छतरपुर। बुंदेलखंड में आज भी पलायन एक बड़ी समस्या है. ग्रामीण क्षेत्रों से लगातार लोग शहरों का रुख कर रहे हैं, छतरपुर जिले से सटे आदिवासी गांव हर साल पलायन के चलते खाली हो जाते हैं. सूने पड़े मकान, लटकते ताले और पलायन करते लोग यह हकीकत कुछ बुंदेलखंड की है. दौर बदलता गया, सरकारें बदलती गई, अगर कुछ नहीं बदला तो वो है यहां के हालात.यहां पलायन उस नासूर की तरह है जिसे खत्म करने के लिए सरकारें दावे तो करती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत तो ये सूने पड़े मकान खुद ही बयां कर रहे हैं.
पलायन को रोकने की सारी कवायदे सरकारी कागजों तक सिमट कर रह गई हैं. मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना भी बुंदेलखंड से पलायन को नहीं रोक सकी है. यही वजह है कि आज भी रोजी- रोटी की तलाश में हजारों ग्रामीण बुंदेलखंड से शहरों की तरफ पलायन कर जाते हैं. छतरपुर जिले की सीमा से सटा हुआ मानिकपुर एक ऐसा गांव है. जहां पर अधिकांश आदिवासी रहते हैं. इस गांव की जनसंख्या लगभग 6 सौ के आसपास है.
वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासियों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन रोजगार की तलाश में गांव खाली हो जाते हैं. गांव में रह जाते हैं तो कुछ बुजुर्ग. वहीं गांव में ही रहने वाले हरगोविंद बताते हैं कि गांव में रोजगार मुहैया नहीं है इसलिए मजबूरन गांव छोड़कर जाना पड़ता है. मजबूरन इस गांव में कुछ बुजुर्ग लोग ही रह जाते हैं.
जिले में बड़ी संख्या में पलायन हो रहा है लेकिन हद तो तब हो गई जब जिम्मेदार अधिकारी मामले से अनभिज्ञता जता रहे है. आज भी बुंदेलखंड से हजारों की संख्या में लोग रोजगार की तलाश में दूसरी जगह पलायन कर करे है और प्रशसान कुंभकरण की नींद सो रहा है.