ग्वालियर। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने अपनी जम्बो प्रदेश कार्यकारिणी और जिला अध्यक्षों के रिक्त पदों के लिए नए नामों की घोषणा कर दी है. हालांकि ग्वालियर-चम्बल अंचल में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समर्थकों का ही दबदबा है. पार्टी ने चयन बड़ी चतुराई से किया है और ब्राह्मण और दलित वोटों को साधने की कोशिश की है. ग्वालियर-चम्बल अंचल में चुनावी बिसात जातियों के आधार पर बिछाई जाती रही है. अभी तक किसी भी दल ने कोई जिला अध्यक्ष दलित वर्ग से कभी नहीं दिया था. इस बार कांग्रेस ने ग्वालियर ग्रामीण से एक दलित को ही अध्यक्ष का पद सौंपकर बड़ा दांव खेल दिया है. कहा जा रहा है कि यह निर्णय खुद कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का है.
इमरती देवी की घेराबंदीः ग्रामीण जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गए प्रभु दयाल जोहरे वैसे तो प्रदेश उपाध्यक्ष अशोक सिंह से जुड़े है. अब तक सिंह ही अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, लेकिन सूत्र बताते है कि कमलनाथ इस बात पर अडिग थे कि ग्वालियर ग्रामीण का अध्यक्ष अनुसूचित जाति वर्ग से ही रखेंगे, और हुआ भी वही. जोहरे की ही ताजपोशी कर दी गई. इसके जरिये कमलनाथ ने एक तीर से दो निशाने साधे है. एक तो इससे पूर्व मंत्री और कमलनाथ सरकार गिराने में अहम भूमिका गिराने वालीं इमरती देवी की घेराबंदी और मजबूत होगी. दूसरे दलितों का कांग्रेस से जुड़ाव और बढ़ेगा.
BJP के कब्जे वाली सीटों पर ताकत दिखाएगी Congress, ग्वालियर में 26 को बड़ी बाइक रैली
दलितों को जोड़ने की मजबूत कोशिशः इमरती 2020 के उप चुनाव में हार चुकी है. उन्होंने नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ सीधा मोर्चा खोलकर ब्राह्मणों को पहले ही दूर कर रखा है. अब दलित वोट की घेराबंदी और मजबूत कोशिश की गई है. इसी तरह पूर्व सांसद रामसेवक सिंह गुर्जर को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है, क्योंकि गुर्जर समाज ग्रामीण, डबरा और भितरवार में है और इन पर रामसेवक सिंह की पकड़ अच्छी है. उप चुनाव में अपराजेय मानी जाने वाली इमरती को परास्त करने में रामसेवक सिंह की बड़ी भूमिका थी.
दलितों के निशाने पर भाजपाः जोहरे की नियुक्ति के जरिये कांग्रेस ने संभाग भर के दलितों को संकेत दिया है कि उसके दिमाग में दलितों का हिस्सा देने की योजना है. दरअसल ग्वालियर-चम्बल संभाग में दलित अनेक सीट पर निर्णायक रहते है. इनके बीएसपी से जुड़ जाने से इस क्षेत्र में बीजेपी को बढ़त मिलने लगी थी. लेकिन 2018 में हुए दलित-सवर्ण संघर्ष के बाद कांग्रेस और बसपा काडर में फिर नजदीकियां बढ़ गईं थीं. इस समय दलितों ने बीजेपी से एकदम दूरी बना ली और दूसरे बीएसपी को भी वोट नहीं देना शुरू कर दिया. अब उनका टारगेट बीजेपी को हराना हो गया था. यह बात उनके दिमाग में घर कर गयी कि बीएसपी को वोट देने से ही बीजेपी जीत जाती है. दलितों में फैली इस भावना का असर भी तेजाबी रहा था. 2018 के चुनाव में इस संभाग की सभी सुरक्षित सीटें कांग्रेस के खाते में चलीं गईं थी. दलित वोट कांग्रेस में शिफ्ट होने से अंचल में बीजेपी का सूफड़ा साफ हो गया था. कमलनाथ एक बार फिर वही परिणाम दोहराना चाहते है. इसलिए पहले फूलसिंह बरैया और अब जोहरे के जरिये दलितों में संदेश देना चाहते है कि वे बसपा की जगह कांग्रेस का साथ दें.
ब्राह्मण वोट भी छिटका बीजेपी सेः ग्वालियर-चम्बल में दलितों के बाद बीजेपी से सबसे ज्यादा दूर छिटकने वाला वोट ब्राह्मण है. पिछली बार शिवराज सिंह के माई के लाल ने खेल बिगाड़ा था और उसके बाद भी हालात नहीं सुधरे. अंचल में सत्ता हो या संगठन ब्राह्मण अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे है. नरोत्तम मिश्रा को छोड़कर एक भी ब्राह्मण मंत्री नहीं है.नरोत्तम की स्थानीय ब्राह्मणों में वैसी पैठ नहीं है. दूसरे ग्वालियर में कायस्थ, भिंड में लोधी, मुरैना में गुप्ता जिला अध्यक्ष हैं. इससे उपेक्षित महसूस कर रहे ब्राह्मणों की नाराजी के गरम लोहे पर कमलनाथ और दिग्गी ने मिलकर चोट की.
हर वर्ग को साधने की कोशिशः कांग्रेस ने डॉ. देवेंद्र शर्मा को रिपीट कर दिया. जबकि मुरैना में दीपक शर्मा को अध्यक्षी थमा दी है. भिंड में भी शहर के अध्यक्ष डॉ. राधेश्याम शर्मा को फिर से कमान सौंप दी. इनके अलावा ग्वालियर से बालेंदु शुक्ला और वासुदेव शर्मा को उपाध्यक्ष बनाया गया. शुक्ल सीधे कमलनाथ तो वासुदेव दिग्विजय सिंह के समर्थक हैं. मुरैना के राम लखन दंडोतिया को प्रदेश में जगह दी गई. प्रदेश कार्यकारिणी भले ही कांग्रेस को जम्बो बनानी पड़ी लेकिन इसमें हर वर्ग को साधने की कोशिश की गई है. मसलन डॉ. गोविंद सिंह के समर्थक खिजर मुहम्मद कुरेशी से मुस्लिम, अशोक सिंह से यादव, साहब सिंह और रामसेवक सिंह बाबूजी से गुर्जर साधने की कोशिश की है. वहीं रावत वोटों को ध्यान में रखकर राम निवास रावत को हाईपावर कमेटी में जगह दी गई है.