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Christmas Special 2020: ब्रिटिश काल में बना 300 साल पुराना क्राइस्ट चर्च, 1857 की क्रांति का गवाह है गिरजाघर - ब्रिटिश कालीन क्राइस्ट चर्च

ग्वालियर के उपनगर मुरार में लगभग 300 साल पुराना चर्च है. यहां देश विदेश से सैलानी क्राइस्ट चर्च को देखने आते हैं. इस चर्च की सबसे बड़ी खासियत है इसकी बनावट शैली जो ब्रिटिश है. साथ ही ये 1857 की क्रांति का मूक गवाह है.

Christmas celebration
क्रिसमस सेलिब्रेशन
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Published : Dec 24, 2020, 9:27 PM IST

ग्वालियर। कोरोना महामारी का असर दुनिया भर की लगभग हर अगली चीज़ पर पड़ा है. क्रिसमस का त्योहार भी इससे अछूता नहीं रहा. 25 दिसंबर को ईसाई समुदाय के लोग क्रिसमस सेलिब्रेट करेंगे. हालांकि इस बार का क्रिसमस सीमित दायरे में ही आयोजित होगा. वहीं हम आपको ग्वालियर के एक ऐसे चर्च के बारे में बताएंगे जो लगभग 300 साल पुराना है. इससे यह साफ होता है कि ग्वालियर एक ऐसा शहर है जिसका ईसाई धर्म से काफी पुराना नाता रहा है.

ब्रिटिश कालीन क्राइस्ट चर्च

ग्वालियर के उपनगर मुरार में बना क्राइस्ट चर्च लगभग 300 साल पुराना है. इस चर्च का निर्माण 1775 में एक ब्रिटिश ऑफिसर द्वारा करवाया गया था. उस समय ग्वालियर ब्रिटिश आर्मी का गढ़ माना जाता था. इस चर्च की पुष्टि 1844 के बंदोबस्त डॉक्यूमेंट से होती है. क्राइस्ट चर्च में ब्रिटिश आर्मी के ऑफिसर्स प्रार्थना करने आते थे. इस चर्च की सबसे बड़ी खासियत है कि इसने 1857 का आगाज और अंजाम दोनों देखा है. देश की आजादी का भी गवाह बना.

300 साल पुराना क्राइस्ट चर्च

आजादी से पहले ग्वालियर का मुरार एरिया ब्रिटिश आर्मी का कैंटोनमेंट था. इसलिए यहां पर चर्च का निर्माण किया गया. जिसमें फादर गोम्स की मुख्य भूमिका मानी जाती है. इस चर्च का निर्माण कराने के लिए ब्रिटिश शासन के दौर में आर्मी के अधिकारियों ने पैसे एकत्रित किया और इसे मूर्त रुप दिया. क्राइस्ट चर्च 1775 में तैयार हुआ था जिसकी पुष्टि 1844 के बंदोबस्त के डॉक्यूमेंट से होती है. पहले यह चर्च, चर्च ऑफ इंग्लैंड के हाथों में था, लेकिन बाद में चर्च एक्ट 1927 के तहत चर्च ऑफ इंडिया और इंडियन ट्रस्ट एक्ट के तहत इसे डाइसिस आफ नागपुर को हस्तांतरित कर दिया गया.

1857 की क्रांति से जुड़ाव

ग्वालियर में बना क्राइस्ट चर्च 1857 की क्रांति का गवाह है. क्रांति के दौरान ब्रिटिश आर्मी के कई अधिकारी मारे गये थे, जहां इन लोगों की कब्रें बनी हुई हैं. उस दौरान यहां पास में रहने वाली एक अधिकारी और उनके बच्चों की मौत हुई थी. इस चर्च में मरने वाले लोगों के नाम भी अंकित है.

चर्च पर थी सिंधिया राजवंश की विशेष कृपा

सिंधिया राजवंश के महाराजा माधवराव प्रथम ने इस चर्चा को 1915 में एक तोहफा दिया था. गिफ्ट के रूप में एक बड़ा घंटा दिया गया और यह घंटा बेहद खास मौके पर बजाया जाता है. इसके साथ ही इस चर्च की वास्तुकला को निहारने हर साल क्रिसमस के मौके पर विदेश से लोगआते हैं. ब्रिटिश आर्किटेक्ट को ध्यान में रखते हुए इसे आकर्षक रुप दिया गया. फादर एचएन मसीह के मुताबिक महाराजा माधवराव प्रथम भी इस चर्च में आते थे.

इस क्रिसमस पर होंगे सीमित आयोजन

कोरोना संक्रमण को देखते हुए इस बार क्रिसमस के मौके पर सीमित कार्यक्रम आयोजित होंगे. सुबह-शाम की प्रेयर के बाद सभी लोगों को घर पर क्रिसमस का त्योहार मनाने के लिए बोला गया है. इसके साथ ही क्रिसमस सेलिब्रेशन के मौके पर जिला प्रशासन के निर्देश के मुताबिक ही सार्वजनिक आयोजन होंगे.

ग्वालियर। कोरोना महामारी का असर दुनिया भर की लगभग हर अगली चीज़ पर पड़ा है. क्रिसमस का त्योहार भी इससे अछूता नहीं रहा. 25 दिसंबर को ईसाई समुदाय के लोग क्रिसमस सेलिब्रेट करेंगे. हालांकि इस बार का क्रिसमस सीमित दायरे में ही आयोजित होगा. वहीं हम आपको ग्वालियर के एक ऐसे चर्च के बारे में बताएंगे जो लगभग 300 साल पुराना है. इससे यह साफ होता है कि ग्वालियर एक ऐसा शहर है जिसका ईसाई धर्म से काफी पुराना नाता रहा है.

ब्रिटिश कालीन क्राइस्ट चर्च

ग्वालियर के उपनगर मुरार में बना क्राइस्ट चर्च लगभग 300 साल पुराना है. इस चर्च का निर्माण 1775 में एक ब्रिटिश ऑफिसर द्वारा करवाया गया था. उस समय ग्वालियर ब्रिटिश आर्मी का गढ़ माना जाता था. इस चर्च की पुष्टि 1844 के बंदोबस्त डॉक्यूमेंट से होती है. क्राइस्ट चर्च में ब्रिटिश आर्मी के ऑफिसर्स प्रार्थना करने आते थे. इस चर्च की सबसे बड़ी खासियत है कि इसने 1857 का आगाज और अंजाम दोनों देखा है. देश की आजादी का भी गवाह बना.

300 साल पुराना क्राइस्ट चर्च

आजादी से पहले ग्वालियर का मुरार एरिया ब्रिटिश आर्मी का कैंटोनमेंट था. इसलिए यहां पर चर्च का निर्माण किया गया. जिसमें फादर गोम्स की मुख्य भूमिका मानी जाती है. इस चर्च का निर्माण कराने के लिए ब्रिटिश शासन के दौर में आर्मी के अधिकारियों ने पैसे एकत्रित किया और इसे मूर्त रुप दिया. क्राइस्ट चर्च 1775 में तैयार हुआ था जिसकी पुष्टि 1844 के बंदोबस्त के डॉक्यूमेंट से होती है. पहले यह चर्च, चर्च ऑफ इंग्लैंड के हाथों में था, लेकिन बाद में चर्च एक्ट 1927 के तहत चर्च ऑफ इंडिया और इंडियन ट्रस्ट एक्ट के तहत इसे डाइसिस आफ नागपुर को हस्तांतरित कर दिया गया.

1857 की क्रांति से जुड़ाव

ग्वालियर में बना क्राइस्ट चर्च 1857 की क्रांति का गवाह है. क्रांति के दौरान ब्रिटिश आर्मी के कई अधिकारी मारे गये थे, जहां इन लोगों की कब्रें बनी हुई हैं. उस दौरान यहां पास में रहने वाली एक अधिकारी और उनके बच्चों की मौत हुई थी. इस चर्च में मरने वाले लोगों के नाम भी अंकित है.

चर्च पर थी सिंधिया राजवंश की विशेष कृपा

सिंधिया राजवंश के महाराजा माधवराव प्रथम ने इस चर्चा को 1915 में एक तोहफा दिया था. गिफ्ट के रूप में एक बड़ा घंटा दिया गया और यह घंटा बेहद खास मौके पर बजाया जाता है. इसके साथ ही इस चर्च की वास्तुकला को निहारने हर साल क्रिसमस के मौके पर विदेश से लोगआते हैं. ब्रिटिश आर्किटेक्ट को ध्यान में रखते हुए इसे आकर्षक रुप दिया गया. फादर एचएन मसीह के मुताबिक महाराजा माधवराव प्रथम भी इस चर्च में आते थे.

इस क्रिसमस पर होंगे सीमित आयोजन

कोरोना संक्रमण को देखते हुए इस बार क्रिसमस के मौके पर सीमित कार्यक्रम आयोजित होंगे. सुबह-शाम की प्रेयर के बाद सभी लोगों को घर पर क्रिसमस का त्योहार मनाने के लिए बोला गया है. इसके साथ ही क्रिसमस सेलिब्रेशन के मौके पर जिला प्रशासन के निर्देश के मुताबिक ही सार्वजनिक आयोजन होंगे.

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