भोपाल| प्रदेश सरकार ने मंत्रिमंडल गठन के बाद एक बड़ा फैसला लिया है. जिसके चलते 26 सालों के बाद महेश्वर परियोजना समझौते को रद कर दिया गया है. सरकार ने माना है कि, यहां से मिलने वाली बिजली काफी महंगी है. हालांकि इस परियोजना से अभी तक किसी भी प्रकार का उत्पादन नहीं हुआ है. लेकिन राज्य सरकार को सीधे तौर पर 42 हजार करोड़ रुपए की बचत होगी, जो कंपनी को अनुबंध के तहत दी जानी थी.
दरअसल, इस परियोजना में खरगोन में नर्मदा नदी पर बिजली बनाई जानी थी. जिसमें 400 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा गया था, इसके लिए सरकार ने एस कुमार समूह की कंपनी से अनुबंध किया गया था. इसके लिए 18 रुपए प्रति यूनिट बिजली के दाम तय किए गए थे, जो आज की स्थिति में कहीं ज्यादा हैं. क्योंकि आज सरकार को दो से तीन रुपये प्रति यूनिट बिजली आसानी से मिल जाती है. इन सभी बिंदुओं को देखते हुए राज्य सरकार ने 20 अप्रैल को इस समझौते को रद करने का आदेश दिया था, इसके बाद 21 अप्रैल को एमपी पावर मैनेजमेंट कंपनी ने इस आदेश के तहत पुनर्वास समझौते और एस्क्रों गारंटी को रद कर दिया है. इससे पूरी परियोजना का समझौता और उससे जुड़ा निर्णय रद हो गए हैं.
बता दें कि, इस परियोजना की शुरुआत से ही कई तरह के घोटालों के आरोप लगते रहे हैं. सीएजी रिपोर्ट में कई तरह की गड़बड़ियां भी पकड़ी गई हैं. यही वजह है कि, इस परियोजना का काम भी बंद है. एक बार तो इस परियोजना स्थल की कुर्की भी हुई है. जिसके चलते करीब 10 सालों तक काम पूरी तरह से ठप पड़ा रहा. हालांकि अभी भी इस मामले में भ्रष्टाचार और अन्य शिकायतों को लेकर जांच की जा रही है.
विवादों में रहा इसका इतिहास
1994 में एस कुमार समूह ने यह प्रोजेक्ट मंजूर कराया था.
1994 में ही बिजली खरीदी का सरकार से समझौता हुआ.
1996 में प्रोजेक्ट में संशोधन पर साइन किए गए, बिजली नहीं लेने पर भी 35 साल तक 1299 करोड़ रुपए सरकार को देने होते.
1997 से इस परियोजना का विरोध शुरू हो गया, नर्मदा बचाओ आंदोलन का संघर्ष भी यहीं से शुरू हुआ, जो अभी भी लगातार जारी है.