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एक शिक्षक जो 'भगवान' बन गया, 21 देशों में बैन थी ओशो की एंट्री, अमेरिका ने उठाया था कड़ा कदम

शिक्षक ओशो रजनीश को उनके शिष्य भगवान का दर्जा देते थे. विद्रोही स्वभाव की वजह से जबलपुर से शुरू हुई ओशो की यात्रा अमेरिका तक पहुंची. इसी स्वभाव की वजह से अमेरिका सहित दुनिया के 21 देशों ने इस शिक्षक पर रोक लगा दी थी.

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ओशो
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Published : Sep 7, 2021, 3:08 PM IST

जबलपुर। सोशल मीडिया पर ओशो रजनीश (Osho Rajneesh) के कई कोटेशन आपने देखे होंगे. यह उनके के छोटे-छोटे सूत्र थे, जिन्हें ओशो लोगों को समझाया करते थे. उस जमाने में तो ओशो को भारत के लोग नहीं समझ पाए, लेकिन रजनीश की मौत के लगभग 30 साल बाद इन कोटेशंस का महत्व इन लोगों की समझ में आ रहा है.

अमेरिका तक पहुंची थी ओशो की यात्रा.

कौन था ओशो रजनीश
मध्य प्रदेश के रायसेन (Raisen) जिले के कुचबड़ा गांव के एक व्यापारी जैन परिवार में रजनीश का जन्म हुआ था. बचपन में इनका नाम चंद्र मोहन जैन (Chandra Mohan Jain) था. शुरुआती शिक्षा गाडरवारा में हुई. इसके बाद रजनीश जबलपुर (Osho Rajneesh Jabalpur) आ गए. रजनीश को गहनता से पढ़ने वाले जबलपुर के शिक्षक नितिन वर्मा बताते हैं कि रजनीश दरअसल एक विद्रोही थे. जबलपुर में दर्शनशास्त्र (Philosophy) की पढ़ाई के दौरान उन्होंने अपने ही शिक्षक को चुनौती दे दी और उन्हें अपने तर्कों से हरा दिया.

ओशो ने सभी धर्मों के धर्मगुरुओं को दी थी चुनौती
1960 और 70 के दौर में रजनीश हिंदू (Hindu), मुस्लिम (Muslims) और जैन लगभग सभी धर्मों के लोगों को चुनौती देते हुए नजर आते थे. उस जमाने में धार्मिक साधु संतों के खिलाफ बोलना किसी विद्रोह से कम नहीं था. इसके बाद रजनीश रॉबर्टसन कॉलेज (Roberson College) में दर्शनशास्त्र के शिक्षक हो गए, लेकिन उनका विद्रोही स्वभाव और दर्शनशास्त्र को समझने की उनकी समझ बहुत दिनों तक उन्हें इस पद पर रोक नहीं पाई.

ओशो ने जला दीं थीं अपनी हीं डिग्रियां
ऐसा बताते हैं कि रजनीश ने इसी रॉबर्टसन कॉलेज में उन तमाम डिग्रियों को जला दिया था, जो सालों की मेहनत के बाद उन्होंने यहां से पाई थीं. इसके बाद वे जबलपुर से मुंबई चले गए. यहां रजनीश के विद्रोही विचारों का बड़ा सम्मान हुआ. धीरे-धीरे 70 से 80 के दशक में रजनीश ओशो बन चुके थे. दुनिया भर के उनके अनुयायी ओशो (Osho Follower) का सक्रिय ध्यान योग करने के लिए मुंबई (Mumbai) आने लगे. इन्हीं अनुयायियों के कहने पर ओशो ने अमेरिका जाना स्वीकार किया.

अमेरिका में बसाया था रजनीशपुरम नाम का शहर
अमेरिका (America) के ऑर्गन नाम की जगह पर लगभग 36000 एकड़ में जबलपुर के इस शिक्षक ने रजनीशपुरम (Rajneeshpuram) नाम का एक शहर बसाया. दुनिया का सबसे कम समय में सबसे तेजी से विकसित होने वाले इस शहर में एक एयरपोर्ट था, जिसमें ओशो के खुद के प्राइवेट जेट (Private Jet) थे. दरअसल, ओशो जिस सन्यास की बात कर रहे थे, वह दुनिया के अब तक किसी भी धर्म, मजहब, संप्रदाय या विचार में सुनाया और समझाया नहीं गया था.

अमेरिका सरकार ने ओशो पर कराये थे मुकदमे
ओशो ने लोगों को रूढ़िवादी तरीके (Traditional Method) से निकलकर तर्क के संसार में उतारा था. बहुत कम समय में योग और ध्यान के जरिए उल्लास मनाते हुए न सिर्फ आनंद पाने का रास्ता बताया, बल्कि उसके प्रयोग भी किए. यह वह दौर था जब दुनिया के विकसित देशों मे भौतिकता चरम पर थी. अमेरिका के बहुत सारे धनाढ्य ओशो के साथ जुड़ने लगे. इसकी वजह से अमेरिका की सरकार को रजनीश को रोकना पड़ा और उन पर फर्जी मुकदमे दर्ज करवाए गए.

अमेरिका ने 21 देशों में बैन कर दिये थे ओशो
अमेरिका सरकार (America Government) के दबाव में पहले तो उन्हें अमेरिका से निकाला गया. बाद में दुनिया के 21 देशों में यह हिदायत जारी की गई कि उन्हें अपने देश में न रुकने दिया जाए. निर्वाचन के समय ओशो रजनीश नेपाल में रहे. हालांकि बाद में वे सरकारों से लड़ने की बजाय भारत के पुणे में आकर रहने लगे. ओशो अंतिम समय तक पुणे (Pune) में ही रहे. ओशो अकेले ऐसे दार्शनिक थे, जिन्होंने मरने के पहले अपने अनुयायियों से कह दिया था कि मेरी मृत्यु का उत्सव मनाना.

संभोग से समाधि की ओर से बदनाम हुए ओशो
ओशो रजनीश गजब के पढ़ाकू थे. स्कूल और कॉलेज के दिनों में जबलपुर की शायद ही कोई ऐसी लाइब्रेरी थी, जिसमें ओशो रजनीश ने पूरे-पूरे दिन पढ़ाई न की हो. वे दिन भर या तो पुस्तक की दुकानों पर पाए जाते थे या फिर लाइब्रेरी में. धर्मों की पुस्तकों के अलावा उन्होंने विज्ञान, समाजशास्त्र और दर्शन शास्त्र की पुस्तकें भी पढ़ीं. इन पर प्रवचन दिए. उन्हीं के प्रवचन (Osho Pravachan) ट्रांसक्रिप्ट बनाकर बहुत सारी पुस्तकें लिखी गईं. इनमें कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब, बाइबल, मीरा के दोहे, कबीर का जीवन, बौद्ध भिक्षुओं का जीवन और कई इस्लाम के संतों पर उन्होंने प्रवचन दिए.

संभोग से समाधि की ओर पुस्तक से हुए थे अधिक बदनाम
हिंदू धर्म की सबसे बड़ी पुस्तक गीता पर उन्होंने जो लिखा है, गीता को समझने का वैसा नजरिया किसी और लेखक का नहीं मिला. ओशो जिस पुस्तक की वजह से सबसे ज्यादा बदनाम हुए, उसका नाम था- संभोग से समाधि की ओर. इस पुस्तक की वजह से उन्हें दुनिया में सेक्स गुरु (Sex Guru Osho) का दर्जा भी मिला. ओशो को करीब से पढ़ने वाले लोगों का कहना है कि ओशो के साहित्य में जीवन के तमाम पहलुओं में से यह पुस्तक भी एक है. ऐसा नहीं है कि ओशो सिर्फ सेक्स पर ही बोलते रहे.

आचार्य रजनीश ओशो का जबलपुर से था गहरा नाता, अब यादों से ज्यादा कुछ शेष नहीं

दुनिया में कई बड़े दार्शनिक हुए हैं, लेकिन ओशो रजनीश एक ऐसे दार्शनिक थे जिन्हें धर्म में नहीं बांधा जा सकता, जो देश में नहीं बांधे गए. यदि उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं, तो समय भी उन्हें नहीं बांध पाया. ओशो ने जीवन जीने के जो सूत्र दिए थे, आज भी दुनिया भर में उन सूत्रों पर अमल करके लोग सुख और शांति पा रहे हैं.

जबलपुर। सोशल मीडिया पर ओशो रजनीश (Osho Rajneesh) के कई कोटेशन आपने देखे होंगे. यह उनके के छोटे-छोटे सूत्र थे, जिन्हें ओशो लोगों को समझाया करते थे. उस जमाने में तो ओशो को भारत के लोग नहीं समझ पाए, लेकिन रजनीश की मौत के लगभग 30 साल बाद इन कोटेशंस का महत्व इन लोगों की समझ में आ रहा है.

अमेरिका तक पहुंची थी ओशो की यात्रा.

कौन था ओशो रजनीश
मध्य प्रदेश के रायसेन (Raisen) जिले के कुचबड़ा गांव के एक व्यापारी जैन परिवार में रजनीश का जन्म हुआ था. बचपन में इनका नाम चंद्र मोहन जैन (Chandra Mohan Jain) था. शुरुआती शिक्षा गाडरवारा में हुई. इसके बाद रजनीश जबलपुर (Osho Rajneesh Jabalpur) आ गए. रजनीश को गहनता से पढ़ने वाले जबलपुर के शिक्षक नितिन वर्मा बताते हैं कि रजनीश दरअसल एक विद्रोही थे. जबलपुर में दर्शनशास्त्र (Philosophy) की पढ़ाई के दौरान उन्होंने अपने ही शिक्षक को चुनौती दे दी और उन्हें अपने तर्कों से हरा दिया.

ओशो ने सभी धर्मों के धर्मगुरुओं को दी थी चुनौती
1960 और 70 के दौर में रजनीश हिंदू (Hindu), मुस्लिम (Muslims) और जैन लगभग सभी धर्मों के लोगों को चुनौती देते हुए नजर आते थे. उस जमाने में धार्मिक साधु संतों के खिलाफ बोलना किसी विद्रोह से कम नहीं था. इसके बाद रजनीश रॉबर्टसन कॉलेज (Roberson College) में दर्शनशास्त्र के शिक्षक हो गए, लेकिन उनका विद्रोही स्वभाव और दर्शनशास्त्र को समझने की उनकी समझ बहुत दिनों तक उन्हें इस पद पर रोक नहीं पाई.

ओशो ने जला दीं थीं अपनी हीं डिग्रियां
ऐसा बताते हैं कि रजनीश ने इसी रॉबर्टसन कॉलेज में उन तमाम डिग्रियों को जला दिया था, जो सालों की मेहनत के बाद उन्होंने यहां से पाई थीं. इसके बाद वे जबलपुर से मुंबई चले गए. यहां रजनीश के विद्रोही विचारों का बड़ा सम्मान हुआ. धीरे-धीरे 70 से 80 के दशक में रजनीश ओशो बन चुके थे. दुनिया भर के उनके अनुयायी ओशो (Osho Follower) का सक्रिय ध्यान योग करने के लिए मुंबई (Mumbai) आने लगे. इन्हीं अनुयायियों के कहने पर ओशो ने अमेरिका जाना स्वीकार किया.

अमेरिका में बसाया था रजनीशपुरम नाम का शहर
अमेरिका (America) के ऑर्गन नाम की जगह पर लगभग 36000 एकड़ में जबलपुर के इस शिक्षक ने रजनीशपुरम (Rajneeshpuram) नाम का एक शहर बसाया. दुनिया का सबसे कम समय में सबसे तेजी से विकसित होने वाले इस शहर में एक एयरपोर्ट था, जिसमें ओशो के खुद के प्राइवेट जेट (Private Jet) थे. दरअसल, ओशो जिस सन्यास की बात कर रहे थे, वह दुनिया के अब तक किसी भी धर्म, मजहब, संप्रदाय या विचार में सुनाया और समझाया नहीं गया था.

अमेरिका सरकार ने ओशो पर कराये थे मुकदमे
ओशो ने लोगों को रूढ़िवादी तरीके (Traditional Method) से निकलकर तर्क के संसार में उतारा था. बहुत कम समय में योग और ध्यान के जरिए उल्लास मनाते हुए न सिर्फ आनंद पाने का रास्ता बताया, बल्कि उसके प्रयोग भी किए. यह वह दौर था जब दुनिया के विकसित देशों मे भौतिकता चरम पर थी. अमेरिका के बहुत सारे धनाढ्य ओशो के साथ जुड़ने लगे. इसकी वजह से अमेरिका की सरकार को रजनीश को रोकना पड़ा और उन पर फर्जी मुकदमे दर्ज करवाए गए.

अमेरिका ने 21 देशों में बैन कर दिये थे ओशो
अमेरिका सरकार (America Government) के दबाव में पहले तो उन्हें अमेरिका से निकाला गया. बाद में दुनिया के 21 देशों में यह हिदायत जारी की गई कि उन्हें अपने देश में न रुकने दिया जाए. निर्वाचन के समय ओशो रजनीश नेपाल में रहे. हालांकि बाद में वे सरकारों से लड़ने की बजाय भारत के पुणे में आकर रहने लगे. ओशो अंतिम समय तक पुणे (Pune) में ही रहे. ओशो अकेले ऐसे दार्शनिक थे, जिन्होंने मरने के पहले अपने अनुयायियों से कह दिया था कि मेरी मृत्यु का उत्सव मनाना.

संभोग से समाधि की ओर से बदनाम हुए ओशो
ओशो रजनीश गजब के पढ़ाकू थे. स्कूल और कॉलेज के दिनों में जबलपुर की शायद ही कोई ऐसी लाइब्रेरी थी, जिसमें ओशो रजनीश ने पूरे-पूरे दिन पढ़ाई न की हो. वे दिन भर या तो पुस्तक की दुकानों पर पाए जाते थे या फिर लाइब्रेरी में. धर्मों की पुस्तकों के अलावा उन्होंने विज्ञान, समाजशास्त्र और दर्शन शास्त्र की पुस्तकें भी पढ़ीं. इन पर प्रवचन दिए. उन्हीं के प्रवचन (Osho Pravachan) ट्रांसक्रिप्ट बनाकर बहुत सारी पुस्तकें लिखी गईं. इनमें कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब, बाइबल, मीरा के दोहे, कबीर का जीवन, बौद्ध भिक्षुओं का जीवन और कई इस्लाम के संतों पर उन्होंने प्रवचन दिए.

संभोग से समाधि की ओर पुस्तक से हुए थे अधिक बदनाम
हिंदू धर्म की सबसे बड़ी पुस्तक गीता पर उन्होंने जो लिखा है, गीता को समझने का वैसा नजरिया किसी और लेखक का नहीं मिला. ओशो जिस पुस्तक की वजह से सबसे ज्यादा बदनाम हुए, उसका नाम था- संभोग से समाधि की ओर. इस पुस्तक की वजह से उन्हें दुनिया में सेक्स गुरु (Sex Guru Osho) का दर्जा भी मिला. ओशो को करीब से पढ़ने वाले लोगों का कहना है कि ओशो के साहित्य में जीवन के तमाम पहलुओं में से यह पुस्तक भी एक है. ऐसा नहीं है कि ओशो सिर्फ सेक्स पर ही बोलते रहे.

आचार्य रजनीश ओशो का जबलपुर से था गहरा नाता, अब यादों से ज्यादा कुछ शेष नहीं

दुनिया में कई बड़े दार्शनिक हुए हैं, लेकिन ओशो रजनीश एक ऐसे दार्शनिक थे जिन्हें धर्म में नहीं बांधा जा सकता, जो देश में नहीं बांधे गए. यदि उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं, तो समय भी उन्हें नहीं बांध पाया. ओशो ने जीवन जीने के जो सूत्र दिए थे, आज भी दुनिया भर में उन सूत्रों पर अमल करके लोग सुख और शांति पा रहे हैं.

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