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अद्भुत है दमोह का स्वयंभू शिवलिंग, आज तक नहीं मिल सका है इसका आखिरी छोर

दमोह में बने शिवमंदिर में विराजमान शिवलिंग अद्भुत है. मराठा शासनकाल के इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो कि करोड़ो लोगों की आस्था का केंद्र है.

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Published : Mar 25, 2019, 5:58 PM IST

दमोह शिवमंदिर।

दमोह। हाथ में फूल और दूध लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े भक्त इस इंतजार में रहते हैं कि जल्द ही वो अपने आराध्य के दर्शन कर सकेंगे. आराध्य तक जल्दी पहुंचने की होड़ और साथ में लगते शिव के जयकारे. ये नजारा है दमोह के स्वयंभू शिवमंदिर का, जिसमें विराजमान शिवलिंग के दर्शन करने के लिए शंभू के भक्त मीलों दूर से यहां आते हैं.

दमोह शिवमंदिर।

मराठा शासनकाल में बना ये मंदिर सैकड़ों सालों से करोड़ों लोगों की आस्था और भक्ति का केंद्र बना हुआ है. ये उन भक्तों की आस्था का प्रतीक है, जिन्हें विश्वास है कि भगवान शिव के इस स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन करने से उनकी सारी इच्छाएं और मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी. जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर बने इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 1711 में हुआ था.

मंदिर के प्रमुख पुजारी राम कृपाल पाठक बताते हैं कि सन 1711 में दीवान बालाजी राव चांदोरकर अपने सफर के दौरान रास्ते में रुककर आराम कर रहे थे. तब भगवान शिव ने सपने में आकर उन्हें बताया था कि जहां बालाजी राव का घोड़ा बंधा है, वहीं उनका स्वयंभू शिवलिंग मौजूद है. 35 फीट तक खुदाई करने के बाद भी शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं मिल सका, इसलिए उन्होंने वहीं पर मंदिर का निर्माण करा दिया.

शिव का यह अद्भुत मंदिर करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है. कहते हैं कि यहां मांगी हर मन्नत पूरी हो जाती है. इसलिए बाबा के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है. जागेश्वर नाथ धाम, बांदकपुर धाम जैसे कई नामों से प्रचलित इस मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण में भी है.

दमोह। हाथ में फूल और दूध लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े भक्त इस इंतजार में रहते हैं कि जल्द ही वो अपने आराध्य के दर्शन कर सकेंगे. आराध्य तक जल्दी पहुंचने की होड़ और साथ में लगते शिव के जयकारे. ये नजारा है दमोह के स्वयंभू शिवमंदिर का, जिसमें विराजमान शिवलिंग के दर्शन करने के लिए शंभू के भक्त मीलों दूर से यहां आते हैं.

दमोह शिवमंदिर।

मराठा शासनकाल में बना ये मंदिर सैकड़ों सालों से करोड़ों लोगों की आस्था और भक्ति का केंद्र बना हुआ है. ये उन भक्तों की आस्था का प्रतीक है, जिन्हें विश्वास है कि भगवान शिव के इस स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन करने से उनकी सारी इच्छाएं और मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी. जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर बने इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 1711 में हुआ था.

मंदिर के प्रमुख पुजारी राम कृपाल पाठक बताते हैं कि सन 1711 में दीवान बालाजी राव चांदोरकर अपने सफर के दौरान रास्ते में रुककर आराम कर रहे थे. तब भगवान शिव ने सपने में आकर उन्हें बताया था कि जहां बालाजी राव का घोड़ा बंधा है, वहीं उनका स्वयंभू शिवलिंग मौजूद है. 35 फीट तक खुदाई करने के बाद भी शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं मिल सका, इसलिए उन्होंने वहीं पर मंदिर का निर्माण करा दिया.

शिव का यह अद्भुत मंदिर करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है. कहते हैं कि यहां मांगी हर मन्नत पूरी हो जाती है. इसलिए बाबा के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है. जागेश्वर नाथ धाम, बांदकपुर धाम जैसे कई नामों से प्रचलित इस मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण में भी है.

Intro:स्पेशल स्टोरी

स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं भगवान जागेश्वर नाथ

300 साल पहले हुआ था इस मंदिर का निर्माण

मराठा शासनकाल में बनाया गया था यह शिव मंदिर

प्रमुख हिंदू त्योहारों पर लाखों की संख्या में आते हैं भक्त

कावड़ यात्रा लेकर हर साल हजारों लोग पैदल चल कर आते हैं इस धाम में

एंकर. दमोह जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर सनातन परंपरा का एक अनोखा मंदिर विद्यमान है. यह मंदिर शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है. सैकड़ों सालों से इस मंदिर में भक्तों का सैलाब हर प्रमुख हिंदू धर्म के त्यौहार पर दिखता है. इतना ही नहीं यह स्वयंभू शिवलिंग लोगों की आस्था का विश्वास का और मनोकामना का प्रतीक है. दमोह सहित पूरे प्रदेश एवं देश के लोग हर साल यहां पर आकर भगवान भोलेनाथ के दर पर माथा टेकते हैं.


Body: VO. बांदकपुर धाम जागेश्वर नाथ धाम स्वयंभू शिवलिंग धाम सहित अनेक नामों से विख्यात यह स्थान भगवान भोलेनाथ का दरबार है. सन 1711 में दीवान बालाजी राव चांदोरकर को यात्रा के दौरान भगवान शिव ने स्वप्न देकर अपनी उपस्थिति का आभास कराया था. यात्रा के दौरान स्वप्न में भगवान ने दीवान साहब को यह कहा था कि जहां पर आपका घोड़ा बंधा हुआ है वहीं पर स्वयंभू शिवलिंग है, और स्वप्न के बाद मराठा शासनकाल के दीवान साहब ने इस स्थान की करीब 35 फुट तक खुदाई कराई थी. लेकिन स्वयंभू शिवलिंग का अंतिम किनारा नहीं मिला था. शिवलिंग का अंतिम किनारा नहीं मिलने के चलते दीवान साहब को शिवलिंग के स्थान पर ही मंदिर बनवाना पड़ा और यह मंदिर 300 सालों से लोगों की आस्था का केंद्र है. स्वयंभू शिवलिंग होने के कारण लोगो की मनोकामनाएं यहां पर पूरी होती है. मनोकामना के लिए लोग यहां पर आकर उल्टे हाथों के चिन्ह बनाते हैं. वही मनोकामना पूरी होने पर लोग उन हाथों को सीधा करने के लिए इस मंदिर में फिर आते हैं. मनोकामना लेकर आने वाले और मनोकामना पूरी होने पर हाथ के चिन्हों को सीधा करके पूजन कराने वाले लोगों का रिकॉर्ड भी मंदिर में रखा जाता है. स्कंद पुराण के मुताबिक यह स्थान स्वयंभू शिवलिंग का है. मंदिर के प्रमुख पुजारी के अनुसार मंदिर का आकार पुराना ही है. लेकिन भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग का आकार कुछ सालों में तिल भर बढ़ता है, और यही कारण है कि जलाभिषेक, दुग्ध अभिषेक, पंचामृत अभिषेक सहित अन्य क्रियाएं भी शिवलिंग पर होने के बाद भी शिवलिंग का आकार छोटा नहीं हुआ. बल्कि शिवलिंग अपने आकार में बढ़ता ही जा रहा है.

बाइट पंडित राम कृपाल पाठक मंदिर के प्रमुख पुजारी


Conclusion:VO. दमोह जिले के अंतर्गत आने वाले जागेश्वर नाथ को 13 वे ज्योतिर्लिंग का दर्जा भी प्राप्त है. क्योंकि यह स्थान स्वयंभू शिवलिंग का है. यहां पर आसपास के इलाकों के लोग आकर ज्योतिर्लिंग जाने का पुण्य कमाते हैं. साथ ही यहां का दर्शन करें बिना 12 ज्योतिर्लिंग की यात्रा को पूरा नहीं माना जाता. महाशिवरात्रि के साथ अन्य सभी त्योहारों में यहां पर आस्था का सैलाब दिखाई देता है.

आशीष कुमार जैन
ईटीवी भारत दमोह
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