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छतरपुर: रोजगार की तलाश में पलायन को मजबूर है लोग, प्रशासन बन रहा है मूक दर्शक - mp news

आज भी बुंदेलखंड से हजारों की संख्या में लोग रोजगार की तलाश में पलायान कर रहे है लेकिन सरकार और प्रशासन कुंभकरण की नींद सो रहा है.

बुंदेलखंड में लगातार हो रहा पलायन
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Published : Jul 27, 2019, 8:54 PM IST

छतरपुर। बुंदेलखंड में आज भी पलायन एक बड़ी समस्या है. ग्रामीण क्षेत्रों से लगातार लोग शहरों का रुख कर रहे हैं, छतरपुर जिले से सटे आदिवासी गांव हर साल पलायन के चलते खाली हो जाते हैं. सूने पड़े मकान, लटकते ताले और पलायन करते लोग यह हकीकत कुछ बुंदेलखंड की है. दौर बदलता गया, सरकारें बदलती गई, अगर कुछ नहीं बदला तो वो है यहां के हालात.यहां पलायन उस नासूर की तरह है जिसे खत्म करने के लिए सरकारें दावे तो करती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत तो ये सूने पड़े मकान खुद ही बयां कर रहे हैं.

बुंदेलखंड में लगातार हो रहा पलायन

पलायन को रोकने की सारी कवायदे सरकारी कागजों तक सिमट कर रह गई हैं. मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना भी बुंदेलखंड से पलायन को नहीं रोक सकी है. यही वजह है कि आज भी रोजी- रोटी की तलाश में हजारों ग्रामीण बुंदेलखंड से शहरों की तरफ पलायन कर जाते हैं. छतरपुर जिले की सीमा से सटा हुआ मानिकपुर एक ऐसा गांव है. जहां पर अधिकांश आदिवासी रहते हैं. इस गांव की जनसंख्या लगभग 6 सौ के आसपास है.

वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासियों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन रोजगार की तलाश में गांव खाली हो जाते हैं. गांव में रह जाते हैं तो कुछ बुजुर्ग. वहीं गांव में ही रहने वाले हरगोविंद बताते हैं कि गांव में रोजगार मुहैया नहीं है इसलिए मजबूरन गांव छोड़कर जाना पड़ता है. मजबूरन इस गांव में कुछ बुजुर्ग लोग ही रह जाते हैं.

जिले में बड़ी संख्या में पलायन हो रहा है लेकिन हद तो तब हो गई जब जिम्मेदार अधिकारी मामले से अनभिज्ञता जता रहे है. आज भी बुंदेलखंड से हजारों की संख्या में लोग रोजगार की तलाश में दूसरी जगह पलायन कर करे है और प्रशसान कुंभकरण की नींद सो रहा है.

छतरपुर। बुंदेलखंड में आज भी पलायन एक बड़ी समस्या है. ग्रामीण क्षेत्रों से लगातार लोग शहरों का रुख कर रहे हैं, छतरपुर जिले से सटे आदिवासी गांव हर साल पलायन के चलते खाली हो जाते हैं. सूने पड़े मकान, लटकते ताले और पलायन करते लोग यह हकीकत कुछ बुंदेलखंड की है. दौर बदलता गया, सरकारें बदलती गई, अगर कुछ नहीं बदला तो वो है यहां के हालात.यहां पलायन उस नासूर की तरह है जिसे खत्म करने के लिए सरकारें दावे तो करती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत तो ये सूने पड़े मकान खुद ही बयां कर रहे हैं.

बुंदेलखंड में लगातार हो रहा पलायन

पलायन को रोकने की सारी कवायदे सरकारी कागजों तक सिमट कर रह गई हैं. मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना भी बुंदेलखंड से पलायन को नहीं रोक सकी है. यही वजह है कि आज भी रोजी- रोटी की तलाश में हजारों ग्रामीण बुंदेलखंड से शहरों की तरफ पलायन कर जाते हैं. छतरपुर जिले की सीमा से सटा हुआ मानिकपुर एक ऐसा गांव है. जहां पर अधिकांश आदिवासी रहते हैं. इस गांव की जनसंख्या लगभग 6 सौ के आसपास है.

वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासियों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन रोजगार की तलाश में गांव खाली हो जाते हैं. गांव में रह जाते हैं तो कुछ बुजुर्ग. वहीं गांव में ही रहने वाले हरगोविंद बताते हैं कि गांव में रोजगार मुहैया नहीं है इसलिए मजबूरन गांव छोड़कर जाना पड़ता है. मजबूरन इस गांव में कुछ बुजुर्ग लोग ही रह जाते हैं.

जिले में बड़ी संख्या में पलायन हो रहा है लेकिन हद तो तब हो गई जब जिम्मेदार अधिकारी मामले से अनभिज्ञता जता रहे है. आज भी बुंदेलखंड से हजारों की संख्या में लोग रोजगार की तलाश में दूसरी जगह पलायन कर करे है और प्रशसान कुंभकरण की नींद सो रहा है.

Intro:बुंदेलखंड में आज भी पलायन एक बड़ी समस्या बना हुआ है ग्रामीण क्षेत्रों से लगातार पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है छतरपुर जिले से सटा एक आदिवासी गांव हर साल पलायन के चलते खाली हो जाता है,!


Body:सूने पड़े मकान लटक के ताले पलायन करते लोग यह हकीकत कुछ बुंदेलखंड की है जिससे आर्थिक जाति सरकारें रोक नहीं पाए बुंदेलखंड के लिए पलायन उस नासूर की तरह है जिस को खत्म करने के लिए सरकारी दावे तो करती है लेकिन हकीकत कुछ और ही है!

पलायन सरकारी कागजों में ही रुक कर रह गया है मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना भी बुंदेलखंड से पलायन को नहीं रोक सकी यही वजह है कि आज भी रोजी-रोटी की तलाश में हजारों ग्रामीण बुंदेलखंड से जाते हैं छतरपुर जिले की सीमा से सटा हुआ मानिकपुर एक ऐसा गांव है जहां पर अधिकांश आदिवासी रहते हैं इस गांव की जनसंख्या लगभग 600 के आसपास है वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासियों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं !

लेकिन रोजगार की तलाश में गांव खाली हो जाता है गांव में रह जाते हैं तो कुछ बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि रोजगार मुहैया ना होने की वजह से उन्हें पढ़ना पड़ता है और अपने माता पिता को ना चाहते हुए भी छोड़कर जाना पड़ रहा है!

गांव में ही रहने वाली एक बुजुर्ग महिला सिया रानी बताती हैं कि रोजगार उपलब्ध ना होने की वजह से गांव के लोग पलायन कर जाते हैं गांव में कुछ बुजुर्ग लोग ही रह जाते हैं क्योंकि बुजुर्ग कुछ कर नहीं पाते इसलिए उनके परिवार के लोग उन्हें गांव में छोड़ कर चले जाते हैं!

बाइट_सिया रानी ग्रामीण महिला

वही गांव में ही रहने वाले हरगोविंद बताते हैं कि गांव में रोजगार मुहैया नहीं है इसलिए मजबूरन गांव छोड़कर जाना पड़ता है गांव पूरी तरह से खाली हो जाता है कुछ बुजुर्ग लोग ही है जो गांव में बस जाते हैं!

बाइट_हरगोविंद ग्रामीण

गांव में ही रहने वाले दूसरे ग्रामीण राजाराम आदिवासी बताते हैं कि ना तो सरपंच और ना ही सचिव किसी प्रकार का सहयोग करते हैं मनरेगा जैसी योजना का भी उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है अगर गांव में ही रोजगार मिलने लगे तो भला अपनी पैतृक जमीन को छोड़कर कोई क्यों मजदूरी करने के लिए बाहर जाएगा!

बाइट_राजा राम ग्रामीण

बड़ी संख्या में छतरपुर जिले से पलायन को लेकर जब हमने एडीएम प्रेम सिंह चौहान से बात की तो उन्होंने मामले को गंभीर बताते हुए सरपंच एवं सचिव से बात करने की बात कही साथ ही उन्होंने कहा कि अगर इतने बड़े स्तर पर पलायन हो रहा है तो निश्चित तौर पर विषय गंभीर है और इस मामले में जिला सीओ सहित अन्य अधिकारियों से भी बात करेंगे!

बाइट_एडीएम प्रेम सिंह चौहान


Conclusion: भले ही अधिकारी मामले में अनभिज्ञता दिखा रहे हो लेकिन हकीकत सबके सामने हैं आज भी बुंदेलखंड से हजारों की संख्या में लोग रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों के लिए पलायन कर जाते हैं और अपने बूढ़े मां-बाप को गांव में छोड़ जाते हैं कई बार बीमारी के चलते और देखरेख न होने की वजह से बुजुर्ग मां-बाप अपने परिवार के बेटे एवं बहू के लौट आने की आस में ही मर जाते हैं !
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