इंदौर। देश के सबसे स्वच्छ शहर में विकास कार्यों की निगरानी कैसी है, इसकी बानगी यहां नजर आ रही है. यहां 2018 में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत लगाई गई 100 प्याऊ, जिनके लगने के पहले ही नगर निगम ने संबंधित ठेका एजेंसी को करीब 3 करोड़ 50 लाख रुपए से ज्यादा का भुगतान कर दिया था. लेकिन न तो शहर में प्याऊ नजर आए और न ही पानी की आपूर्ति हो सकी. अब 5 साल बाद नगर निगम प्रशासन प्याऊ की खोज में है. वहीं कांग्रेस ने इस मामले में कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है.
प्याऊ लगने के बाद भी नहीं मिला पानी: 5 साल पहले 2018 में इंदौर नगर निगम में भीषण गर्मी से जूझते शहर वासियों को सार्वजनिक स्थानों पर प्याऊ रखने के लिए टेंडर दिया था. केएनबी वेल्थ सलूशन प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को 55 और एक अन्य जल नामक एजेंसी को 45 प्याऊ शहर के विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर लगाने का टेंडर जारी किया था. ठेके की शर्त में 6 महीने में 100 स्थानों पर प्याऊ स्थापित कर 5 साल तक जल वितरण और मेंटेनेंस आदि निर्धारित की गई थी, मगर ठेके की शर्त के विपरीत ठेका एजेंसी 100 में से करीब 55 स्थानों पर ही प्याऊ लगा पाई. इसके भी हालात ऐसे की इनमें से अधिकांश में न तो पानी था और न ही मेंटेनेंस.
प्याऊ की नहीं हुई मॉनिटरिंग: कुछ दिनों बाद प्याऊ लगने के नाम पर करीब 3 करोड़ 50 लाख की राशि का चुपचाप भुगतान भी हो गया. इसके बाद न तो प्याऊ स्थापित हुई और ना ही इंदौर नगर निगम इस मामले में कोई हस्तक्षेप कर प्याऊ की कोई मॉनिटरिंग की. बहुत जल्द ये मामला रफा-दफा हो गया. हाल ही में शहर कांग्रेस प्रवक्ता संजय बाकलीवाल ने इस मामले में नगर निगम प्रशासन पर जनता के पैसे की बर्बादी करने का आरोप लगाते हुए सभी प्याऊ के भौतिक सत्यापन की मांग की है. इस आशय का आवेदन पत्र बाकलीवाल के द्वारा नगर निगम आयुक्त एवं स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के पीएचसी प्रभारी संजीव श्रीवास्तव को सौंपा है.
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में हुआ बंदरबांट: इस मामले में ठेका कंपनी के विकास बिरथरे का कहना है कि "मेरे पास 55 प्याऊ लगाने की जिम्मेदारी थी, जो उन्होंने पूरी की. भौतिक सत्यापन की जिम्मेदारी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अधिकारियों ने की थी. प्रकरण 5 साल पुराना है, इसमें आगे क्या हुआ यह स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से ही पता चल सकेगा." हालांकि अब इस मामले में नगर निगम कमिश्नर हर्षिका सिंह ने नए सिरे से प्याऊ के भौतिक सत्यापन के निर्देश संबंधित अधिकारियों को दिए हैं. स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत स्वीकृत राशि की बंदरबांट होने के कारण शायद ही इस मामले में कोई कार्रवाई की जा सके. यही वजह है कि कांग्रेस अब इस पूरे मामले को कोर्ट में ले जाना चाहती है, जिससे कि नगर निगम में विकास कार्यों के नाम पर होने वाली जनता की गाढ़ी कमाई की राशि की बर्बादी कमीशन खोरी और फिजूलखर्ची के नाम पर रोकी जा सके.