भोपाल। मध्यप्रदेश में एक्टिव कोरोना मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और पॉजिटिव मरीजों की जिनोम सीक्वेंसिंग रिपोर्ट बहुत देर से आ रही है. आखिर इसमे देर लगने का क्या कारण है, इस पर खुद चिकित्सा शिक्षा मंत्री कहते हैं कि जल्द ही यहां मशीनें लग जाएंगी, लेकिन कब तक. यह बात केंद्र पर निर्भर है. उनका कहना है कि उनकी बात केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से हुई है और जल्द ही ये मशीनें (MP Genome Sequencing Machine) लग जाएंगी. फिलहाल कुल पॉजिटिव सैंपल में से 5% सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए दिल्ली भेजे जा रहे हैं.
प्रदेश में कोरोना के एक्टिव मरीजों का आंकड़ा 55000 से अधिक हो गया है. लगातार इसमें इजाफा हो रहा है. ऐसे में ओमीक्रॉन के खतरे के बीच लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि ये डेल्टा वैरिएंट है या ओमीक्रॉन. ऐसे में इसकी पहचान सिर्फ जीनोम सीक्वेंसिंग से ही की जा सकती है. जिसके लिए मध्यप्रदेश पूरी तरह केंद्र पर निर्भर है. अभी इसकी रिपोर्ट आने में 10 से 15 दिन का समय लगता है. दिसंबर माह में चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वाश कैलाश सारंग ने दिल्ली में केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख एल मांडविया से मुलाकात कर मध्यप्रदेश के लिए जीनोम्स सिक्वेन्सिंग मशीन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था.
केंद्र की कोरोना पॉलिटिक्स
मांडविया ने भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और रीवा मेडिकल कॉलेज के लिए जीनोम्स सिक्वेन्सिंग मशीन प्रदान करने की स्वीकृति प्रदान कर दी थी. तब सारंग ने बताया था कि प्रदेश में ही कोरोना के किसी भी वैरिएंट की जांच और पहचान हो सकेगी. यह प्रदेश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धी है. प्रदेश में अभी तक जिनोम्स सिक्वेन्सिंग मशीन नहीं होने के कारण सैम्पल दिल्ली भेजना पड़ता था, जिसके कारण रिपोर्ट आने में काफी विलम्ब होता था. सारंग ने फिर दोहराया कि जल्द ही मशीनें लग जाएंगी. केंद्र से इस बारे में पूरी बात हो चुकी है. फिलहाल डब्ल्यूएचओ के नियमों के अनुसार 5% लोगों के सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे जा रहे हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि यह मशीनें जल्द स्थापित होती नजर नहीं आती.
जीनोम सिक्वेंसिंग का राह नहीं आसान
इधर स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक्सपर्ट कहते हैं कि सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग करना आसान नहीं है. यह एक लंबा प्रोसेस है. कोविड के लिए बनी मध्य प्रदेश सलाहकार समिति के सदस्य एसपी दुबे के अनुसार शुरुआत में अगर 400 पॉजिटिव सैंपल की सीक्वेंसिंग करते हैं तो इन सबकी रिपोर्ट आने में ही 2 से ढाई महीने का समय लग जाएगा. ऐसे में अगले दिन और 400 मरीजों के सैंपल सीक्वेंसिंग के लिए आ जाएंगे. इसलिए सभी लोगों की सीक्वेंसिंग होना नामुमकिन है. ऐसे में मान लिया जाए कि अगर 100 में से 35 से अधिक लोगों में ओमीक्रॉन की पुष्टि होती है तो मान लेना चाहिए कि ओमीक्रॉन लोगों के बीच पहुंच गया है. फिर सभी की सीक्वेंसिंग करने की जरूरत नहीं है, बल्कि इसकी रोकथाम पर काम करने की जरूरत है.
जिनोम सीक्वेंसिंग में कितना लगता है समय
मध्यप्रदेश में जिनोम सीक्वेंसिंग के सैंपल दिल्ली जाते हैं. ऐसे में इसमें 12 से 15 दिन का समय लगता है, टेस्ट दिल्ली में ज्यादा होने के चलते समय और भी लग सकता है. एक टेस्ट की सैंपल करने में लगभग 2 से 3 दिन का समय लगता है. लैब पर अगर प्रेशर बढ़ता है तो यह समय और बढ़ जाता है.
भोपाल एम्स में जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन
भोपाल स्थित एम्स में जीनोम सीक्वेंसिंग की मशीन पहले से मौजूद है और यहां पर इसके लिए पूरी तैयारियां भी कर ली गई थी. मध्यप्रदेश सरकार ने इसके लिए एक करोड़ की राशि भी आवंटित कर दी थी. माना जा रहा है कि केमिकल की खरीदी के लिए प्रस्ताव भेजा जा चुका है और अगर यह केमिकल जल्द आता है, तब भी फरवरी माह में ही यहां टेस्टिंग होना प्रारंभ हो पाएगा.