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88 साल की उम्र में भी 'साइकिल वाले दादाजी' दे रहे युवाओं को मात, बचपन के शौक ने दिलाई पहचान

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Published : Jul 25, 2019, 3:16 PM IST

दमोह के बुजुर्ग महेंद्र पांडे का साइकिल प्रेम आज पर्यावरण संरक्षण में भी मिसाल बन गया है. 88 साल की उम्र में भी वे साइकिल चलाकर युवाओं को मात दे रहे हैं. वे इतनी उम्र में भी काफी स्वस्थ्य हैं, जिसका श्रेय वो साइकिल चलाने को देते हैं.

महेंद्र पांडे का साइकिल से ताउम्र का सफर

दमोह। जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर बिजोरी पाठक में रहने वाले बुजुर्ग महेंद्र पांडे का साइकिल चलाने वाला शौक अब उनकी पहचान बन चुका है. यही खासियत उन्हें दूसरों से अलग बनाती है, गांव के लोग इन्हें साइकिल वाले दादा जी के नाम से जानते हैं और उन्हें सम्मान भी देते हैं.

साइकिल चलाने के शौक ने ही दिलाई पहचान

लोगों के लिए मिसाल बने महेंद्र पांडे का कहना है कि साइकिल चलाने से व्यक्ति जीवनभर स्वस्थ रहता है. उन्होंने कहा कि साइकिल चलाने की वजह से ही आज तक उन्हें चश्मा नहीं लगा और ना ही उनके दांत टूटे हैं, वे एकदम स्वस्थ हैं. उन्होंने कहा कि उनके सभी अंग नौजवानों की तरह काम कर रहे हैं. उन्होंने नव पीढ़ी को अपने व्यस्त समय में भी साइकिल चलाने की सलाह दी है.

महेंद्र पांडे ने कहा कि जब वे 13 साल के थे, तो माता-पिता के गुजर जाने के बाद इनकी बहन ने पढ़ाई के लिए बाहर जाने के लिए एक साइकिल दिला दी थी. उस समय से उन्हें साइकिल चलाना पसंद है. आज 88 साल की उम्र में भी उन्होंने साइकिल का साथ नहीं छोड़ा है. उन्होंने कहा कि जब उन्हें दमोह आना होता है, तो वे 60 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करके यहां आ जाते हैं. उन्होंने कहा कि उनका घर नाती-पोतों से भरा-पूरा और संपन्न है.
खास बात ये है कि उनके घर में दोपहिया-चारपहिया दोनों तरह के वाहन हैं, इसके बावजूद वे साइकिल से ही सफर करते हैं, चाहे उन्हें पन्ना, नरसिंहपुर, जबलपुर, सागर या टीकमगढ़ जैसी लंबी दूरी की यात्रा ही क्यों न करनी पड़े.

दमोह। जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर बिजोरी पाठक में रहने वाले बुजुर्ग महेंद्र पांडे का साइकिल चलाने वाला शौक अब उनकी पहचान बन चुका है. यही खासियत उन्हें दूसरों से अलग बनाती है, गांव के लोग इन्हें साइकिल वाले दादा जी के नाम से जानते हैं और उन्हें सम्मान भी देते हैं.

साइकिल चलाने के शौक ने ही दिलाई पहचान

लोगों के लिए मिसाल बने महेंद्र पांडे का कहना है कि साइकिल चलाने से व्यक्ति जीवनभर स्वस्थ रहता है. उन्होंने कहा कि साइकिल चलाने की वजह से ही आज तक उन्हें चश्मा नहीं लगा और ना ही उनके दांत टूटे हैं, वे एकदम स्वस्थ हैं. उन्होंने कहा कि उनके सभी अंग नौजवानों की तरह काम कर रहे हैं. उन्होंने नव पीढ़ी को अपने व्यस्त समय में भी साइकिल चलाने की सलाह दी है.

महेंद्र पांडे ने कहा कि जब वे 13 साल के थे, तो माता-पिता के गुजर जाने के बाद इनकी बहन ने पढ़ाई के लिए बाहर जाने के लिए एक साइकिल दिला दी थी. उस समय से उन्हें साइकिल चलाना पसंद है. आज 88 साल की उम्र में भी उन्होंने साइकिल का साथ नहीं छोड़ा है. उन्होंने कहा कि जब उन्हें दमोह आना होता है, तो वे 60 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करके यहां आ जाते हैं. उन्होंने कहा कि उनका घर नाती-पोतों से भरा-पूरा और संपन्न है.
खास बात ये है कि उनके घर में दोपहिया-चारपहिया दोनों तरह के वाहन हैं, इसके बावजूद वे साइकिल से ही सफर करते हैं, चाहे उन्हें पन्ना, नरसिंहपुर, जबलपुर, सागर या टीकमगढ़ जैसी लंबी दूरी की यात्रा ही क्यों न करनी पड़े.

Intro:88 साल की उम्र में 60 किलोमीटर साइकिल चलाना इस बुजुर्ग को लगता है अच्छा

13 साल की उम्र से शुरू किया था साइकिल चलाना अभी भी नहीं छूट रहा बुजुर्ग का शौक

घर में संपन्नता के बाद भी साइकिल को बताते हैं स्वस्थ रहने का कारण नहीं लगा चश्मा ना ही टूटे हैं दांत

दमोह के गांव में रहने वाले एक बुजुर्ग को आसपास के ग्रामीण साइकिल वाले दादा जी के नाम से जानते हैं. पूजा पाठ करने के कारण आस-पास के गांव में उनका जाना होता है. वही लोग उनको सम्मान भी देते हैं. लेकिन एक खास बात इन बुजुर्ग को सबसे अलग बनाती है, वह है इन बुजुर्ग के द्वारा 88 साल की उम्र में भी साइकल चलाना. साइकिल चलाने के कारण वे स्वस्थ रहने का दावा भी करते हैं. साथ ही यह भी कहते हैं कि वे रिश्तेदारों में भी साइकिल से ही आते जाते हैं. दमोह के आसपास के जिलों में वे साइकिल से आने जाने का दावा भी करते हैं, और इस उम्र में जिला मुख्यालय की दूरी जो 60 किलोमीटर है वह तय करने का दावा करते हैं.


Body:दमोह जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर बिजोरी पाठक में रहने वाले यह बुजुर्ग महेंद्र पांडे हैं. जब यह बुजुर्ग 13 साल के थे तो माता-पिता के गुजर जाने के बाद इनकी बहन ने पढ़ाई के लिए बाहर जाने के कारण सुविधा के चलते एक साइकिल दिला दी थी. उस समय से शौक बुजुर्ग को अच्छा लगा तो आज भी 88 साल की उम्र में बुजुर्ग साइकिल चलाकर सफर तय करते हैं. बुजुर्ग का कहना है कि साइकिल चलाने से व्यक्ति का जीवन स्वस्थ रहता है. साईकिल चलाने का कारण है कि उन्हें अभी तक चश्मा नहीं लगा, ना ही उनको उनके दांत टूटे हैं. वह स्वस्थ रहते हैं. जब उनको दमोह आना होता है तो वे 60 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करके दमोह आ जाते हैं. नाती पंक्तियों से भरा पूरा परिवार होने के बाद घर में संपन्नता भी है. दोपहिया एवं चार पहिया वाहन भी हैं. इसके बावजूद उनको साइकिल चलाना अच्छा लगता है. यही कारण है कि वे साइकिल वाले दादा जी के नाम से आस-पास के गांव में जाने जाते हैं.

बाइट महेंद्र पांडे साइकिल चलाने वाले बुजुर्ग


Conclusion:जिले के गांव में रहने वाले बुजुर्ग महेंद्र पांडे का यह शौक उनकी पहचान बन चुका है. वे मानते हैं कि साइकिल चलाने के कारण ही 80 का दशक पार करने के बाद भी ना तो उनको चश्मा लगा है, और ना ही उनके दांत ही टूट पाए हैं. क्योंकि साईकिल चलाने से वह पूरे शरीर को संतुलित एवं संचालित कर पाते हैं. जिससे उनके सभी अंग नौजवानों की तरह काम कर रहे हैं. उन्होंने नव पीढ़ी को अपने व्यस्त समय में भी साइकिल चलाने की सलाह दी है.

आशीष कुमार जैन
ईटीवी भारत दमोह
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