डिंडौरी। ग्रामीण महिलाओं को अपने पैरों में खड़ा करने और उन्हें सशक्त बनाने के उद्देश्य से तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम का संचालन किया जा रहा है. आदिवासी जिला डिंडौरी की महिलाओं ने बीते चार सालों में कोदो कुटकी से अब तक कई किस्म के उत्पाद का निर्माण कर, उसे खाने लायक बनाया है. जिसे अब बड़ी मात्रा में तैयार कर एमपी टूरिज्म और जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों में सप्लाई किया जा रहा है. आइए जानते हैं अब तक कितनी महिलाएं इस संघ से जुड़ चुकी हैं और कितनी कमाई उन्हें हर महीने हो रही है.
शहपुरा जनपद के ग्राम गुरैया में तेजस्विनी समूह की महिलाओं ने बेकरी यूनिट खोला है. ये यूनिट कोदो कुटकी से बिस्किट बनाकर कुपोषण को मिटाने का काम कर रही है. कोदो कुटकी का उत्पादन डिंडौरी जिला में 31 हजार 600 हेक्टेयर में बहुतायत मात्रा में किया जाता है. लेकिन इसका फायदा किसानों को ज्यादा नहीं मिल पाता था. जब से से तेजस्विनी समूह ने जिले के अलग-अलग जगहों पर बेकरी यूनिट खोली है तब से कोदो कुटकी का उत्पादन करने वाले किसानों को फायदा होने लगा है.
इस कार्यक्रम से 1767 जुड़े लोग हैं, जो कोदो कुटकी का उत्पादन करते हैं और संघ को सीधे बेचते हैं. शहपुरा जनपद क्षेत्र के गुरैया ग्राम की तेजस्विनी जागृति महिला संघ की 12 महिलाएं रोजाना महुआ बिस्किट, कुटकी बिस्किट, कोदो बिस्किट, बटर बिस्किट, मक्का बिस्किट का उत्पादन कर रही हैं. साथ ही पैकिंग कर अलग-अलग गावों में भी उसे निर्यात कर रही हैं, जिसे अब तेजी से एमपीटी टूरिज्म और जिले की आंगनबाड़ी केंद्रों में पहुंचाया जा रहा है.
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तेजस्विनी जागृति महिला संघ की सचिव पूनम परस्ते ने बताया कि गुरैया ग्राम की बेकरी यूनिट में 12 से 13 महिलाएं काम कर रही हैं. उनके द्वारा तैयार किए गए उत्पाद को 125 आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों को नाश्ते के रूप में भेजा जाता है. बच्चे भी कोदो, कुटकी, महुआ और मक्के से बने उत्पाद को बड़े ही चाव से खाते हैं. वही इस बेकरी यूनिट में काम करने वाली हर महिला प्रतिमाह 4500 रुपए से लेकर 6000 रुपए तक कि आमदनी प्राप्त कर रही हैं.
ज्यादातर आंगनबाड़ी केंद्रों में अब कोदो कुटकी से निर्मित बिस्किट और बर्फी खाने के लिए भेजी जा रही है. इसके लिए उत्पाद में कई पोषक तत्वों का समावेश भी किया जा रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों की आंगनबाड़ी में बच्चों को कोदो कुटकी से बने बिस्किट और बर्फी खाने को दी जा रही है, जिसके चलते अब कुपोषण में कमी देखने को भी मिल रही है.