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RT-PCR टेस्ट ही नहीं 'कोरोना संक्रमण की पुष्टि के लिए चेस्ट का CT स्कैन भी जरूरी' - Reverse Transcription Polymer Chain Reaction

आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट के आधार पर एमजीएम मेडिकल कॉलेज सहित विभिन्न चिकित्सा संस्थानों के डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि कोरोना के परीक्षण के लिए आरटी-पीसीआर की जांच सिर्फ 70 से 80 फीसदी ही कारगर साबित हो रही है, जबकि 20 से 30 प्रतिशत मामलों में यह जांच गलत पाई गई है.

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100 फीसदी कारगर नहीं RT-PCR
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Published : Apr 16, 2021, 12:19 PM IST

Updated : Apr 16, 2021, 6:05 PM IST

इंदौर। जिस कोरोना वायरस से पूरी दुनिया परेशान है. उस वायरस का संक्रमण जानने के लिए भारत में उपयोग की जाने वाली आरटी-पीसीआर (रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमर चेन रिएक्शन) की जांच सवालों के घेरे में आ गई है.

नया है यह वेरिएंट ?

आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट के आधार पर एमजीएम मेडिकल कॉलेज समेत विभिन्न चिकित्सा संस्थानों के डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि कोरोना के परीक्षण के लिए आरटी-पीसीआर की जांच सिर्फ 70 से 80 फीसदी ही कारगर है. जबकि 20 से 30 फीसदी मामलों में यह जांच गलत पाई जा रही है. आरटी-पीसीआर टेस्ट करा चुके मरीजों का दोबारा परीक्षण करना पड़ रहा है. इसलिए अब संक्रमण की पुष्टि के लिए डॉक्टर और चिकित्सा संस्थान चेस्ट की सीटी स्कैन जांच के बाद ही कोरोना की पुष्टि करने कर पा रहे हैं.. इधर इसकी एक और वजह कोरोना के नए वेरिएंट को भी माना जा रहा है, जो अब नाक और मुंह के अलावा सीधे फेफड़ों में पहुंचकर संक्रमण फैला रहा है.

RT-PCR के साथ CT स्कैन भी जरूरी'

RT-PCR रिपोर्ट नेगेटिव फिर भी संक्रमित
इंदौर समेत देश भर में इन दिनों जो भी गंभीर मरीज अस्पतालों में पहुंच रहे हैं, उनमें से अधिकांश की आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट तो नेगेटिव रही है , लेकिन मरीज की बॉडी में संक्रमण बढ़ा हुआ मिला. इसके बाद संक्रमित मरीज का इलाज देर से शुरु हो रहा है.देश में तमाम संक्रमित मरीजों की मौत के पीछे यही सबसे बड़ा कारण भी माना जा रहा है. यही वजह है कि अब अधिकांश बड़े अस्पतालों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि के लिए आरटी-पीसीआर जांच के अलावा चेस्ट की सीटी स्कैन रिपोर्ट को ही संक्रमण की पुष्टि का आधार माना जा रहा है.

सीधे लंग्स को अटैक कर रहा है वायरस

कोरोना वायरस पर लगातार शोध कर रहे एक्सपर्ट्स का मानना है कि वायरस का नया वेरिएंट नाक और मुंह के बजाय सीधे फेफड़ों के अंदर पहुंच रहा है, जिसके फुटप्रिंट अब मुंह या नाक के सलाइवा में नहीं मिल रहे हैं. इसकी एक और वजह कम्युनिटी स्प्रेड को भी माना जा रहा है. हालांकि, भारत सरकार और आईसीएमआर द्वारा कोरोना के नए टेस्ट के बारे में कोई अधिकृत बयान जारी नहीं किया गया है. इस स्थिति से परेशान डॉक्टर्स अब आरटी-पीसीआर के साथ सीटी स्कैन को प्राथमिकता दे रहे हैं.

आरटी-पीसीआर से नहीं हो रही नए वायरस की पुष्टि
दरअसल, कोरोना संक्रमण और जांच की तमाम प्रक्रिया पर रिसर्च, सैंपलिंग आईसीएमआर सहित सेंटर ऑफ नेशनल कंट्रोल ऑफ डिजीज द्वारा जिनोम सीक्वेंसिंग के जरिए की जा रही है. उसमें भी पता चला है कि 6 फीसदी मामले ऐसे हैं, जिनमें वायरस नॉरमल इम्यून रिस्पांस को ब्लॉक कर देता है, जिसके कारण संक्रमण का पता जांच के दौरान नहीं चल पाया. हालांकि जब उसी मरीज का ही 48 घंटे बाद टेस्ट किया गया, तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई.

छिंदवाड़ा में आने वाले लोगों के लिए RT-PCR टेस्ट जरूरी

शहर में बीते दो सालों से लगातार आरटी-पीसीआर की जांच करने वाले पैथोलॉजिस्ट भी मानते हैं कि अब वायरस की पुष्टि के लिए आरटी-पीसीआर के अलावा चेस्ट सीटी स्कैन की भी जरूरत पड़ रही है. इसके पीछे भी दो वजह बताई जा रही है, जिसमें संक्रमण के 48 घंटे के बाद टेस्ट किए जाने पर ही आरटी-पीसीआर की जांच सही तरीके से हो पाती है. इसके पूर्व जांच कराने से कई बार संक्रमण का पता नहीं चलता है. इसके अलावा अब मरीजों की संख्या अत्यधिक बढ़ने के कारण जांच की प्रक्रिया के दौरान मरीज की स्क्रीनिंग नहीं हो पा रही है. अस्पतालों के अलावा प्राइवेट लैब के कर्मचारी वायरस की जांच के लिए सैंपल ले रहे हैं, जो निर्धारित प्रोटोकॉल के तहत नहीं ले रहे है. इसके कारण भी जांच रिपोर्ट प्रभावित होती है.

आखिर क्या है ये नया वेरिएंट और कैसे बन रहा घातक

नए रिसर्च में भी कुछ नई बातें सामने आई हैं. वायरस दो तरह के होते हैं, DNA और RNA. सार्स कोविड एक RNA बेस्ड वायरस हैं. इसका म्यूटेशन कम होता है. म्यूटेशन के बाद वैरिएंट्स बनते हैं. इन्हे वैरिएंट्स ऑफ इंटरेस्ट कहते हैं. क्या ये वायरस की संक्रामकता को बढ़ाने में कारगर हैं? इस सवाल के जवाब हां में हुआ तब इन्हे वैरिएंट्स ऑफ कॉन्सर्ट कहा जाता है. इससे ही वायरस ज्यादा घातक और संक्रामक हो जाता है और डेथ रेट बढ़ जाता है. विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि कई दफा ऐसे वैरिएंट्स आते हैं इनके डायग्नोसिस में भी दिक्कतें आती हैं. इन्हे वैरिएंट्स आफ हाई कंसीक्वेंसेस कहते हैं. ये वैरिएंट यूके के बाद भारत में भी पाया जा रहा है. इसके अलावा ब्राजील और साउथ अफ्रीका के भी वैरिएंट्स भी हैं.

मेडिक्लेम में भी आ रही दिक्कत
गुजरात के वडोदरा नगर में बीमा कंपनियों को निर्देशित किया गया है कि रैपिड एंटीजन और आरटी-पीसीआर रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी सीटी स्कैन के आधार पर मरीज को कोरोना मरीज माना जाए. इसके अलावा दिल्ली के कई प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों ने स्पष्ट किया है कि सेकंड वेव के नए कोरोना वायरस का संक्रमण आरटी-पीसीआर और रैपिड एंटीजन टेस्ट के स्थान पर ब्रोंकाएलव्योलॉर लेवेज टेस्ट से ही पकड़ में आ रहा है. मुंह या नाक के सलाइवा के सैंपल से इसकी पुष्टि नहीं हो पा रही है. इसके अलावा तेज बुखार और सांस लेने में दिक्कत जैसे लक्षण देखने के बाद भी जब मरीजों का आरटी-पीसीआर या रैपिड एंटीजन टेस्ट कराया जा रहा है, तो कोविड-19 नेगेटिव आ रही है.

इंदौर। जिस कोरोना वायरस से पूरी दुनिया परेशान है. उस वायरस का संक्रमण जानने के लिए भारत में उपयोग की जाने वाली आरटी-पीसीआर (रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमर चेन रिएक्शन) की जांच सवालों के घेरे में आ गई है.

नया है यह वेरिएंट ?

आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट के आधार पर एमजीएम मेडिकल कॉलेज समेत विभिन्न चिकित्सा संस्थानों के डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि कोरोना के परीक्षण के लिए आरटी-पीसीआर की जांच सिर्फ 70 से 80 फीसदी ही कारगर है. जबकि 20 से 30 फीसदी मामलों में यह जांच गलत पाई जा रही है. आरटी-पीसीआर टेस्ट करा चुके मरीजों का दोबारा परीक्षण करना पड़ रहा है. इसलिए अब संक्रमण की पुष्टि के लिए डॉक्टर और चिकित्सा संस्थान चेस्ट की सीटी स्कैन जांच के बाद ही कोरोना की पुष्टि करने कर पा रहे हैं.. इधर इसकी एक और वजह कोरोना के नए वेरिएंट को भी माना जा रहा है, जो अब नाक और मुंह के अलावा सीधे फेफड़ों में पहुंचकर संक्रमण फैला रहा है.

RT-PCR के साथ CT स्कैन भी जरूरी'

RT-PCR रिपोर्ट नेगेटिव फिर भी संक्रमित
इंदौर समेत देश भर में इन दिनों जो भी गंभीर मरीज अस्पतालों में पहुंच रहे हैं, उनमें से अधिकांश की आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट तो नेगेटिव रही है , लेकिन मरीज की बॉडी में संक्रमण बढ़ा हुआ मिला. इसके बाद संक्रमित मरीज का इलाज देर से शुरु हो रहा है.देश में तमाम संक्रमित मरीजों की मौत के पीछे यही सबसे बड़ा कारण भी माना जा रहा है. यही वजह है कि अब अधिकांश बड़े अस्पतालों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि के लिए आरटी-पीसीआर जांच के अलावा चेस्ट की सीटी स्कैन रिपोर्ट को ही संक्रमण की पुष्टि का आधार माना जा रहा है.

सीधे लंग्स को अटैक कर रहा है वायरस

कोरोना वायरस पर लगातार शोध कर रहे एक्सपर्ट्स का मानना है कि वायरस का नया वेरिएंट नाक और मुंह के बजाय सीधे फेफड़ों के अंदर पहुंच रहा है, जिसके फुटप्रिंट अब मुंह या नाक के सलाइवा में नहीं मिल रहे हैं. इसकी एक और वजह कम्युनिटी स्प्रेड को भी माना जा रहा है. हालांकि, भारत सरकार और आईसीएमआर द्वारा कोरोना के नए टेस्ट के बारे में कोई अधिकृत बयान जारी नहीं किया गया है. इस स्थिति से परेशान डॉक्टर्स अब आरटी-पीसीआर के साथ सीटी स्कैन को प्राथमिकता दे रहे हैं.

आरटी-पीसीआर से नहीं हो रही नए वायरस की पुष्टि
दरअसल, कोरोना संक्रमण और जांच की तमाम प्रक्रिया पर रिसर्च, सैंपलिंग आईसीएमआर सहित सेंटर ऑफ नेशनल कंट्रोल ऑफ डिजीज द्वारा जिनोम सीक्वेंसिंग के जरिए की जा रही है. उसमें भी पता चला है कि 6 फीसदी मामले ऐसे हैं, जिनमें वायरस नॉरमल इम्यून रिस्पांस को ब्लॉक कर देता है, जिसके कारण संक्रमण का पता जांच के दौरान नहीं चल पाया. हालांकि जब उसी मरीज का ही 48 घंटे बाद टेस्ट किया गया, तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई.

छिंदवाड़ा में आने वाले लोगों के लिए RT-PCR टेस्ट जरूरी

शहर में बीते दो सालों से लगातार आरटी-पीसीआर की जांच करने वाले पैथोलॉजिस्ट भी मानते हैं कि अब वायरस की पुष्टि के लिए आरटी-पीसीआर के अलावा चेस्ट सीटी स्कैन की भी जरूरत पड़ रही है. इसके पीछे भी दो वजह बताई जा रही है, जिसमें संक्रमण के 48 घंटे के बाद टेस्ट किए जाने पर ही आरटी-पीसीआर की जांच सही तरीके से हो पाती है. इसके पूर्व जांच कराने से कई बार संक्रमण का पता नहीं चलता है. इसके अलावा अब मरीजों की संख्या अत्यधिक बढ़ने के कारण जांच की प्रक्रिया के दौरान मरीज की स्क्रीनिंग नहीं हो पा रही है. अस्पतालों के अलावा प्राइवेट लैब के कर्मचारी वायरस की जांच के लिए सैंपल ले रहे हैं, जो निर्धारित प्रोटोकॉल के तहत नहीं ले रहे है. इसके कारण भी जांच रिपोर्ट प्रभावित होती है.

आखिर क्या है ये नया वेरिएंट और कैसे बन रहा घातक

नए रिसर्च में भी कुछ नई बातें सामने आई हैं. वायरस दो तरह के होते हैं, DNA और RNA. सार्स कोविड एक RNA बेस्ड वायरस हैं. इसका म्यूटेशन कम होता है. म्यूटेशन के बाद वैरिएंट्स बनते हैं. इन्हे वैरिएंट्स ऑफ इंटरेस्ट कहते हैं. क्या ये वायरस की संक्रामकता को बढ़ाने में कारगर हैं? इस सवाल के जवाब हां में हुआ तब इन्हे वैरिएंट्स ऑफ कॉन्सर्ट कहा जाता है. इससे ही वायरस ज्यादा घातक और संक्रामक हो जाता है और डेथ रेट बढ़ जाता है. विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि कई दफा ऐसे वैरिएंट्स आते हैं इनके डायग्नोसिस में भी दिक्कतें आती हैं. इन्हे वैरिएंट्स आफ हाई कंसीक्वेंसेस कहते हैं. ये वैरिएंट यूके के बाद भारत में भी पाया जा रहा है. इसके अलावा ब्राजील और साउथ अफ्रीका के भी वैरिएंट्स भी हैं.

मेडिक्लेम में भी आ रही दिक्कत
गुजरात के वडोदरा नगर में बीमा कंपनियों को निर्देशित किया गया है कि रैपिड एंटीजन और आरटी-पीसीआर रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी सीटी स्कैन के आधार पर मरीज को कोरोना मरीज माना जाए. इसके अलावा दिल्ली के कई प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों ने स्पष्ट किया है कि सेकंड वेव के नए कोरोना वायरस का संक्रमण आरटी-पीसीआर और रैपिड एंटीजन टेस्ट के स्थान पर ब्रोंकाएलव्योलॉर लेवेज टेस्ट से ही पकड़ में आ रहा है. मुंह या नाक के सलाइवा के सैंपल से इसकी पुष्टि नहीं हो पा रही है. इसके अलावा तेज बुखार और सांस लेने में दिक्कत जैसे लक्षण देखने के बाद भी जब मरीजों का आरटी-पीसीआर या रैपिड एंटीजन टेस्ट कराया जा रहा है, तो कोविड-19 नेगेटिव आ रही है.

Last Updated : Apr 16, 2021, 6:05 PM IST
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