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'अपनों' के लिए खुदेगी 'अपनों' की कब्र - इंदौर कब्रिस्तान न्यूज

इंदौर में कब्रिस्तान सिकुड़ते जा रहे हैं. हालत ये हो गई है कि शवों को दफनाने के लिए जगह नहीं मिल रही. कई जगहों पर लोगों ने दूसरे इलाकों से आए शवों को दफनाने पर पाबंदी तक लगा दी है.

shrinking cemeteries
'अपनों' के लिए 'अपनों' की कब्र
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Published : Feb 24, 2021, 8:20 PM IST

Updated : Feb 24, 2021, 11:00 PM IST

इंदौर । "कितना है बदनसीब जफर, दफन के लिए दो गज जमीन भी ना मिली कु- ए -यार में". हिंदुस्तान में आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की ये पंक्तियां अब इंदौर के हालात से हूबहू मेल खा रही हैं. यहां कब्रिस्तान सिकुड़ने लगे हैं. शवों को दफन करने के लिए जगह कम पड़ने लगी है. कई कब्रिस्तान में शवों को दफनाने पर अब रोक लगानी पड़ी है. इंदौर में स्थिति ये हो गई है कि लोग दूसरे इलाकों के शवों को अपने यहां दफनाने को तैयार नहीं हैं

'दो गज जमीन के लिए जंग'

शहर के तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा छोटे बड़े कब्रिस्तानों में शवों को दफनाने के लिए जगह ही नहीं बची है. शहर के ज्यादातर कब्रिस्तान में अब जनाजे के पहुंचने से पहले ही कब्रिस्तान के कर्मचारियों से मुकम्मल जगह की पड़ताल करनी पड़ती है. इसके बाद जनाजा निकाला जाता है.

सिकु़ड़ रहे हैं कब्रिस्तान

सिकु़ड़ रहे हैं इंदौर के कब्रिस्तान

शहर के स्कीम नंबर 34 में स्थित कब्रिस्तान में आलम ये है कि, यहां खजराना इलाके से आने वाले जनाजे के कारण कब्रिस्तान में जगह ही नहीं बची. यहां जनाजे लाना प्रतिबंधित कर दिया गया है. पास में ही एक और कब्रिस्तान है. उसमें भी शवों को दफनाने के लिए दो गज जमीन नहीं मिल रही है. अब हो ये रहा है कि कब्र को लगभग छूते हुए नई कब्र खोदी जा रही है. सदर इंदौर कब्रिस्तान नासिर खान अपील कर रहे हैं, कि कब्रों के आसपास ना तो पक्का निर्माण किया जाए. ना ही नाम या फिर याददाश्त का कोई पक्का शिलालेख बनवाएं. ताकि वक्त पड़ने पर इसकी जगह दूसरी कब्र खोदी जा सके.

कब्रिस्तान की मिट्टी पलटने के सिवाय कोई चारा नहीं

जानकार कहते हैं, कि चार से पांच सालों में मिट्टी में दबा शव मिट्टी में विलीन हो कर मिट्टी हो जाता है. जिन कब्रों को दफन हुए 20 से 25 साल हो गए हैं, उन कब्रिस्तानों की मिट्टी पलट दी जाए. कब्रिस्तान के सदर नासिर खान बताते हैं, कि कब्रस्तान की मिट्टी पलटने की इस प्रक्रिया को पलटा कहते हैं . अब शवों को दफन करने के लिए तभी जगह मिलेगी, जब पलटा किया जाएगा. इंदौर के महू नाका, खजराना, सिरपुर, लुनियापुरा, चंदननगर, नूरानी नगर, आजाद नगर, बाणगंगा, स्कीम 134 समेत अन्य छोटे कब्रिस्तान में भी यही हालात हैं.

हिंदू-मुस्लिम संस्कार की मिसाल: पूजा के बाद उठी अर्थी, नमाज-ए-जनाजा के साथ हुई सुपुर्द-ए-खाक

कोरोना काल में फुल हुए कब्रिस्तान

शहर के कब्रिस्तानों में रोजाना औसतन दो से तीन जनाजे आते हैं. कोरोना काल में कब्रिस्तान फुल हो गए. इस दौरान इंदौर के चार कब्रिस्तानों में करीब 145 जनाजे पहुंचे. आमतौर पर इन कब्रिस्तानों में महीने में 25 से 30 जनाजे आते हैं. कोरोना काल में यहां एक-एक हफ्ते में करीब 50 जनाजे आए.

अपनों के लिए खुदेगी अपनों की कब्र

इंदौर में ज्यातार कब्रिस्तान में नई कब्र बनाने के लिए जगह नहीं है. कब्रिस्तान कमेटियों ने पांच-छह साल पुरानी कब्रों में ही नए जनाजों को दफन करने की अपील की है. कई लोगो ये बात समझते हैं. वे ऐसा करने को भी तैयार हैं. कब्रिस्तान की इंतजाम कमेटियां अब लिखित में बता रही हैं, कि किसी भी कब्रिस्तान में ना तो पक्की कब्र बनेगी ना ही कोई स्थाई शिलालेख लगाया जा सकेगा.

इंदौर । "कितना है बदनसीब जफर, दफन के लिए दो गज जमीन भी ना मिली कु- ए -यार में". हिंदुस्तान में आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की ये पंक्तियां अब इंदौर के हालात से हूबहू मेल खा रही हैं. यहां कब्रिस्तान सिकुड़ने लगे हैं. शवों को दफन करने के लिए जगह कम पड़ने लगी है. कई कब्रिस्तान में शवों को दफनाने पर अब रोक लगानी पड़ी है. इंदौर में स्थिति ये हो गई है कि लोग दूसरे इलाकों के शवों को अपने यहां दफनाने को तैयार नहीं हैं

'दो गज जमीन के लिए जंग'

शहर के तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा छोटे बड़े कब्रिस्तानों में शवों को दफनाने के लिए जगह ही नहीं बची है. शहर के ज्यादातर कब्रिस्तान में अब जनाजे के पहुंचने से पहले ही कब्रिस्तान के कर्मचारियों से मुकम्मल जगह की पड़ताल करनी पड़ती है. इसके बाद जनाजा निकाला जाता है.

सिकु़ड़ रहे हैं कब्रिस्तान

सिकु़ड़ रहे हैं इंदौर के कब्रिस्तान

शहर के स्कीम नंबर 34 में स्थित कब्रिस्तान में आलम ये है कि, यहां खजराना इलाके से आने वाले जनाजे के कारण कब्रिस्तान में जगह ही नहीं बची. यहां जनाजे लाना प्रतिबंधित कर दिया गया है. पास में ही एक और कब्रिस्तान है. उसमें भी शवों को दफनाने के लिए दो गज जमीन नहीं मिल रही है. अब हो ये रहा है कि कब्र को लगभग छूते हुए नई कब्र खोदी जा रही है. सदर इंदौर कब्रिस्तान नासिर खान अपील कर रहे हैं, कि कब्रों के आसपास ना तो पक्का निर्माण किया जाए. ना ही नाम या फिर याददाश्त का कोई पक्का शिलालेख बनवाएं. ताकि वक्त पड़ने पर इसकी जगह दूसरी कब्र खोदी जा सके.

कब्रिस्तान की मिट्टी पलटने के सिवाय कोई चारा नहीं

जानकार कहते हैं, कि चार से पांच सालों में मिट्टी में दबा शव मिट्टी में विलीन हो कर मिट्टी हो जाता है. जिन कब्रों को दफन हुए 20 से 25 साल हो गए हैं, उन कब्रिस्तानों की मिट्टी पलट दी जाए. कब्रिस्तान के सदर नासिर खान बताते हैं, कि कब्रस्तान की मिट्टी पलटने की इस प्रक्रिया को पलटा कहते हैं . अब शवों को दफन करने के लिए तभी जगह मिलेगी, जब पलटा किया जाएगा. इंदौर के महू नाका, खजराना, सिरपुर, लुनियापुरा, चंदननगर, नूरानी नगर, आजाद नगर, बाणगंगा, स्कीम 134 समेत अन्य छोटे कब्रिस्तान में भी यही हालात हैं.

हिंदू-मुस्लिम संस्कार की मिसाल: पूजा के बाद उठी अर्थी, नमाज-ए-जनाजा के साथ हुई सुपुर्द-ए-खाक

कोरोना काल में फुल हुए कब्रिस्तान

शहर के कब्रिस्तानों में रोजाना औसतन दो से तीन जनाजे आते हैं. कोरोना काल में कब्रिस्तान फुल हो गए. इस दौरान इंदौर के चार कब्रिस्तानों में करीब 145 जनाजे पहुंचे. आमतौर पर इन कब्रिस्तानों में महीने में 25 से 30 जनाजे आते हैं. कोरोना काल में यहां एक-एक हफ्ते में करीब 50 जनाजे आए.

अपनों के लिए खुदेगी अपनों की कब्र

इंदौर में ज्यातार कब्रिस्तान में नई कब्र बनाने के लिए जगह नहीं है. कब्रिस्तान कमेटियों ने पांच-छह साल पुरानी कब्रों में ही नए जनाजों को दफन करने की अपील की है. कई लोगो ये बात समझते हैं. वे ऐसा करने को भी तैयार हैं. कब्रिस्तान की इंतजाम कमेटियां अब लिखित में बता रही हैं, कि किसी भी कब्रिस्तान में ना तो पक्की कब्र बनेगी ना ही कोई स्थाई शिलालेख लगाया जा सकेगा.

Last Updated : Feb 24, 2021, 11:00 PM IST
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