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MP High Court छतरपुर कलेक्टर के आदेश को निरस्त कर आवेदक को अनुकंपा नियुक्ति देने के निर्देश

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Published : Dec 26, 2022, 8:13 PM IST

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से आवेदक को बड़ी राहत मिली है. जस्टिस एमएस भट्टी की एकलपीठ ने छतरपुर कलेक्टर के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें कहा गया था 7 साल बाद किये गये दावे पर विचार नहीं किया जा सकता. एकलपीठ ने उक्त आदेश को निरस्त करते हुए आवेदक को अनुकंपा नियुक्ति (Give compassionate appointment) देने के निर्देश दिये हैं.

MP High Cour give compassionate appointment to applicant
कलेक्टर के आदेश को निरस्त कर आवेदक को अनुकंपा नियुक्ति देने के निर्देश

जबलपुर। छतरपुर बड़ामलहरा निवासी बृजकिशोर असाटी की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि उसके पिता पटवारी के पद पर पदस्थ थे. जिनकी सेवाकाल के दौरान 6 मई 1995 को मृत्यु हो गई थी. उस समय याचिकाकर्ता नाबालिग था. जिसके बाद याचिकाकर्ता वर्ष 2001 में बालिक हुआ तो अनुकम्पा नियुक्ति हेतु आवेदन कलेक्टर छतरपुर को प्रस्तुत किया. लेकिन कलेक्टर छतरपुर द्वारा यह लिखकर आवेदन खारिज कर दिया कि 2 जनवरी 2001 को याचिकाकर्ता ने 7 वर्ष बाद आवेदन प्रस्तुत किया.

न्यायालय में ये तर्क रखे : आवेदक से कहा गया कि वर्ष 2007 की अनुकम्पा नियुक्ति की पॉलसी में यह कहा गया है कि 7 वर्ष के अंदर आवेदन नहीं दिया गया है तो अनुकम्पा नियुक्ति नहीं दी जा सकती. जिसके बाद याचिकाकर्ता द्वारा पुनः आवेदन प्रस्तुत किया तो पुराना हवाला देते हुए फिर 3 जून 13 को खारिज कर दिया. इसके बाद वर्ष 2016 में हाईकोर्ट की शरण ली गई. जिसमें 13 जून 2013 के आदेश को चुनौती दी गई थी. आवेदक की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु 6 मई 1995 को हुई थी. उस समय की अनुकम्पा नियुक्ति कि जो पॉलिसी थी वो याचिकाकर्ता के ऊपर लागू होगी, ना कि 2007 की. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता गोपाल सिंह बघेल ने पक्ष रखा.

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याचिका निरस्त : लाठी से हमला करने तथा राजीनामे के लिए दवाब बनाने पर जिला न्यायालय ने आत्महत्या के प्रेरित करने के आरोप तय किये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी. हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल ने याचिका की सुनवाई करते हुए अपने आदेश में कहा गया कि गुस्से में कहे गये शब्द को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता. एकलपीठ ने जिला न्यायालय द्वारा निर्धारित आरोप को निरस्त कर दिया.

जबलपुर। छतरपुर बड़ामलहरा निवासी बृजकिशोर असाटी की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि उसके पिता पटवारी के पद पर पदस्थ थे. जिनकी सेवाकाल के दौरान 6 मई 1995 को मृत्यु हो गई थी. उस समय याचिकाकर्ता नाबालिग था. जिसके बाद याचिकाकर्ता वर्ष 2001 में बालिक हुआ तो अनुकम्पा नियुक्ति हेतु आवेदन कलेक्टर छतरपुर को प्रस्तुत किया. लेकिन कलेक्टर छतरपुर द्वारा यह लिखकर आवेदन खारिज कर दिया कि 2 जनवरी 2001 को याचिकाकर्ता ने 7 वर्ष बाद आवेदन प्रस्तुत किया.

न्यायालय में ये तर्क रखे : आवेदक से कहा गया कि वर्ष 2007 की अनुकम्पा नियुक्ति की पॉलसी में यह कहा गया है कि 7 वर्ष के अंदर आवेदन नहीं दिया गया है तो अनुकम्पा नियुक्ति नहीं दी जा सकती. जिसके बाद याचिकाकर्ता द्वारा पुनः आवेदन प्रस्तुत किया तो पुराना हवाला देते हुए फिर 3 जून 13 को खारिज कर दिया. इसके बाद वर्ष 2016 में हाईकोर्ट की शरण ली गई. जिसमें 13 जून 2013 के आदेश को चुनौती दी गई थी. आवेदक की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु 6 मई 1995 को हुई थी. उस समय की अनुकम्पा नियुक्ति कि जो पॉलिसी थी वो याचिकाकर्ता के ऊपर लागू होगी, ना कि 2007 की. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता गोपाल सिंह बघेल ने पक्ष रखा.

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