इंदौर। धोखाधड़ी व फर्जीवाड़े के मामले में मध्यप्रदेश में इंदौर कुख्यात होता जा रहा है. इंदौर के 9 स्कूलों को फर्जी डिजिटल हस्ताक्षर और लॉगिन के जरिए मान्यता दे दी गई. साल 2018 में इंदौर के डीपीसी कार्यालय द्वारा शहर के निजी स्कूलों को डिजिटल हस्ताक्षर और पासवर्ड का उपयोग करके फर्जी तरीके से मान्यता देने का मामला उजागर. इस मामले में डीपीसी कार्यालय द्वारा संविदा पर कार्यरत प्रोग्रामर जितेंद्र परिहार को दोषी दर्शाया गया. शिक्षा विभाग द्वारा तभी से इस मामले की जांच की जा रही थी.
9 स्कूलों के मामले सामने आए : जांच में पता चला कि इंदौर के डीपीसी कार्यालय द्वारा 4 स्कूलों को फर्जी तरीके से मान्यता दी गई. इसी दौरान कुल 9 मामले सामने आए. इसके बाद तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ नेहा मीणा ने इस मामले की जांच के आदेश दिए. तभी से इस मामले की जांच जारी थी. शिक्षा विभाग द्वारा पूरे मामले की पड़ताल की जा रही थी. जांच में यह भी पता लगाया जा रहा था कि फर्जी तरीके से मान्यता देने के पीछे कौन-कौन अधिकारी जिम्मेदार हैं. मामले में डीपीसी अक्षय सिंह राठौर की भूमिका को भी संदिग्ध माना जा रहा था, क्योंकि फर्जी मान्यता उन्हीं के डिजिटल हस्ताक्षर से दी गई थी. लंबी जांच के बाद आखिरकार राज्य शासन ने डीपीसी राठौर को निलंबित कर दिया है. इसके अलावा इस मामले में उनके खिलाफ इंदौर के राजेंद्र नगर थाने में एफआईआर भी दर्ज की गई है.
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बिना आवेदन के मिल गई मान्यता : इंदौर में हुए फर्जीवाड़ा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां दो स्कूल ऐसे थे, जिन्हें बिना आवेदन के ही मान्यता मिल गई. इस मामले में भी डीईओ ने राज्य शिक्षा केंद्र से कार्रवाई के निर्देश मांगे थे. इतना ही नहीं, पता यह भी चला कि जिन स्कूलों को मान्यता मिली है, उनके खिलाफ पहले से लोकायुक्त प्रकरण चल रहे थे. इन स्कूलों में अप्सरा कॉन्वेंट स्कूल चंदननगर और जेम्स शाइन स्कूल भोला नगर पिपलिया राव शामिल थे. इनमें मान्यता को लेकर बड़ी गड़बड़ी सामने आई थी. हालांकि उस दौरान भी डीपीसी कार्यालय की भूमिका पर सवाल उठे थे.