दमोह। हाथ में फूल और दूध लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े भक्त इस इंतजार में रहते हैं कि जल्द ही वो अपने आराध्य के दर्शन कर सकेंगे. आराध्य तक जल्दी पहुंचने की होड़ और साथ में लगते शिव के जयकारे. ये नजारा है दमोह के स्वयंभू शिवमंदिर का, जिसमें विराजमान शिवलिंग के दर्शन करने के लिए शंभू के भक्त मीलों दूर से यहां आते हैं.
मराठा शासनकाल में बना ये मंदिर सैकड़ों सालों से करोड़ों लोगों की आस्था और भक्ति का केंद्र बना हुआ है. ये उन भक्तों की आस्था का प्रतीक है, जिन्हें विश्वास है कि भगवान शिव के इस स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन करने से उनकी सारी इच्छाएं और मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी. जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर बने इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 1711 में हुआ था.
मंदिर के प्रमुख पुजारी राम कृपाल पाठक बताते हैं कि सन 1711 में दीवान बालाजी राव चांदोरकर अपने सफर के दौरान रास्ते में रुककर आराम कर रहे थे. तब भगवान शिव ने सपने में आकर उन्हें बताया था कि जहां बालाजी राव का घोड़ा बंधा है, वहीं उनका स्वयंभू शिवलिंग मौजूद है. 35 फीट तक खुदाई करने के बाद भी शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं मिल सका, इसलिए उन्होंने वहीं पर मंदिर का निर्माण करा दिया.
शिव का यह अद्भुत मंदिर करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है. कहते हैं कि यहां मांगी हर मन्नत पूरी हो जाती है. इसलिए बाबा के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है. जागेश्वर नाथ धाम, बांदकपुर धाम जैसे कई नामों से प्रचलित इस मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण में भी है.