें इसके लिए डायफ्राम को सेट करना बेहद मुश्किल होता है.

जबलपुर। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों ने एक नवजात शिशु का जटिल ऑपेरशन करके उसे नया जीवनदान दिया. आर्मी में सेवाएं देने वाले सतना निवासी जवान की पत्नी ने करीब 20 दिन पहले एक बच्चे को जन्म दिया था. उन्हें पता चला कि नवजात बच्चे को कंजेनिटल डायफ्रेगमेटिक हर्निया (Inguinal Diaphragmatic Hernia) नामक दुर्लभ बीमारी है. जिसमें जन्म के समय से ही शिशु की आंतें, फेफड़े और ह्रदय अपने तय स्थान से दूसरी जगह शिफ्ट हो जाते हैं. इसके कारण बच्चा ना तो ठीक से सांस ले पाता है और ही दूध पी पाता है. डॉक्टरों ने बच्चे का इलाज कर उसे नया जिवनदान दिया.

parent standing with child
बच्चे को लेकर खड़े उसके माता-पिता
  • बेहद खर्चिला है बिमारी का इलाज

इस बीमारी का इलाज प्राइवेट हॉस्पिटल्स में बेहद खर्चीला है. इसमें रिस्क भी बहुत होती है. जबलपुर के मेडिकल अस्पताल के पीडियाट्रिक्स सर्जन डॉ. विकेश अग्रवाल और उनकी टीम ने इस बीमारी का इलाज करते हुए 20 दिन के बच्चे के शरीर के अंगों को सही जगह पर स्थापित किया. धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर्स की टीम ने करीब 2 घंटे तक दूरबीन सर्जरी की और सफल आपरेशन किया.

सरकारी डॉक्टरों का कमालः रेयरेस्ट ऑफ द रेयर बीमारी का 6 दिन में किया इलाज

  • बच्चे को कई निजी अस्पतालों में ले गए थे माता-पिता

बच्चे के माता-पिता बच्चे का इलाज करवाने के लिए कई निजी अस्पताल के चक्कर काटे. जहां डॉक्टर्स ने 3 लाख रुपए से ज्यादा का खर्च बताया. इसके बाद भी बच्चे के सफल ऑपेरशन की जिम्मेदारी नहीं ली. इसके बाद जब बच्चे को मेडिकल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. विकेश अग्रवाल के पास लाया, तो उन्होंने बच्चे का इलाज करने का निर्णय लिया. टीम बनाकर 2 दिनों तक बच्चे के टेस्ट करवाए. उसे सर्जरी के लिए शारीरिक तौर पर तैयार किया. फिर डॉक्टर्स ने ऑपेरशन कर बच्चे को नया जीवन दिया.

  • बहुत मुश्किल था ऑपरेशन

डॉ. अग्रवाल का कहना है कि इस तरह के ऑपेरशन किसी चुनौती से कम नहीं होते. क्योंकि बच्चे के शरीर में ऑपेरशन के उपकरण डालने के लिए जगह नहीं थी. लेकिन 3 मिलीमीटर के उपकरण के माध्यम से सभी अंगों को सही जगह पर स्थापित करना और फिर वे वहीं स्थिर रहें इसके लिए डायफ्राम को सेट करना बेहद मुश्किल होता है.

Last Updated : Jul 10, 2021, 9:19 AM IST
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