छिंदवाड़ा। शिक्षा किसी भी रूप में दी जा सकती है, इसका एक उदाहरण हैं शिवकुमार विश्वकर्मा, शिक्षा चाहे किसी भी प्रकार की हो बिना गुरू प्राप्त नहीं हो सकती, आज के समय में लोग शिक्षा के लिए दर-दर भटकते हैं और धन दौलत का खर्च कर देते हैं. उसके बाद भी सही शिक्षा नहीं मिल पाती, ऐसे में एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो से सुरों का ज्ञान लगभग 35 वर्षों से बिना किसी फीस के दे रहे हैं.
शिक्षा के अनेक रूप में होती है, चाहे व किताबों की शिक्षा हो या अध्यात्म और सुरों की, बिना गुरू के इनका पूरा होना संभव नहीं हैं. महंगी कोंचिंग क्लासेस और कॉलेज की भारी भरकम फीस के दौर में एक शिक्षक ऐसे भी हैं, जो लगभग 35 सालों से निस्वार्थ और निशुल्क सुरों की शिक्षा का उजाला बिखेर रहे हैं. शिवकुमार के पिता संगीत का प्रति काफी लगाव था, वे हारमोनियम और बांसुरी बजाते थे. उनको देख देखकर ही शिवकुमार ने बांसुरी बजाना सीखा, बांसुरी सीखने के बाद उन्हें लगा कि उन्होंने जो शिक्षा अपने पिता से ग्रहण की है, उसे और भी लोगों में बांटना चाहिए, और इसी सोच के साथ शिवकुमार ने फ्री में ही युवाओं और संगीत सीखने की इच्छा रखने वालों को बांसुरी सिखाना शुरू कर दिया.
शिवकुमार बांसुरी वादन की कला काफी बच्चों को सिखा चुके हैं. भले ही उनकी आंखों से अब दिखना बंद हो गया है फिर भी वह चारों ओर सुरों का उजाला फैला रहे हैं. हालांकि उनके विद्यार्थियों में से लड़के ही नहीं बल्कि लड़कियां भी उनसे बांसुरी सीखने आती हैं. उनके छात्रों का कहना है, पहले हम ही लोगों को बुलाकर शिक्षा दे दिया करते थे और अब लगभग तीन साल से वे मंदिर में बैठकर बांसुरी बजाना सिखा रहे हैं, वे कहते हैं कि ऐसा करने से उन्हें आत्म संतुष्टि मिलती है.