ग्वालियर। बेलागढ़ पुलिस थाने में ग्रामीण की मौत के मामले में एकल पीठ के न्यायाधीश जीएस अहलूवालिया ने वर्तमान एसपी अमित सांघी और पूर्व पुलिस अधीक्षक नवनीत भसीन की भूमिका की जांच का जिम्मा डीजीपी को सौंपा था. इसके खिलाफ सभी पुलिसकर्मियों ने अलग-अलग डिविजन बेंच में अपील दायर की. इस पर राहत देते हुए डिवीजन बेंच ने दोनों पुलिस अधीक्षकों की डीजीपी द्वारा जांच पर रोक लगा दी है. 20 लाख की मुआवजा राशि देने पर भी हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है.
एकल पीठ ने ये दिया था आदेश : वहीं पुलिस हिरासत में मौत के मामले में आरोपी बने पुलिसकर्मियों को निलंबित रखने के आदेश पर भी स्थगन आदेश दिया है. इस मामले में सीबीआई जांच के आदेश पूर्ववत रहेंगे. बता दें कि इस मामले में सात पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला चल रहा है. पुलिस इस मामले को आत्महत्या बताने पर तुली हुई थी. लेकिन ढाई साल तक चली लीपापोती वाली जांच से व्यथित होकर मृतक सुरेश रावत के बेटे अशोक रावत ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की और पुलिसकर्मियों पर अपने पिता की हत्या करने का आरोप लगाया.
कोर्ट ने सुनाया था कठोर फैसला : पुलिस जब संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी तो कोर्ट ने न केवल इस मामले को सीबीआई के सुपुर्द कर दिया बल्कि विवेचना करने वाले एसडीओपी संजय चतुर्वेदी पर 50,000 रुपए की कॉस्ट भी लगाई थी. इसके अलावा घटना के समय थाने पर मौजूद पुलिसकर्मियों को मामले की जांच होने तक सस्पेंड रखने और उन्हें 700 किलोमीटर दूर तैनात करने के निर्देश दिए थे. इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने पीड़ित पक्ष यानी अशोक रावत को 20 लाख रुपए क्षतिपूर्ति भी देने के आदेश सरकार को दिए थे.
ये है मामला : दरअसल, 10 अगस्त 2019 को खेमू शाक्य और सुरेश रावत के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया था. दोनों पक्ष बेलगढा़ थाने पर पहुंच गए. यहां खेमू शाक्य की शिकायत पर सुरेश रावत के खिलाफ दलित उत्पीड़न और मारपीट का मुकदमा दर्ज कर लिया गया, लेकिन सुरेश रावत की रिपोर्ट नहीं लिखी गई. उसे लॉकअप में बैठा दिया गया. परिजनों का आरोप है कि उसके साथ वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने बेरहमी से मारपीट की. बाद में संदिग्ध परिस्थितियों में सुरेश रावत का शव थाने के लॉकअप में लटकता हुआ मिला.
परिजनों ने लगाया था हत्या का आरोप : पुलिस का कहना है कि सुरेश ने आत्महत्या की है, जबकि परिजनों का आरोप है कि सुरेश रावत की पुलिसकर्मियों ने पीटकर हत्या की गई है. इस मामले की जांच कई अधिकारियों के सामने से गुजरी लेकिन पुलिस ने ना तो सीसीटीवी कैमरे की रिकॉर्डिंग कोर्ट में पेश की और न ही आत्महत्या से जुड़े के बारे में तथ्य कोर्ट में पेश किए. इससे कोर्ट को लगा कि पुलिस मामले में लीपापोती कर रही है और स्थानीय अधिकारियों के चलते मामले की जांच निष्पक्ष तरीके से नहीं हो सकेगी. इसलिए अब मामले को सीबीआई के सुपुर्द कर दिया गया है.