जबलपुर। जबलपुर महापौर के चुनाव में बीजेपी ने आदिवासियों के साथ आम जनता को साधने की कोशिश की. सोशल इंजीनियरिंग कर लोगों को चौंकाया, लेकिन जनता ने बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग सहित तमाम माइक्रो मैनेंजमेंट को धता दिखा दिया. प्रत्याशी चयन का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा. बीजेपी प्रत्याशी डॉ.जामदार अपने ही मोहल्ले में हार गए.
सोशल इंजीनियरिंग फेल होने से उठे कई सवाल : मध्यप्रदेश में बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग कहीं बैकफायर तो नहीं कर रही.ओबीसी और आदिवासियों को अपने पाले में करने के लिए बीजेपी ने पूरा जोर लगाया. जबलपुर को बेस बनाया ,जो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की ससुराल है. यहां से अमित शाह ने कैंपेन का आगाज किया. जेपी नड्डा यहां तीन दिन तक डेरा डाले रहे. उन्होंने कार्यकर्ताओं को चुनावी मैनेजमेंट का गुर सिखाया. सावित्री वाल्मीकि को राज्यसभा भेजा गया. जबलपुर में सिंधिया निचले तबके के लोगों के घरों और किचन में गए. खुद बिस्किट सर्व किया. फिर भी बीजेपी की सबसे बड़ी हार जबलपुर में हुई. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि प्रदेश में कहीं जातीय समीकरण साधने की रणनीति फेल तो नहीं हो रही.
अमित शाह का मेगा शो काम नहीं आया : आदिवासियों को रिझाने के लिए अमित शाह का मेगा शो और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कार्यकर्ताओं को माइक्रो मैनेजमेंट की क्लास भी कार्यकर्ताओं में जोश नहीं फूंक पाई. एक तरफ बीजेपी का आदिवासी पर फोकस औऱ दूसरी तरफ ओबीसी को अपना बनाने का फैक्टर भी बीजेपी के काम न आया. सीएम शिवराज सिंह समेत वीडी शर्मा के साथ संगठन ने पूरी ताकत झोंकी , लेकिन जनता को बीजेपी का कैंडिडेट पसंद नहीं आया. वहीं बीजेपी का त्रिदेव कांन्सेप्ट और पन्ना प्रभारियों सहित बूथों का डिजिटल करना भी सिर्फ कागजी ही दिखाई दिया.
आदिवासियों को साधने की कोशिश फेल : बीजेपी ने एससी महिला को राज्यसभा भेजा, ये चौंकाने वाला फैसला था. साथ ही बड़े नेताओें ने आदिवासियों और दलितों के यहां भोजन भी किया. य़ुवाओं को लुभाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को गिनाया. गरीबों को पीएम आवास और रसोई गैस का जिक्र किया. साथ ही मुफ्त राशन देने का भी बार -बार सभाओं में कहा गया. सीएम शिवराज और वीडी शर्मा ने कई रोड शो किए. शिवराज सिंह ने तीन रोड शो किए तो वहीं प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी अलग से रोड शो किए. रोड शो में भीड़ तो जमा कर ली गई लेकिन उस भीड़ का जनता पर कोई असर नहीं हुआ.
भाजपा के 3 बड़े नेताओं की सांख दांव पर थी : राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनाव के कुछ समय पहले ही जबलपुर में एक बड़ी रैली की थी. वे जबलपुर के जमाई राजा हैं. जबरदस्त स्वागत हुआ था. कार्यकर्ताओं को चुनावी मैनेजमेंट के गुर सिखाए. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा भी जबलपुर के जमाई राजा हैं. उनकी ससुराल में भारतीय जनता पार्टी का हार जाना चर्चा का विषय बन गया है. भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी डॉ. जितेंद्र जामदार सीएम शिवराज सिंह चौहान के पसंद के प्रत्याशी थे. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी ने प्रत्याशी का चयन करने में बड़ी गलती की. साथ ही पार्टी अपने कार्यकर्ताओं से सामांजस्य नहीं बैठा पाई. जो असंतोष कैंडिडेट को लेकर था, उसे पार्टी शांत नहीं कर पाई.
बीजेपी उम्मीदवार अपेन ही वार्ड में हारे : बीजेपी महापौर प्रत्याशी डॉ.जितेंद्र जामदार एकमात्र ऐसे महापौर उम्मीदवार रहे, जो गृह वार्ड से ही हार गए. उनकी उम्मीदवारी को लेकर बीजेपी में स्थानीय स्तर पर नाराजगी थी, लेकिन संघ के करीबी होने के कारण खुलकर विरोध नहीं हुआ. लेकिन स्थानीय नेता औऱ कार्यकर्ताओं ने खुलकर साथ नहीं दिया. नतीजा यह रहा कि जबलपुर महापौर की सीट हाथ से फिसल गई और कांग्रेस के खेमे में चली गई.
जबलपुर में परिषद का अध्यक्ष भी कांग्रेस का होगा : कांग्रेस के जगत बहादुर सिंह अन्नू ने बीजेपी के जितेंद्र जामदार को 44 हजार से अधिक वोटों से हराया है. 18 साल बाद कांग्रेस नगर सरकार बना रही है. जबलपुर में परिषद का अध्यक्ष भी कांग्रेस का होगा. कांग्रेस ने यहां कुल 79 में 32 वार्डों में कांग्रेस के पार्षद जीते हैं. यहां पर सन् 2000 में कांग्रेस के विश्वनाथ दुबे महापौर बने थे, लेकिन परिषद में बहुमत बीजेपी का ही था. इस बार कांग्रेस ने बीजेपी को पछाड़ दिया है.
कांग्रेस ने जबलपुर में दिखाई एकजुटता : जबलपुर में 18 साल बाद पहली बार कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ी, जबकि बीजेपी में उम्मीदवारों को लेकर उठापटक हुई. बीजेपी के कार्यकर्ता जितेंद्र जामदार को महापौर उम्मीदवार बनाए जाने से नाराज थे, लेकिन पार्टी ने उनकी मांग को अनसुना कर दिया. कांग्रेस से राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने कहा है कि नगर निगम में ही नहीं, जिला पंचायत और जनपदों में भी कांग्रेस ने बीजेपी को हराया है.
जनता ने क्यों पसंद नहीं किया डॉ. जामदार को : रेमडीसिविर इंजेक्शन कांड में डॉ .जितेंद्र जामदार ने सरबजीत मोखा को बचाने का प्रयास किया था. चुनाव के समय लोगों ने एक- दूसरे को यह बात बार-बार याद दिलाई. चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री ने डॉ. जामदार की जमकर तारीफ की, लेकिन लोगों को पसंद नहीं आया. वे डॉक्टर हैं लेकिन जबलपुर में उनके व्यवहार को लेकर भी जनता में नेगेटिव फींडिंग थी.