नर्मदापुरम। नर्मदापुरम में गुरुनानक देव 500 वर्ष पहले पहुंचे थे. प्राचीन इतिहास के अनुसार एक ग्रंथ आज भी यहां रखा हुआ है. पांच सामग्री एवं कुछ मात्रा में स्वर्ण से इसके अक्षरों को लिखने के लिये उपयोग किया गया था. इस गुरुद्वारे में यह आज भी सुरक्षित स्थान पर रखा हुआ है. 1973 की बाढ़ में सब बह गया था, लेकिन वह आज भी इसी मंगलवारा घाट स्थित प्राचीन गुरुद्वारे में धरोहर के रूप में है. जिसकी जानकारी ग्रंथ साहिब में आखरी पेज पर भी मिलती है. (Guru Nanak Sahib Narmadapuram)
बाढ़ में मिला था गुरु ग्रंथ: 1973 में नर्मदा नदी में विकराल बाढ़ आई थी. यह छोटा सा रूम जैसा गुरुद्वारा इस जगह में आज भी सुशोभित है. यह गुरु ग्रंथ इसी जगह पर मिला था. आज गुरुद्वारा उसके बाद से ही यह गुरुद्वारा यहां पर स्थापित किया गया. करीब यह करीब 500 साल पुराना है. यह गुरु ग्रंथ है जिस समय गुरु ग्रंथ साहिब को लिखने की लिए स्याही का उपयोग किया गया. वह भी एक अलग किस्म की है. इसका वर्णन गुरु ग्रंथ साहिब के अंतिम पेज पर इसका वर्णन मिलता है.
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सोने की स्याही का उपयोग: गुरुद्वारे के सेवादार हरभनज सिंह ने बताया कि, 500 साल पहले जगत के उद्धार के लिए भोपाल जबलपुर रास्ते से यहां गुरुनानक देव पहुंचे थे. गुरुनानक देव के पहुंचते समय उस समय का राजा हुशंगासाह (Narmadapuram King Hushangshah) की शंका को भी उन्होंने दूर किया था. 1973 में इस क्षेत्र में बाढ़ के दौरान गुरु ग्रंथ मिला था. जो बाढ़ के दौरान गीला हुआ लेकिन स्याही नहीं फैली. इस ग्रंथ में 5 जड़ी बूटियों और सोने की स्याही का उपयोग किया गया है. जो आज भी सुरक्षित रखा हुआ है.