डिंडौरी। मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले के लोग आज भी सड़क और पानी जैसी बुनियादी जरूरतों को तरसते रहते हैं. जिला के राघोपुर गांव के किसान सड़क और पानी के लिए मोहताज हैं, यहां के ग्रामीण भगवान भरोसे जीवन यापन कर रहे हैं.
ये कौन सा विकास ?
डिंडौरी जिला यूं तो बैगा बाहुल्य आदिवासी जिला है. यहां विकास के नाम पर करोड़ों रुपये प्रदेश एवं केंद्र सरकार भेजती है, लेकिन मेहदवानी जनपद क्षेत्र के राघोपुर गांव के किसानों ने जब गांव की कहानी सुनाई, तो उसे जानकर ऐसे नहीं लगता है कि करोड़ों की राशि का 10 प्रतिशत अंश भी इस गांव के विकास में लगा है.
पुराने ढर्रे पर ग्रामीणों का आवागमन
करीब 24 गांव से लगे राघोपुर गांव जाने के लिए ग्रामीणों को दांडी यात्रा करना पड़ता है. क्योंकि पक्की सड़क इस गांव के में आजादी के 70 सालों बाद भी नहीं बनाई गई है. आलम यह है कि अगर इस गांव में कोई बीमार पड़ जाए या महिला गर्भवती हो जाए, तो पालकी के सहारे लगभग 5 किलोमीटर पैदल कंधे में लादकर मुख्य सड़क तक जाना पड़ता है.
विकास की बात नहीं सुनते अधिकारी और नेता
खेत में जुताई में लगे तुलाराम की मानें तो जिन नेताओं को वोट देकर ग्रामीणों ने जिताया है, वह कभी पलटकर गांव की तरफ नहीं आते हैं. अगर ग्रामीण अधिकारियों को अपने गांव की समस्या बताते हैं, तो वह अनसुना कर देते हैं. गांव में न तो पक्की सड़क है. न बिजली है, और न ही पानी है. खेतों की जुताई भी किसान और ग्रामीण भगवान के भरोसे ही करते हैं. अगर वह भी रूठ गया तो भूखे रहने की नौमत आ जाती है.
पुल बनते ही दो टुकड़े
गांव में लगभग 3 से 4 साल पहले नाले में पुल बनाया गया था, लेकिन वह भी इतना कमजोर रहा, कि ज्यादा दिन नहीं टिक सका, और टूट गया. पुल के टूटने से न तो कोई जांच हुई, न ही कोई कार्रवाई हुई है. अब अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि किस तरह से इस क्षेत्र में सरकारी तंत्र का राज चल रहा है, और गांव की जनता बेबस होकर भगवान के सहारे जिंदगी जीने को मजबूर है.
पहले भाजपा और फिर कांग्रेस
डिंडौरी जिला के शहपुरा विधानसभा क्षेत्र से पहले बीजेपी से ओमप्रकाश धुर्वे विधायक रहे. वहीं मौजूदा समय पर कांग्रेस से भूपेंद्र मरावी विधायक हैं. लेकिन हालात जस के तस है. गरीब किसानों का कहना है की नेता वोट मांगने आते हैं, लेकिन जीतने के बाद दोबरा अपना चेहरा नहीं दिखाते हैं.