ग्वालियर। शहर के चेतकपुरी चौराहे के सामने स्थित एक बेशकीमती बड़े भूभाग को न्यायालय ने मातेश्वरी गजरा राजे चैरिटेबल ट्रस्ट की जमीन न मानते हुए पूर्व एयर कमांडर यशवंत राव राणे की जमीन मानी है. सिंधिया परिवार के ट्रस्ट द्वारा नारायण बिल्डर्स को की गई रजिस्ट्री को अवैध मानते हुए उसे निरस्त कर दिया है. करीब 20 सालों से यह मामला न्यायालय में विचाराधीन था. लगभग 6 बीघा से ज्यादा की इस जमीन को लेकर यह विवाद गजराराजे चैरिटेबल ट्रस्ट और वायु सेवा से रिटायर्ड यशवंत राव राणे के बीच चल रहा था. गजरा राजे चैरिटेबल ट्रस्ट सिंधिया परिवार द्वारा आधिपत्य एवं संचालित है.
जमीन के बेचने पर लगाई रोक: इसे ट्रस्ट द्वारा नारायण बिल्डर्स एंड डेवलपर को 2006 में बेच दिया गया था. पूर्व में राणे के दावे को कोर्ट द्वारा खारिज किया गया था. जिसकी अपील एडीजे कोर्ट में की गई. जिसमें उन्होंने बताया कि कृष्ण राव राणे उनके पिता थे और उनकी यह जमीन थी. उनके देहांत के बाद जमीन के एकमात्र वारिस वह खुद हैं. पिता की मृत्यु 1952 में हो चुकी है. यशवंतराव राणे का आरोप है कि सिंधिया परिवार द्वारा आधिपत्य वाले श्रीमंत मातेश्वरी गजरा राजे चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम से यह जमीन गलत नामांतरण के जरिए बेच दी गई थी. जबकि यह जमीन ट्रस्ट की न होकर राणे परिवार की थी. इस जमीन को राणे के स्वामित्व की मानते हुए उनके पक्ष में बिक्री कर दी गई है और उसकी जमीन पर निर्माण एवं बेचने पर रोक लगा दी गई है.
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सिंधिया की थी निजी जमीन: कलेक्टर नगर निगम माधवी राजे सिंधिया केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, चित्रांगदा सिंधिया और नारायण बिल्डर्स एंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर को यह भी निर्देशित किया गया है कि वह इस जमीन को नहीं बेचेंगे. साथ ही यह जमीन पर कोई निर्माण आदि भी नहीं करेंगे. सिंधिया परिवार के ट्रस्ट की ओर से बताया गया है कि उक्त जमीन दिवंगत माधवराव सिंधिया के आधिपत्य की निजी रही है. उनकी मौत के बाद वारिस के नाते उन्हें यह जमीन मिली है. राणे द्वारा प्रस्तुत एक वादपत्र फरवरी 2018 में कोर्ट द्वारा निरस्त कर दिया गया था. जिसे चुनौती देते हुए उक्त अपील दायर की गई थी.