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शिवराज की खामोशी में भी क्रांति की आहट, दिखने लगे तेवर, "मरना मुनासिब समझूंगा" के मायने समझिए

मध्यप्रदेश की सियासत अभी जितनी शांत दिख रही है, क्या वाकई ऐसा है? ये सवाल इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि जिस प्रकार शिवराज सिंह के साथ ही बीजेपी के कई दिग्गजों को दरकिनार किया गया है, इसका असर क्या होगा. क्या सियासत के ये धुरंधर खामोश बैठेंगे. क्या खामोशी में ये क्रांति नहीं करेंगे. इसकी झलक शिवराज सिंह चौहान द्वारा मंगलवार को दिए एक बयान से मिलती है. मुख्यमंत्री पद से हटने के अगले दिन ही शिवराज के इन तेवर के क्या मायने हैं. आइए समझते हैं.

After resigning next day Shivraj statement meaning
शिवराज की खामोशी में भी क्रांति की आहट, दिखने लगे तेवर
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 12, 2023, 3:29 PM IST

Updated : Dec 12, 2023, 4:39 PM IST

शिवराज की खामोशी में भी क्रांति की आहट, दिखने लगे तेवर

भोपाल। मध्यप्रदेश में 18 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह पद छोड़ने के बाद जितने खामोश दिख रहे हैं, उतने हैं नहीं. अंदर ही अंदर विरोध व उपेक्षा की आग धधक रही है. मंगलवार को उन्होंने अपने तेवर दिखाते हुए पार्टी हाईकमान को साफ मैसेज दे दिया है. उनका कहना है "अपने बारे में कुछ मांगने से पहले मैं मरना मुनासिब समझूंगा. इसलिए वह दिल्ली नहीं गए." अपने अंदर दबे गुस्से को प्रकट करने के बाद शिवराज ने मामले को हल्का करते हुए यह भी कहा "मेरी पार्टी मेरे बारे में फैसला करती है. मैंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि है कि पेड़ लगाने के लिए मुझे जगह दें. पेड़ लगाने के लिए जगह मिलती रहे. पार्टी ने मुझे बहुत कुछ दिया. 18 साल तक मुख्यमंत्री का पद दिया. अब मुझे पार्टी को देने का समय आ गया है."

इन बातों का मतलब समझिए : शिवराज सिंह चौहान ने कहा "मेरे प्रशासनिक सहयोगियों ने एक से एक योजनाएं बनाने और लागू कराने में सहयोग किया, उनका धन्यवाद. सीएम हाउस में मेरे सहयोगी कर्मचारियों का भी धन्यवाद. लाड़ली बहनों के प्यार के लिए धन्यवाद, मैं सदैव उनके साथ हूं." सीएम शिवराज ने प्रदेश की जनता से माफी मांगी और कहा "मेरे फैसले से किसी को को तकलीफ हुई हो तो मैं माफी मांगता हूं." बता दें कि सोमवार को मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव को चुना गया है. हालांकि मोहन यादव को शिवराज का ही समर्थक माना जाता है. इसके अलावा जिन दो डिप्टी सीएम के रूप में राजेंद्र शुक्ल व जगदीश देवड़ा को चुना गया है, वे भी शिवराज के ही समर्थक हैं. लेकिन शिवराज के मन की टीस 24 घंटे बाद ही सामने आ गई. हालांकि इनके चयन के दौरान वह मुस्कराते रहे लेकिन चेहरे के हाव-भाव पर निराशा के भाव पढ़े जा सकते थे.

एक बार कड़ा अंदाज दिखा चुके हैं : याद रहे जब बीजेपी को दो लिस्ट में शिवराज सिंह चौहान का नाम प्रत्याशी के रूप घोषित नहीं किया गया था तो उन्होंने ऐसा रंग दिखाया था कि दिल्ली की सल्तनत के कान खड़े हो गए थे. टिकट नहीं मिलने की कयासबाजी से परेशान होकर शिवराज ने जनसभा में मंचों से अपनी नाराजगी प्रकट करते हुए जनता से पूछा था कि क्या शिवराज को चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं, बताओ शिवराज ने कैसी सरकार चलाई, क्या शिवराज को फिर से मुख्यमंत्री बनना चाहिए या नहीं. यहां तक तो ठीक है. इसके बाद शिवराज ने पीएम मोदी को लेकर ही जनता से सवाल करने शुरू कर दिए थे. शिवराज ने जनता से पूछा था कि क्या मोदी को फिर से पीएम चुनोगे या नहीं. शिवराज के ये तेवर देखकर आलाकमान के होश उड़े और फिर शिवराज को टिकट भी मिली और तवज्जो भी .

उम्मीदों का लगा झटका : बीते 3 दिसंबर को चुनाव परिणाम में बीजेपी को बंपर जीत मिलने के बाद शिवराज की उम्मीदें भी कुलांचे मारने लगी. उन्होंने इस प्रचंड जीत का श्रेय अप्रत्यक्ष रूप से खुद और लाड़ली बहना को दिया. इसके साथ ही शिवराज को पूरी उम्मीद बंधी कि वही फिर से सीएम बनेंगे. चुनाव परिणाम आने के एक सप्ताह तक उनके काम करने का तरीका व भाषण की शैली भी ऐसी दिखी, जिससे लगा कि वह सीएम का पद हासिल करने के लिए पूरी तरह से आश्वस्त हैं. इसीलिए सीएम के दावेदार सारे के सारे धुरंधर दिल्ली में लॉबिंग में जुट गए. और शिवराज मध्यप्रदेश में बीजेपी की हारी सीटों पर हुंकार भरते रहे. लेकिन लगता है कि बीजेपी आलाकमान तय कर चुका था कि बहुत हुआ शिवराज अब किसी और का राज.

अब शिवराज से निपटना आसान नहीं : ऐसी संभावना जताई जा रही है कि शिवराज सिंह चौहान को केंद्र में मंत्री बनाया जाएगा. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शिवराज केंद्र में मंत्री बनने के बाद अपनी उपेक्षा व टीस को दबा पाएंगे. राजनीति के जानकार कहते हैं कि शिवराज से निपटना अब मोदी व शाह के लिए ज्यादा कठिन हो जाएगा. क्योंकि शिवराज सिंह ऐसे नेता हैं जो हमेशा शांत रहते हैं. सधे बयान देते हैं. लेकिन किसी भी मामले में शिवराज अन्य नेताओं से बहुत घाघ हैं. मंगलवार को जब उन्होंने ये बयान दिया 'कुछ मांगने से अच्छा है मर जाना' तो इससे उनका अंदाज समझा जा सकता है.

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अन्य रुष्ट दिग्गजों का भी साथ मिलेगा : इसमें कोई शक नहीं कि शिवराज पार्टी आलाकमान से रुष्ट हैं. अब उन्हें प्रदेश के उन दिग्गजों का भी साथ मिल जाएगा, जिन्हें दरकिनार किया गया है. इनमें प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, राकेश सिंह जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं. कुछ माह बाद लोकसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में ये नेता इसी प्रकार रुष्ट रहे तो मध्यप्रदेश में 29 में से 29 सीटें जीतने का सपना केवल सपना ही रह जाएगा. क्योंकि प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय और राकेश सिंह जैसे नेता भले ही अपने इलाकों में प्रभावशाली हों लेकिन शिवराज पूरे प्रदेश में लोकप्रिय नेता हैं. शिवराज का ठोस जनाधार हैं. 18 साल तक सीएम रहने के कारण प्रशासनिक मशीनरी पर शिवराज की मजबूत पकड़ है. हर जिले में शिवराज कम से कम 100 बीजेपी नेताओं को नाम से जानते हैं. ये बताता है कि शिवराज की उपेक्षा मोदी व शाह को भारी पड़ेगी.

शिवराज की खामोशी में भी क्रांति की आहट, दिखने लगे तेवर

भोपाल। मध्यप्रदेश में 18 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह पद छोड़ने के बाद जितने खामोश दिख रहे हैं, उतने हैं नहीं. अंदर ही अंदर विरोध व उपेक्षा की आग धधक रही है. मंगलवार को उन्होंने अपने तेवर दिखाते हुए पार्टी हाईकमान को साफ मैसेज दे दिया है. उनका कहना है "अपने बारे में कुछ मांगने से पहले मैं मरना मुनासिब समझूंगा. इसलिए वह दिल्ली नहीं गए." अपने अंदर दबे गुस्से को प्रकट करने के बाद शिवराज ने मामले को हल्का करते हुए यह भी कहा "मेरी पार्टी मेरे बारे में फैसला करती है. मैंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि है कि पेड़ लगाने के लिए मुझे जगह दें. पेड़ लगाने के लिए जगह मिलती रहे. पार्टी ने मुझे बहुत कुछ दिया. 18 साल तक मुख्यमंत्री का पद दिया. अब मुझे पार्टी को देने का समय आ गया है."

इन बातों का मतलब समझिए : शिवराज सिंह चौहान ने कहा "मेरे प्रशासनिक सहयोगियों ने एक से एक योजनाएं बनाने और लागू कराने में सहयोग किया, उनका धन्यवाद. सीएम हाउस में मेरे सहयोगी कर्मचारियों का भी धन्यवाद. लाड़ली बहनों के प्यार के लिए धन्यवाद, मैं सदैव उनके साथ हूं." सीएम शिवराज ने प्रदेश की जनता से माफी मांगी और कहा "मेरे फैसले से किसी को को तकलीफ हुई हो तो मैं माफी मांगता हूं." बता दें कि सोमवार को मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव को चुना गया है. हालांकि मोहन यादव को शिवराज का ही समर्थक माना जाता है. इसके अलावा जिन दो डिप्टी सीएम के रूप में राजेंद्र शुक्ल व जगदीश देवड़ा को चुना गया है, वे भी शिवराज के ही समर्थक हैं. लेकिन शिवराज के मन की टीस 24 घंटे बाद ही सामने आ गई. हालांकि इनके चयन के दौरान वह मुस्कराते रहे लेकिन चेहरे के हाव-भाव पर निराशा के भाव पढ़े जा सकते थे.

एक बार कड़ा अंदाज दिखा चुके हैं : याद रहे जब बीजेपी को दो लिस्ट में शिवराज सिंह चौहान का नाम प्रत्याशी के रूप घोषित नहीं किया गया था तो उन्होंने ऐसा रंग दिखाया था कि दिल्ली की सल्तनत के कान खड़े हो गए थे. टिकट नहीं मिलने की कयासबाजी से परेशान होकर शिवराज ने जनसभा में मंचों से अपनी नाराजगी प्रकट करते हुए जनता से पूछा था कि क्या शिवराज को चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं, बताओ शिवराज ने कैसी सरकार चलाई, क्या शिवराज को फिर से मुख्यमंत्री बनना चाहिए या नहीं. यहां तक तो ठीक है. इसके बाद शिवराज ने पीएम मोदी को लेकर ही जनता से सवाल करने शुरू कर दिए थे. शिवराज ने जनता से पूछा था कि क्या मोदी को फिर से पीएम चुनोगे या नहीं. शिवराज के ये तेवर देखकर आलाकमान के होश उड़े और फिर शिवराज को टिकट भी मिली और तवज्जो भी .

उम्मीदों का लगा झटका : बीते 3 दिसंबर को चुनाव परिणाम में बीजेपी को बंपर जीत मिलने के बाद शिवराज की उम्मीदें भी कुलांचे मारने लगी. उन्होंने इस प्रचंड जीत का श्रेय अप्रत्यक्ष रूप से खुद और लाड़ली बहना को दिया. इसके साथ ही शिवराज को पूरी उम्मीद बंधी कि वही फिर से सीएम बनेंगे. चुनाव परिणाम आने के एक सप्ताह तक उनके काम करने का तरीका व भाषण की शैली भी ऐसी दिखी, जिससे लगा कि वह सीएम का पद हासिल करने के लिए पूरी तरह से आश्वस्त हैं. इसीलिए सीएम के दावेदार सारे के सारे धुरंधर दिल्ली में लॉबिंग में जुट गए. और शिवराज मध्यप्रदेश में बीजेपी की हारी सीटों पर हुंकार भरते रहे. लेकिन लगता है कि बीजेपी आलाकमान तय कर चुका था कि बहुत हुआ शिवराज अब किसी और का राज.

अब शिवराज से निपटना आसान नहीं : ऐसी संभावना जताई जा रही है कि शिवराज सिंह चौहान को केंद्र में मंत्री बनाया जाएगा. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शिवराज केंद्र में मंत्री बनने के बाद अपनी उपेक्षा व टीस को दबा पाएंगे. राजनीति के जानकार कहते हैं कि शिवराज से निपटना अब मोदी व शाह के लिए ज्यादा कठिन हो जाएगा. क्योंकि शिवराज सिंह ऐसे नेता हैं जो हमेशा शांत रहते हैं. सधे बयान देते हैं. लेकिन किसी भी मामले में शिवराज अन्य नेताओं से बहुत घाघ हैं. मंगलवार को जब उन्होंने ये बयान दिया 'कुछ मांगने से अच्छा है मर जाना' तो इससे उनका अंदाज समझा जा सकता है.

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अन्य रुष्ट दिग्गजों का भी साथ मिलेगा : इसमें कोई शक नहीं कि शिवराज पार्टी आलाकमान से रुष्ट हैं. अब उन्हें प्रदेश के उन दिग्गजों का भी साथ मिल जाएगा, जिन्हें दरकिनार किया गया है. इनमें प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, राकेश सिंह जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं. कुछ माह बाद लोकसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में ये नेता इसी प्रकार रुष्ट रहे तो मध्यप्रदेश में 29 में से 29 सीटें जीतने का सपना केवल सपना ही रह जाएगा. क्योंकि प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय और राकेश सिंह जैसे नेता भले ही अपने इलाकों में प्रभावशाली हों लेकिन शिवराज पूरे प्रदेश में लोकप्रिय नेता हैं. शिवराज का ठोस जनाधार हैं. 18 साल तक सीएम रहने के कारण प्रशासनिक मशीनरी पर शिवराज की मजबूत पकड़ है. हर जिले में शिवराज कम से कम 100 बीजेपी नेताओं को नाम से जानते हैं. ये बताता है कि शिवराज की उपेक्षा मोदी व शाह को भारी पड़ेगी.

Last Updated : Dec 12, 2023, 4:39 PM IST
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