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मेट्रो की रफ्तार पर मुफलिसी का ब्रेक, प्लानिंग की खामी बनी बड़ी परेशानी

इंदौर और भोपाल में मेट्रो प्रोजेक्ट की शुरूआत तो हो गई है. लेकिन इसके निर्माण कार्य की गति बहुत धीमी है. खासकर इंदौर में तो हालात बहुत खराब है. आर्थिक संकट और डिजाइन संबंधी कई खामियों के चलते ये प्रोजेक्ट फिलहाल अधर में लटकता दिखाई दे रहा है.

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मेट्रो के सफर में मुफलिसी का ब्रेक
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Published : Nov 12, 2020, 10:43 PM IST

Updated : Nov 13, 2020, 3:27 PM IST

इंदौर। कलेक्ट्रेट कार्यालय में कई सालों से धूल खा रहे मेट्रो रेल के इस मॉडल की तरह ही शहर में मेट्रो सेवा का सपना भी अब धुंधला चुका है. करीब 1 साल पहले कमलनाथ सरकार ने करीब 32 किलोमीटर के रूट वाले इस प्रोजेक्ट का भूमि पूजन किया था. लेकिन अब आर्थिक संकट और डिजाइन संबंधी कई खामियों के चलते ये प्रोजेक्ट फिलहाल अधर में लटकता दिखाई दे रहा है.

मेट्रो के सफर में मुफलिसी का ब्रेक

इंदौर में पूरी तरह काम ठप

इंदौर मेट्रो के लिए पहले चरण में 7 हजार 500 करोड़ रूपये और भोपाल मेट्रो के लिए 6 हजार 941 करोड़ रूपये स्वीकृत हुए. मध्य प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन की कंसलटेंसी के लिए आर्किटेक्ट रोहित गुप्ता की टीम को कंसलटेंट एजेंसी नियुक्त की थी. जिसके जरिए दी गई डिजाइन अब तक फाइनल नहीं हो सकी है. इस डीपीआर में भी कई मूल समस्याओं को छोड़ दिया गया. जैसे-तैसे प्रोजक्ट शुरू हुआ तो भोपाल में मेट्रो के करीब 90 पिलर खड़े हो सके. लेकिन इंदौर के क्षेत्रों में 32.16 किलोमीटर के रूट को चिन्हित किए जाने के बाद अब तक एक भी पिलर तैयार नहीं हुआ है.इंदौर के MR10 रोड पर सड़क के बीचों-बीच बैरिकेडिंग की गई है. जो अब काम बंद होने के कारण कई स्थानों से हटाई जा रही है. वहीं निर्माण एजेंसी द्वारा अब इंदौर में पूरी तरह काम बंद कर दिया गया है.

2 साल में तीन सरकारों ने किया मेट्रो का राजनीतिक सफर

मेट्रो रेल परियोजना 2 साल पहले शुरू हुई थी. उस दौरान शिवराज सरकार बदलने के बाद कमलनाथ सरकार सत्ता में आई थी. अब फिर शिवराज सरकार है. सत्ता भले ही बदल गई हो, लेकिन इस परियोजना की हालत जस की तस है. परियोजना के पहले चरण में सरकार ने निर्माण एजेंसी को 5.3 किलोमीटर हिस्से का ठेका दिया था. मगर बीते 2 साल में 1 मीटर रूट भी नहीं बना.

मेट्रो की राह में कई रोड़े

निर्माण एजेंसी बीते 2 सालों से तरह-तरह की परेशानी का सामना कर रही है. मसलन डीपीआर तो तैयार है, लेकिन पार्किंग और जमीन के अधिग्रहण जैसे मुद्दे छोड़ दिए गए हैं. इसके अलावा सर्वे के दौरान हाईटेंशन लाइन सर्विस लाइन, रिहायशी और व्यवसायिक क्षेत्र की पहचान और उनकी शिफ्टिंग एवं विवाद जैसे मसलों के निराकरण की व्यवस्था तय ही नहीं हुई है. इन मुद्दों की लिस्ट काफी लंबी है.

2019 में रखी गई आधारशिला

इंदौर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट की आधारशिला 14 सितंबर 2019 को रखी गई थी. 2 दिसंबर 2019 को न्यू डेवलपमेंट बैंक ने इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए 3 हजार 200 करोड़ का लोन दिया था. जर्मनी की कंपनी डीबी इंजीनियरिंग एंड कंसलटिंग जीएमबीएच और उनकी सहयोगी कंपनियों में सर्च लुइस बर्गर एसएस यूएसए और मैसर्स जिओ डाटा इंजीनियरिंग इटली को प्रोजेक्ट का जनरल कंसलटेंट बनाया गया था.

यह था मेट्रो का रूट

इंदौर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट में एक रिंग लाइन बनी थी. यह बंगाली चौराहा से विजय नगर, एयरपोर्ट होते हुए न्यू पलासिया तक जानी थी. इसकी कुल लागत 7 हजार 500 करोड़ 80 लाख थी. प्रोजेक्ट में राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण पुनर्वास को लेकर आने वाला खर्च वहन करना था. इंदौर और भोपाल की दोनों परियोजनाओं में केंद्र एवं राज्य की हिस्सेदारी 20- 20 फीसदी थी. शेष 60 फीसदी राशि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के द्वारा ऋण के रूप में लिया जाना तय हुआ था. इस ऋण की गारंटी मध्य प्रदेश सरकार ने दी है.

इंदौर। कलेक्ट्रेट कार्यालय में कई सालों से धूल खा रहे मेट्रो रेल के इस मॉडल की तरह ही शहर में मेट्रो सेवा का सपना भी अब धुंधला चुका है. करीब 1 साल पहले कमलनाथ सरकार ने करीब 32 किलोमीटर के रूट वाले इस प्रोजेक्ट का भूमि पूजन किया था. लेकिन अब आर्थिक संकट और डिजाइन संबंधी कई खामियों के चलते ये प्रोजेक्ट फिलहाल अधर में लटकता दिखाई दे रहा है.

मेट्रो के सफर में मुफलिसी का ब्रेक

इंदौर में पूरी तरह काम ठप

इंदौर मेट्रो के लिए पहले चरण में 7 हजार 500 करोड़ रूपये और भोपाल मेट्रो के लिए 6 हजार 941 करोड़ रूपये स्वीकृत हुए. मध्य प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन की कंसलटेंसी के लिए आर्किटेक्ट रोहित गुप्ता की टीम को कंसलटेंट एजेंसी नियुक्त की थी. जिसके जरिए दी गई डिजाइन अब तक फाइनल नहीं हो सकी है. इस डीपीआर में भी कई मूल समस्याओं को छोड़ दिया गया. जैसे-तैसे प्रोजक्ट शुरू हुआ तो भोपाल में मेट्रो के करीब 90 पिलर खड़े हो सके. लेकिन इंदौर के क्षेत्रों में 32.16 किलोमीटर के रूट को चिन्हित किए जाने के बाद अब तक एक भी पिलर तैयार नहीं हुआ है.इंदौर के MR10 रोड पर सड़क के बीचों-बीच बैरिकेडिंग की गई है. जो अब काम बंद होने के कारण कई स्थानों से हटाई जा रही है. वहीं निर्माण एजेंसी द्वारा अब इंदौर में पूरी तरह काम बंद कर दिया गया है.

2 साल में तीन सरकारों ने किया मेट्रो का राजनीतिक सफर

मेट्रो रेल परियोजना 2 साल पहले शुरू हुई थी. उस दौरान शिवराज सरकार बदलने के बाद कमलनाथ सरकार सत्ता में आई थी. अब फिर शिवराज सरकार है. सत्ता भले ही बदल गई हो, लेकिन इस परियोजना की हालत जस की तस है. परियोजना के पहले चरण में सरकार ने निर्माण एजेंसी को 5.3 किलोमीटर हिस्से का ठेका दिया था. मगर बीते 2 साल में 1 मीटर रूट भी नहीं बना.

मेट्रो की राह में कई रोड़े

निर्माण एजेंसी बीते 2 सालों से तरह-तरह की परेशानी का सामना कर रही है. मसलन डीपीआर तो तैयार है, लेकिन पार्किंग और जमीन के अधिग्रहण जैसे मुद्दे छोड़ दिए गए हैं. इसके अलावा सर्वे के दौरान हाईटेंशन लाइन सर्विस लाइन, रिहायशी और व्यवसायिक क्षेत्र की पहचान और उनकी शिफ्टिंग एवं विवाद जैसे मसलों के निराकरण की व्यवस्था तय ही नहीं हुई है. इन मुद्दों की लिस्ट काफी लंबी है.

2019 में रखी गई आधारशिला

इंदौर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट की आधारशिला 14 सितंबर 2019 को रखी गई थी. 2 दिसंबर 2019 को न्यू डेवलपमेंट बैंक ने इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए 3 हजार 200 करोड़ का लोन दिया था. जर्मनी की कंपनी डीबी इंजीनियरिंग एंड कंसलटिंग जीएमबीएच और उनकी सहयोगी कंपनियों में सर्च लुइस बर्गर एसएस यूएसए और मैसर्स जिओ डाटा इंजीनियरिंग इटली को प्रोजेक्ट का जनरल कंसलटेंट बनाया गया था.

यह था मेट्रो का रूट

इंदौर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट में एक रिंग लाइन बनी थी. यह बंगाली चौराहा से विजय नगर, एयरपोर्ट होते हुए न्यू पलासिया तक जानी थी. इसकी कुल लागत 7 हजार 500 करोड़ 80 लाख थी. प्रोजेक्ट में राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण पुनर्वास को लेकर आने वाला खर्च वहन करना था. इंदौर और भोपाल की दोनों परियोजनाओं में केंद्र एवं राज्य की हिस्सेदारी 20- 20 फीसदी थी. शेष 60 फीसदी राशि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के द्वारा ऋण के रूप में लिया जाना तय हुआ था. इस ऋण की गारंटी मध्य प्रदेश सरकार ने दी है.

Last Updated : Nov 13, 2020, 3:27 PM IST
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