इंदौर। कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन के दौर में जहां कई गरीब लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं, वहीं सबसे खराब स्थिति गौशालाओं की हुई है, जहां हजारों गाय चारे और पानी के लिए तरस गईं. इस दौर में इंदौर की दो गौशालाएं ऐसी थीं जहां गायों पर भगवान गणेश की कृपा जमकर बरसी. दरअसल इसकी वजह है देसी गायों के गोबर से बन रहे इको फ्रेंडली गणेश जी, जिनकी बिक्री की बदौलत अब गायों को भी वीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा है.
इंदौर में सिद्धिविनायक खजराना गणेश की हुबहू प्रतिकृति में गणेशोत्सव के लिए तैयार की जा रही यह सुंदर मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस या मिट्टी से नहीं बल्कि देसी गायों के पवित्र गोबर और जड़ी बूटियों के मिश्रण से तैयार हुई हैं.
दरअसल, इंदौर के नंदा नगर स्थित साईं मंदिर में 100 गायों की और राऊ छेत्र में 500 गायों की गौशाला चलाने वाले अक्षय मित्तल जब लॉकडाउन के दौरान गायों का गोबर फेंकने और कर्फ्यू में गायों के दाना पानी की व्यवस्था को लेकर परेशान हो गए, तो उन्होंने गोबर से खाद बनाने के अलावा अन्य विकल्पों की खोज की.
इसके बाद गो पुराण के अध्ययन से पता चला कि गाय के गोबर से गणेशोत्सव के लिए गणेश प्रतिमाएं भी बनाई जा सकती हैं. इसके बाद गौ सेवा विभाग से मूर्तियां बनाने का फार्मूला लेकर जो मूर्तियां तैयार की जा रही हैं, वह एक झलक में सभी को पसंद आ रही हैं. खास बात यह है कि मूर्तियां तैयार करने के इस काम में ऐसे 100 लोगों को लगाया गया है, जिनकी कोरोना के दौर में नौकरी जा चुकी थी.
एक छोटे से प्रयास की बदौलत अब बीते 3 महीने में इंदौर के साईं मंदिर गौशाला द्वारा 3000 प्रतिमाएं तैयार कराई गई हैं. जिनकी मांग बेंगलुरु और पुणे के अलावा उज्जैन के नागदा से भी आना शुरू हो गई है. अब तक जो मूर्तियां बिकी हैं उनसे गायों के व्यवस्थित खानपान और गौशाला के तमाम संसाधनों की आर्थिक व्यवस्था हो चुकी है.
इधर अक्षय मित्तल के साथ विधायक आकाश विजयवर्गीय भी गोबर से गणेश प्रतिमा निर्माण को व्यापक रूप देना चाहते हैं. यही वजह है कि अगले साल से इंदौर की अन्य गौशालाओं से प्राप्त होने वाले गोबर से हजारों की संख्या में गणेश प्रतिमाएं बनाने की तैयारी हो गई है. जिसके फलस्वरूप गौशालाओं की गायों की भी स्थिति में सुधार हो सकेगा.
पूरी तरह इको फ्रेंडली मूर्तियां
गाय का गोबर शास्त्रों में पवित्र माना गया है. इसके अलावा यह उच्च कोटि का उर्वरक खाद भी होता है क्योंकि गोबर से सीधे मूर्तियों का निर्माण नहीं किया जा सकता. इसलिए उसे पाउडर के रूप में बदल कर चावल का आटा इमली बीज पाउडर और अन्य जड़ी बूटियों के मिश्रण से मूर्ति के निर्माण योग्य बनाया जाता है.
इसके बाद निर्धारित सांचे में डालकर मूर्ति तैयार की जाती है. जिसे बाद में कलर करके श्रृंगारित कर दिया जाता है. गोबर की यह मूर्तियां इसलिए भी उपयोगी हैं कि यह जल स्रोतों के पानी के लिए भी घातक नहीं है. इसके अलावा घर पर अथवा मिट्टी के गमलों में इन्हें विसर्जित किया जा सकता है, जो बाद में गमले के पौधे के लिए खाद के रूप में बदल जाएंगी.