भोपाल। आजादी के बाद देश के नए हुक्मरानों के सामने रियासतों को मिलाने की जिम्मेदारी थी. 376 रियासतें तो आसानी से भारत के साथ मिल गईं, बड़ी मुश्किलों और जद्दोजहद के बाद गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों का एक के बाद एक विलय कराया. भोपाल नवाब हमीदुल्लाह भी वल्लभ भाई पटेल के आगे टिक नहीं सके और उन्हें भी विलय पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ा.
भोपाल नवाब हमीदुल्लाह नेहरू-जिन्ना के अलावा अंग्रेजों के भी अच्छे दोस्त थे, लेकिन वे भोपाल को आजाद रखना चाहते थे, जिसके चलते भारत सरकार से भी अदावत कर बैठे, लेकिन पटेल के आगे वह ज्यादा देर तक टिक नहीं सके, और विलय के लिए तैयार हो गए, लेकिन इससे पहले हमीदुल्लाह ने भारत सरकार के सामने एक शर्त रख दी थी.
शर्त ये थी कि समझौते की बात को कुछ दिनों तक गोपनीय रखा जाए. भोपाल के गजट ईयर में भी उल्लेख किया गया है कि सत्ता हस्तांतरण के बाद 10 दिनों तक इस बात को गुप्त रखे जाने की भोपाल नवाब ने शर्त रखी थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया, लेकिन नवाब के विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर की बात राज नहीं रह सकी, दूसरे दिन ही इसकी खबर फैल गई. 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी का जश्न भोपाल रियासत में भी मनाया गया.
इतिहासकार एडवोकेट असद उल्लाह खान बताते हैं कि भोपाल में तत्कालीन प्रजामंडल के नेता और बाद में भोपाल के प्रधान मंत्री बनाए गए पंडित चतुर नारायण मालवीय के नेतृत्व में प्रभात फेरी निकालकर आजादी का जश्न मनाया गया था, इसके पहले भोपाल के चौक बाजार स्थित कदर मियां के महल में इसको लेकर बैठक की गई थी, ये महल आज भी यहां स्थित है.