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विलय के लिए भोपाल नवाब ने रखी थी ये शर्त, तब विलय पत्र पर किये थे हस्ताक्षर - भोपाल न्यूज

भोपाल रियासत को देश में विलय करने के लिए नवाब हमीदुल्लाह ने तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के सामने एक शर्त रखी थी. जिसके बाद ही उन्होंने समझौते पर साइन किया था.

भोपाल
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Published : Aug 15, 2019, 12:04 AM IST

भोपाल। आजादी के बाद देश के नए हुक्मरानों के सामने रियासतों को मिलाने की जिम्मेदारी थी. 376 रियासतें तो आसानी से भारत के साथ मिल गईं, बड़ी मुश्किलों और जद्दोजहद के बाद गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों का एक के बाद एक विलय कराया. भोपाल नवाब हमीदुल्लाह भी वल्लभ भाई पटेल के आगे टिक नहीं सके और उन्हें भी विलय पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ा.


भोपाल नवाब हमीदुल्लाह नेहरू-जिन्ना के अलावा अंग्रेजों के भी अच्छे दोस्त थे, लेकिन वे भोपाल को आजाद रखना चाहते थे, जिसके चलते भारत सरकार से भी अदावत कर बैठे, लेकिन पटेल के आगे वह ज्यादा देर तक टिक नहीं सके, और विलय के लिए तैयार हो गए, लेकिन इससे पहले हमीदुल्लाह ने भारत सरकार के सामने एक शर्त रख दी थी.

विलय से पहले नवाब ने रखी थी शर्त


शर्त ये थी कि समझौते की बात को कुछ दिनों तक गोपनीय रखा जाए. भोपाल के गजट ईयर में भी उल्लेख किया गया है कि सत्ता हस्तांतरण के बाद 10 दिनों तक इस बात को गुप्त रखे जाने की भोपाल नवाब ने शर्त रखी थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया, लेकिन नवाब के विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर की बात राज नहीं रह सकी, दूसरे दिन ही इसकी खबर फैल गई. 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी का जश्न भोपाल रियासत में भी मनाया गया.


इतिहासकार एडवोकेट असद उल्लाह खान बताते हैं कि भोपाल में तत्कालीन प्रजामंडल के नेता और बाद में भोपाल के प्रधान मंत्री बनाए गए पंडित चतुर नारायण मालवीय के नेतृत्व में प्रभात फेरी निकालकर आजादी का जश्न मनाया गया था, इसके पहले भोपाल के चौक बाजार स्थित कदर मियां के महल में इसको लेकर बैठक की गई थी, ये महल आज भी यहां स्थित है.

भोपाल। आजादी के बाद देश के नए हुक्मरानों के सामने रियासतों को मिलाने की जिम्मेदारी थी. 376 रियासतें तो आसानी से भारत के साथ मिल गईं, बड़ी मुश्किलों और जद्दोजहद के बाद गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों का एक के बाद एक विलय कराया. भोपाल नवाब हमीदुल्लाह भी वल्लभ भाई पटेल के आगे टिक नहीं सके और उन्हें भी विलय पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ा.


भोपाल नवाब हमीदुल्लाह नेहरू-जिन्ना के अलावा अंग्रेजों के भी अच्छे दोस्त थे, लेकिन वे भोपाल को आजाद रखना चाहते थे, जिसके चलते भारत सरकार से भी अदावत कर बैठे, लेकिन पटेल के आगे वह ज्यादा देर तक टिक नहीं सके, और विलय के लिए तैयार हो गए, लेकिन इससे पहले हमीदुल्लाह ने भारत सरकार के सामने एक शर्त रख दी थी.

विलय से पहले नवाब ने रखी थी शर्त


शर्त ये थी कि समझौते की बात को कुछ दिनों तक गोपनीय रखा जाए. भोपाल के गजट ईयर में भी उल्लेख किया गया है कि सत्ता हस्तांतरण के बाद 10 दिनों तक इस बात को गुप्त रखे जाने की भोपाल नवाब ने शर्त रखी थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया, लेकिन नवाब के विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर की बात राज नहीं रह सकी, दूसरे दिन ही इसकी खबर फैल गई. 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी का जश्न भोपाल रियासत में भी मनाया गया.


इतिहासकार एडवोकेट असद उल्लाह खान बताते हैं कि भोपाल में तत्कालीन प्रजामंडल के नेता और बाद में भोपाल के प्रधान मंत्री बनाए गए पंडित चतुर नारायण मालवीय के नेतृत्व में प्रभात फेरी निकालकर आजादी का जश्न मनाया गया था, इसके पहले भोपाल के चौक बाजार स्थित कदर मियां के महल में इसको लेकर बैठक की गई थी, ये महल आज भी यहां स्थित है.

Intro:भोपाल। अंग्रेजी हुकूमत से आजादी के बाद भोपाल के हुक्मरानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती रियासतों के विलय कराने की थी सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में रियासतों का एक के बाद एक विलय हो गया भोपाल रियासत की नवाब हमीदुल्लाह भी तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की शक्ति के आगे ज्यादा टिक नहीं सके और उन्होंने 15 अगस्त 1947 के पहले विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए थे हालांकि इसके बाद भी भोपाल वासियों को आजादी के लिए करीब 2 साल का इंतजार करना पड़ा।


Body:भोपाल नवाब ने समझौते के समय रखी थी शर्त

भोपाल नवाब हमीदुल्लाह नेहरू जिन्ना के अलावा अंग्रेजों की भी अच्छे दोस्त थे नवाब हमीदुल्लाह भोपाल को भारत का हिस्सा बनाने के समर्थन में नहीं थे वे चाहते थे कि भोपाल को आजाद ही रखा जाए जिससे वे आसानी से शासन चला सके भोपाल को आजाद बनाए रखने के लिए वे आजाद भारत की सरकार के खिलाफ हो गए लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की शक्ति के आगे बेविले के समझौते के लिए तैयार हो गए। लेकिन उन्होंने भारत सरकार के सामने शर्त रखी थी कि समझौते की बात को कुछ दिनों तक गोपनीय रखा जाए। इतिहास के जानकार एडवोकेट असद उल्लाह खान के मुताबिक भारत सरकार के गृह सचिव वी पी मेनन ने रियासतों को ब्लैक करने में मुख्य वार्ताकार की भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपनी किताब द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ द इंडियन स्टेट्स में भोपाल रियासत के विलय को लेकर लिखा है कि लंबी चर्चा के बाद नवाब हमीदुल्लाह को यह स्पष्ट कर दिया गया था कि विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है और दूसरी रियासतों की तरह हो ने भी भारत सरकार के साथ जोड़ना होगा। आखिरकार वे इस पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हुए और उन्होंने शर्त रखी कि इससे कुछ समय तक गोपनीय रखा जाए और इसमें कोई परेशानी नहीं थी। भोपाल के गजट ईयर में भी उल्लेख किया गया है कि सत्ता हस्तांतरण के बाद 10 दिनों तक इस बात को गुप्त रखे जाने की भोपाल नवाब ने शर्त रखी थी जिसे स्वीकार कर लिया गया।

प्रभातफेरी निकालकर मनाई गई थी जश्न-ए-आजादी

भोपाल नवाब हमीदुल्लाह के विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर की बात राज नहीं रह सकी दूसरे दिन ही इसकी खबर फैल गई। 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी का जश्न भोपाल रियासत में भी मनाया गया। इतिहासकार एडवोकेट असद उल्लाह खान बताते हैं कि भोपाल में तत्कालीन प्रजामंडल के नेता और बाद में भोपाल के प्रधान मंत्री बनाए गए पंडित चतुर नारायण मालवीय के नेतृत्व में प्रभातफेरी निकालकर जश्न मनाया गया था इसके पहले भोपाल के चौक बाजार स्थित कदर मियां के महल में इसको लेकर बैठक की गई थी। यह महल आज भी स्थित है


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