जबलपुर। 2018 के विधानसभा चुनाव (MP Assembly Election) में कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक (Master Stroke) जय किसान कर्ज माफी योजना (Jai Kisan Loan Waiver Scheme) थी, जिसके दम पर करीब 15 साल बाद कांग्रेस मध्यप्रदेश (MP Congress) की सत्ता पर काबिज हुई थी, लेकिन आपसी खींचतान के चलते ये सरकार 15 महीने में ही धराशाई हो गई. हालांकि, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने वादा किया था कि सरकार बनी तो दस दिन में किसानों का कर्ज माफ करेंगे, नहीं तो मुख्यमंत्री को ही बदल देंगे, राहुल के इसी भरोसे पर जनता ने अपनी मुहर लगाई थी. सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री बने कमलनाथ ने ऐसा किया भी और जय किसान कर्ज माफी योजना धरातल पर उतरी.
कमलनाथ की अधूरी कर्ज माफी
इस योजना के तहत किसानों के ₹200000 तक के कृषि ऋण माफ करने की रणनीति बनाई गई और बैंकों के बाहर जिन किसानों के कर्ज माफ होने थे, उनकी लिस्ट लगाई गई. मध्यप्रदेश में 3500000 किसानों के कर्ज माफ होने थे. जाहिर सी बात है कि सरकार के पास इतना पैसा नहीं था, लिहाजा कुछ हजार किसानों का ही कर्ज माफ किया जा सका. सरकार ने वादा किया कि धीरे धीरे कई चरणों में कर्ज माफ किए जाएंगे, इससे किसानों की उम्मीद जग गई और किसानों ने बैंक का कर्ज वापस करना बंद कर दिया. इस दौरान कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में सरकार ने किसानों को कर्ज माफी के प्रमाण पत्र (Jai Kisan Loan Waiver Scheme Certificate) भी बांटे, जिन पर बैंक अधिकारियों के भी दस्तखत थे.
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कर्जमाफी के बाद डिफाल्टर किसान?
पिछली सरकार की यही कर्जमाफी योजना अब किसानों के गले की फांस बन गई है क्योंकि एमपी में कमलनाथ (KamalNath Government) की जगह अब शिवराज सरकार (Shivraj Government) है. शिवराज सरकार इस योजना के बारे में अपने पत्ते नहीं खोल रही है, जिसके चलते लाखों किसान आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. जबलपुर के जरोद गांव के किसान केशव पटेल 5 एकड़ रकबे में खेती करते हैं, उनकी मां कृष्णाबाई के नाम पर 2018 में करीब ₹70000 रुपए कर्ज था, जिसे उन्होंने कोऑपरेटिव बैंक से लिया था. इसका उपयोग उन्होंने धान की फसल में किया था. सरकारी योजना के तहत उन्हें कोऑपरेटिव बैंक (Cooperative Bank) की ओर से कर्ज माफी का प्रमाण पत्र दे दिया गया, जिसमें यह स्पष्ट लिखा था कि उनका कर्ज माफ कर दिया गया है, लेकिन अब केशव के ऊपर कोऑपरेटिव बैंक के अधिकारी दबाव बना रहे हैं कि वह अपना पुराना कर्जा जमा करें और उन्हें बैंक ने डिफाल्टर सूची (Bank Defaulter List) में भी डाल दिया है. कुछ किसान ऐसे भी हैं, जिनका नाम लिस्ट में है, लेकिन उनका कर्ज माफ नहीं हुआ है और जब भी अपनी फसल बेचने गए तो बैंक ने कर्ज की किस्त काट ली.
कर्जमाफी किसानों का हक: अग्रवाल
भारत कृषक समाज के संरक्षक केके अग्रवाल (KK Agrwal) ने बताया कि "उन्होंने अपने संगठन के सैकड़ों किसानों से इस बाबत जानकारी ली तो लोगों ने बताया कि उनके पास भी ऐसे सर्टिफिकेट हैं, जिनमें कमलनाथ का फोटो लगा हुआ है और कर्ज माफी का सर्टिफिकेशन किया गया है, लेकिन बैंक उन्हें डिफाल्टर (Bank Defaulter List) मान चुका है, जिसके चलते 2018 के बाद से लाखों किसानों को बैंक से नया कर्ज नहीं मिला है." अग्रवाल का कहना है कि कर्जमाफी किसानों का हक था क्योंकि किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य सरकार की वजह से ही नहीं मिल पा रहा है, इसलिए उनका कर्जमाफ करना जरूरी था. शिवराज सरकार के आने के बाद कर्जमाफी की स्पष्ट नीति नहीं होने की वजह से किसान बर्बाद है, अब किसानों से बैंक अधिकारी साहूकार जैसा बर्ताव कर रहे हैं, नए कर्ज नहीं मिलने से किसानों की फसलें बर्बाद हो रही हैं, खेती के नए संसाधन नहीं मिल पा रहे हैं और ग्रामीण भारत की स्थिति बिगड़ने लगी है, किसान संगठनों का कहना है कि इस मुद्दे को लेकर वह कोर्ट जाएंगे.
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कर्जमाफी पर खामोश शिवराज सरकार!
जबलपुर के कई दूरदराज इलाकों के अलावा रायसेन नरसिंहपुर मंडला जिले के किसानों ने भी अपनी ऐसी समस्या से जूझने का दावा किया है, इन किसानों का कहना है कि राज्य सरकार को इस मुद्दे पर अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिए या तो वह कर्जमाफी (Jai Kisan Loan Waiver Scheme) के लिए मना ही कर दे या फिर कर्जमाफी (Jai Kisan Karj Mafi) की रणनीति स्पष्ट करे, ताकि किसानों के लिए बैंक के दरवाजे खुल सकें.
2023 में सरकार में आए तो फिर करेंगे कर्जमाफी
इस मामले में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही यह मानने को तैयार नहीं है कि उनकी नीतियों के चलते किसान कर्जदार हो रहे हैं. कांग्रेस का कहना है कि 2023 में फिर से वे सरकार में आएंगे और कर्जमाफी करेंगे. हालांकि किसानों का आरोप है कि वो कांग्रेस सरकार की वादाखिलाफी के चलते ही कर्जदार हुए हैं. कांग्रेस का दावा है कि 55 लाख किसानों में से 27 लाख का कर्ज माफ कर दिया गया है, अब बीजेपी सरकार को बचे हुए किसानों का कर्जा माफ करना चाहिए.
बीजेपी करे बचे हुए किसानों की कर्जमाफी
पूर्व मंत्री पीसी शर्मा (PC Sharma) का कहना है कि "यह सतत प्रक्रिया होती है कि एक सरकार के निर्णय को दूसरी सरकार आगे बढ़ाती है. उसी प्रक्रिया के तहत अब बीजेपी को किसानों का कर्ज माफ करना चाहिए. जो किसानों के लिए खर्च होना था वह बीजेपी ने विधायकों की खरीद-फरोख्त में खर्च कर दिए. एक-एक विधायक को 35 35 करोड़ में खरीदा गया है"
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किसानों को आत्मनिर्भर बनाएगी बीजेपी
इस मामले में बीजेपी का तर्क अलग है. प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग (Vishwas Sarang) का कहना है कि "बीजेपी ने कभी किसानों की कर्जमाफी की बात ही नहीं की, बीजेपी किसानों को आत्मनिर्भर बना रही है. बीजेपी की सरकार किसानों को 0% ब्याज पर ऋण देती है, किसान 1 लाख का लोन लेता है और उसे 90 हजार रुपए ही वापस करना होते हैं. खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए राज्य सरकार लगातार योजनाएं चला रही है."
विपक्ष में रहकर बीजेपी ने उठाए थे सवाल
जब बीजेपी विपक्ष में थी तो कर्जमाफी को लेकर तत्कालीन सरकार को घेरते हुए नजर आती थी. बीजेपी आरोप लगाती थी 2 लाख रुपए की कर्जमाफी का वादा करके किसानों का 25% कर्ज भी माफ नहीं हुआ. बीजेपी का आरोप था कि कभी नीला, कभी पीला और कभी हरा फॉर्म देकर किसानों को बेवकूफ बनाया गया. हालांकि विधानसभा में पूछे गए प्रश्न का जवाब देते हुए सरकार ने बताया था कि एक साल में 27 लाख किसानों का कर्जा माफ किया गया.