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'जेब्राफिश' खोजेगी मानव रोग, सागर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 30 हजार में बनाया 15 लाख का उपकरण - SAGAR UNIVERSITY CREATIVITY

सागर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के दुनिया में अपना लोहा मनवाया. मानव रोग की खोज करने वाले जेब्राफिश टैंक को 30 हजार की लागत से बना.

SAGAR university CREATIVITY
सागर के प्रोफेसरों ने बनाया जेब्राफिश उपकरण (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 19, 2025, 10:48 AM IST

Updated : Feb 19, 2025, 11:28 AM IST

सागर (कपिल तिवारी): जीव विज्ञान से जुड़ी रिसर्च के लिए जीव प्रेमियों के दबाव के चलते सरकार ने कई तरह की गाइडलाइन जारी की हैं. ऐसे में रिसर्च में उपयोग आने वाले जानवर जैसे चूहे, मेंढक, कुत्ते और बिल्ली आदि का रिसर्च के लिए उपयोग प्रतिबंधित कर दिया है. इस कंडीशन में वैज्ञानिकों ने जेब्राफिश का मानव जाति के उपयोग में आने वाली रिसर्च के लिए प्रयोग शुरू किया है. जेब्राफिश जीवन के विकासवाद के सिद्धांत के सीढ़ी नुमा मॉडल में ऐसा जीव है, जो सीढ़ी में बीचों-बीच आता है.

30 हजार में तैयार 15 लाख का उपकरण
रिसर्च के लिए जेब्राफिश का रखरखाव काफी महंगा होता है. जिस उपकरण में जेब्राफिश को रखा जाता है, उसे ओपन आरएसी के नाम से जाना जाता है. जिसकी कीमत 15 लाख रुपए से ऊपर होती है और शैक्षणिक संस्थाओं के लिए इसको खरीदना आसान नहीं होता है. ऐसे में डॉ. हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. योगेश भार्गव और डॉ. शुभम नेमा ने 15 लाख से ज्यादा कीमत का ये उपकरण महज 30 हजार में तैयार कर दिया. खास बात ये है कि दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस प्रयास की सराहना की है और अमेरिका की प्रतिष्ठित साइंस जर्नल जेब्राफिश ने इसे प्रकाशित भी किया है.

सागर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 30 हजार में बनाया जेब्राफिश उपकरण (ETV Bharat)

आखिर क्यों शुरू हुआ जेब्राफिश का उपयोग
माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के असि. प्रोफेसर डाॅ. योगेश भार्गव बताते हैं कि, ''सरकार की कई सारी गाइडलाइन सामने आयी हैं. एनिमल एक्टिविस्ट और लोगों में संवेदनाए बढ़ने के कारण वैज्ञानिक विकल्प की तलाश कर रहे हैं. सरकार ने चूहों पर प्रयोग बंद करवा दिया. डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को सीढी के रूप में देखते हैं, तो सीढ़ी में सबसे नीचे अकशेरुकी प्राणी (Invertebrate) और सबसे ऊपर मानव होगा. मानव की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को समझने के लिए किए जाने वाले शोध में चूहे, बत्तख, कुत्तों आदि का उपयोग करते थे. क्योंकि मानव जाति के नजदीक होने से इन पर रिसर्च कर सीधे दवाईया बनायी जा सकती हैं.''

PROFESSORS CREATED ZEBRAFISH TANK
सागर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दुनिया ने माना लोहा (ETV Bharat)

''लेकिन इनको लेकर नैतिक सवाल खडे़ होते हैं. यदि नैतिक मुद्दों को किनारे रख केंचुआ, मक्खियां और दूसरे कीट पर प्रयोग करते हैं, तो समस्या ये आती है कि कई बार इन जीवों पर दवाएं सफल होती है, लेकिन मानव जाति पर असफल हो जाती है. ऐसे में हमें ऐसा प्राणी चाहिए, जिसको लेकर नैतिक सवाल ना उठे और प्रयोग के लिए अच्छा साबित हो. इन सब के बीच जेब्राफिश ऐसे प्राणी के रूप में सामने आया है, जो विकासवाद के सिद्धांत की सीढी में बीचों बीच है. जिसमें खास बात ये है कि अकशेरूकी प्राणी और मानव के बीच का है, जिसमें दोनों की समानता पायी जाती है."

SAGAR university CREATIVITY
30 हजार में तैयार किया रिसर्च के लिए उपकरण (ETV Bharat)

जेब्राफिश का रखरखाव काफी महंगा
प्रो. योगेश भार्गव बताते हैं कि, ''सजावटी मछली बेंचने का व्यापार करने वालों के पास टैंक होता है, जिसमें मछलियां रखते हैं. लेकिन वो गंदगी से भरे होते हैं, जिनका कुछ समय के लिए उपयोग होता है. विज्ञान के प्रयोग के लिए जेब्राफिश को लंबे समय के लिए रखना होता है. उनकी सेहत, प्रजनन क्षमता और दूसरी शारीरिक क्रियाओं पर असर ना पडे़, इसके लिए उन्हें बेहतर वातावरण देना होता है. इसके लिए ऐसा सेटअप चाहिए होता है, जिसमें तीन टाइप का फिल्टरेशन होता है. जिसे ओपन आरएसी कहा जाता है. क्योंकि जेब्राफिश को हमेशा पानी में रहना होता है.''

SAGAR university CREATIVITY
अमेरिका की साइंस जर्नल जेब्राफिश ने इसे प्रकाशित किया (ETV Bharat)

''खाना पीना, उत्सर्जन और सभी क्रियाएं पानी में होती हैं. इसलिए तीन टाइप का फिल्टरेशन जरूरी होता है. पहला मैकिनिकल, दूसरा बायोलॉजिकलऔर तीसरा माइक्रोबियल एलिमिनेशन के लिए जरूरी होता है. ये सेटअप विदेश में मिलते हैं. हम लोगों ने जब इसे खरीदना चाहा, तो सबसे सस्ता कोटेशन 15 लाख रुपए का था. इस समस्या को हमने चुनौती के तौर पर लिया और फिर हमने इसे खुद तैयार किया.''

PROFESSORS CREATED ZEBRAFISH TANK
वैज्ञानिकों ने बनाया जेब्राफिश टैंक (ETV Bharat)

बरनोली के सिद्धांत ने दिखाया रास्ता
प्रो. योगेश भार्गव ने बताया, ''इस सेटअप को तैयार करने के लिए सेटअप की इंजीनियरिंग समझनी पड़ी जिसमें दो मुख्य बिंदु हैं. पहला सेल्फ क्लीनिंग जेब्राफिश टैंक और दूसरा बरनोली का सिद्धांत आते हैं, जिनकी महीने भर साफ सफाई की जरूरत नहीं पड़ती है. इसके लिए टैंक अलग तरीके से तैयार किए थे. लेकिन निर्माता टैक्नालाॅजी का खुलासा नहीं करते हैं. हमने बारीकी से अध्ययन किया तो पता चला कि ये बरनौली के सिद्धांत पर काम करता है. फिर हमने इसी सिद्धांत के आधार पर टैंक बनाए. हमने टी ज्वाइंट और आधा इंच पीव्हीसी पाइप के जरिए इसको तैयार कर लिया.

दुनिया ने माना लोहा
डॉ. योगेश भार्गव बताते हैं कि, ''जब हमने इसे तैयार कर लिया, तो हमने सोचा कि ये कोई बड़ी चीज नहीं है. लेकिन हमने जब हैदराबाद में वैज्ञानिकों को इसके बारे में बताया, तो उन्होंने कहा कि इसे अपने तक सीमित मत रखो, इसे प्रकाशित कराओ. तब हमने प्रकाशन के लिए भेजा, तो लोगों ने कई सवाल खडे़ किए. तो हमने इसे प्रायोगिक तौर पर तैयार करके दिखाया, तब जाकर अमेरिका की जेब्राफिश नाम की साइंस मैग्जीन में ये प्रकाशित हुआ है.''

सागर (कपिल तिवारी): जीव विज्ञान से जुड़ी रिसर्च के लिए जीव प्रेमियों के दबाव के चलते सरकार ने कई तरह की गाइडलाइन जारी की हैं. ऐसे में रिसर्च में उपयोग आने वाले जानवर जैसे चूहे, मेंढक, कुत्ते और बिल्ली आदि का रिसर्च के लिए उपयोग प्रतिबंधित कर दिया है. इस कंडीशन में वैज्ञानिकों ने जेब्राफिश का मानव जाति के उपयोग में आने वाली रिसर्च के लिए प्रयोग शुरू किया है. जेब्राफिश जीवन के विकासवाद के सिद्धांत के सीढ़ी नुमा मॉडल में ऐसा जीव है, जो सीढ़ी में बीचों-बीच आता है.

30 हजार में तैयार 15 लाख का उपकरण
रिसर्च के लिए जेब्राफिश का रखरखाव काफी महंगा होता है. जिस उपकरण में जेब्राफिश को रखा जाता है, उसे ओपन आरएसी के नाम से जाना जाता है. जिसकी कीमत 15 लाख रुपए से ऊपर होती है और शैक्षणिक संस्थाओं के लिए इसको खरीदना आसान नहीं होता है. ऐसे में डॉ. हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. योगेश भार्गव और डॉ. शुभम नेमा ने 15 लाख से ज्यादा कीमत का ये उपकरण महज 30 हजार में तैयार कर दिया. खास बात ये है कि दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस प्रयास की सराहना की है और अमेरिका की प्रतिष्ठित साइंस जर्नल जेब्राफिश ने इसे प्रकाशित भी किया है.

सागर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 30 हजार में बनाया जेब्राफिश उपकरण (ETV Bharat)

आखिर क्यों शुरू हुआ जेब्राफिश का उपयोग
माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के असि. प्रोफेसर डाॅ. योगेश भार्गव बताते हैं कि, ''सरकार की कई सारी गाइडलाइन सामने आयी हैं. एनिमल एक्टिविस्ट और लोगों में संवेदनाए बढ़ने के कारण वैज्ञानिक विकल्प की तलाश कर रहे हैं. सरकार ने चूहों पर प्रयोग बंद करवा दिया. डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को सीढी के रूप में देखते हैं, तो सीढ़ी में सबसे नीचे अकशेरुकी प्राणी (Invertebrate) और सबसे ऊपर मानव होगा. मानव की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को समझने के लिए किए जाने वाले शोध में चूहे, बत्तख, कुत्तों आदि का उपयोग करते थे. क्योंकि मानव जाति के नजदीक होने से इन पर रिसर्च कर सीधे दवाईया बनायी जा सकती हैं.''

PROFESSORS CREATED ZEBRAFISH TANK
सागर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दुनिया ने माना लोहा (ETV Bharat)

''लेकिन इनको लेकर नैतिक सवाल खडे़ होते हैं. यदि नैतिक मुद्दों को किनारे रख केंचुआ, मक्खियां और दूसरे कीट पर प्रयोग करते हैं, तो समस्या ये आती है कि कई बार इन जीवों पर दवाएं सफल होती है, लेकिन मानव जाति पर असफल हो जाती है. ऐसे में हमें ऐसा प्राणी चाहिए, जिसको लेकर नैतिक सवाल ना उठे और प्रयोग के लिए अच्छा साबित हो. इन सब के बीच जेब्राफिश ऐसे प्राणी के रूप में सामने आया है, जो विकासवाद के सिद्धांत की सीढी में बीचों बीच है. जिसमें खास बात ये है कि अकशेरूकी प्राणी और मानव के बीच का है, जिसमें दोनों की समानता पायी जाती है."

SAGAR university CREATIVITY
30 हजार में तैयार किया रिसर्च के लिए उपकरण (ETV Bharat)

जेब्राफिश का रखरखाव काफी महंगा
प्रो. योगेश भार्गव बताते हैं कि, ''सजावटी मछली बेंचने का व्यापार करने वालों के पास टैंक होता है, जिसमें मछलियां रखते हैं. लेकिन वो गंदगी से भरे होते हैं, जिनका कुछ समय के लिए उपयोग होता है. विज्ञान के प्रयोग के लिए जेब्राफिश को लंबे समय के लिए रखना होता है. उनकी सेहत, प्रजनन क्षमता और दूसरी शारीरिक क्रियाओं पर असर ना पडे़, इसके लिए उन्हें बेहतर वातावरण देना होता है. इसके लिए ऐसा सेटअप चाहिए होता है, जिसमें तीन टाइप का फिल्टरेशन होता है. जिसे ओपन आरएसी कहा जाता है. क्योंकि जेब्राफिश को हमेशा पानी में रहना होता है.''

SAGAR university CREATIVITY
अमेरिका की साइंस जर्नल जेब्राफिश ने इसे प्रकाशित किया (ETV Bharat)

''खाना पीना, उत्सर्जन और सभी क्रियाएं पानी में होती हैं. इसलिए तीन टाइप का फिल्टरेशन जरूरी होता है. पहला मैकिनिकल, दूसरा बायोलॉजिकलऔर तीसरा माइक्रोबियल एलिमिनेशन के लिए जरूरी होता है. ये सेटअप विदेश में मिलते हैं. हम लोगों ने जब इसे खरीदना चाहा, तो सबसे सस्ता कोटेशन 15 लाख रुपए का था. इस समस्या को हमने चुनौती के तौर पर लिया और फिर हमने इसे खुद तैयार किया.''

PROFESSORS CREATED ZEBRAFISH TANK
वैज्ञानिकों ने बनाया जेब्राफिश टैंक (ETV Bharat)

बरनोली के सिद्धांत ने दिखाया रास्ता
प्रो. योगेश भार्गव ने बताया, ''इस सेटअप को तैयार करने के लिए सेटअप की इंजीनियरिंग समझनी पड़ी जिसमें दो मुख्य बिंदु हैं. पहला सेल्फ क्लीनिंग जेब्राफिश टैंक और दूसरा बरनोली का सिद्धांत आते हैं, जिनकी महीने भर साफ सफाई की जरूरत नहीं पड़ती है. इसके लिए टैंक अलग तरीके से तैयार किए थे. लेकिन निर्माता टैक्नालाॅजी का खुलासा नहीं करते हैं. हमने बारीकी से अध्ययन किया तो पता चला कि ये बरनौली के सिद्धांत पर काम करता है. फिर हमने इसी सिद्धांत के आधार पर टैंक बनाए. हमने टी ज्वाइंट और आधा इंच पीव्हीसी पाइप के जरिए इसको तैयार कर लिया.

दुनिया ने माना लोहा
डॉ. योगेश भार्गव बताते हैं कि, ''जब हमने इसे तैयार कर लिया, तो हमने सोचा कि ये कोई बड़ी चीज नहीं है. लेकिन हमने जब हैदराबाद में वैज्ञानिकों को इसके बारे में बताया, तो उन्होंने कहा कि इसे अपने तक सीमित मत रखो, इसे प्रकाशित कराओ. तब हमने प्रकाशन के लिए भेजा, तो लोगों ने कई सवाल खडे़ किए. तो हमने इसे प्रायोगिक तौर पर तैयार करके दिखाया, तब जाकर अमेरिका की जेब्राफिश नाम की साइंस मैग्जीन में ये प्रकाशित हुआ है.''

Last Updated : Feb 19, 2025, 11:28 AM IST
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