भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव का दौर जारी है. इसी सिलसिले में एमपी की सियासत में जोर अजमाइश है. ऐसा में में ईटीवी भारत अपनी खास सीरीज मध्यप्रदेश के इतिहास से जुड़े फैक्ट्स आपके साथ साझा कर रहा है. पूरी जानकारी इतिहास में हुई घटनाओं के आधार पर जुटाई गई है. जिसने न सिर्फ मध्यप्रदेश के इतिहास को बदला, बल्कि उसके भूगोल में परिवर्तन कर दिया. मध्यप्रदेश में आगामी समय में 230 विधानसभाओं पर चुनाव होने हैं. यहां बीजेपी की सत्ता है, लेकिन कांग्रेस का भी अपना इतिहास रहा है. ऐसे में दोनों पार्टियां इस बार अपने हिस्से की राजनीतिक लड़ाई प्रदेश में लड़ रही है.
(आइए जानते हैं, एमपी से जुड़ी 1947 से अबतक हुई इन खास घटनाओं के बारे में..)
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पहली घटना: भारत को आजादी मिली. इसके बाद संविधान निर्माता भारत को गणतंत्र का रूप देने के लिए संविधान का निर्माण करने में जुट गए. उस समय भारत में कई रियासत और राजा रजवाड़ों का राज था. ऐसी ही एक रियासत भोपाल थी. नवाबों की शासित इस रियासत को भारत में मिलाने के लिए कई दिन की जद्दोजहद चली. बात, आजादी से दो साल बाद की है, यानी 1 जून 1949 के समय की. उस समय भोपाल की रियासत की कमान नवाब हमीदुल्लाह खान के हाथ में थी. भोपाल उन आखिरी रियासतों में शामिल था, जिन्हें भारत में विलय किया जाना बाकी थी. इसी सिलसिले में दिसंबर 1948 को नवाब के खिलाफ भोपाल में बगावत की आग तेज हो गई. इस दौरान कई नेताओं को गिरफ्तार किया जाने लगा. लेकिन, बढ़ते विद्रोह के बीच और भारत सरकार के दवाब के चलते नवाब हमीदुल्लाह को झुकना पड़ा. उन्होंने आखिरकार 30 अप्रैल 1949 को एक एग्रीमेंट के तहत हस्ताक्षर किया. इसके तहत भोपाल को भारत सरकार को सौंप दिया गया. ये सभी घटना उस समय 1 जून 1949 को हुई. तब से भोपाल रियासत भारत का हिस्सा हो गया.
दूसरी घटना: पहली घटना के बाद जैसे मध्यप्रदेश बनने का सिलसिला चल निकला. शुरु में मध्यप्रदेश में कई राजा रजवाड़े शामिल थे. प्रदेश एक राज्य न होकर कई छोटी-छोटी ईकाईयों में बंटा हुआ था. इन पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था. बात 18वीं शताब्दी की रही होगी. इन सभी ईकाईयों को मध्यभारत के प्रांतों, बरार और सेंट्रल इंडिया एजेंसी में शामिल कर लिया गया. आजादी की बाद मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया. तब इसकी राजधानी नागपुर बनाई गई. आज नागपुर महाराष्ट्र राज्य का हिस्सा है. तब के मध्यप्रदेश और अबके मध्यप्रदेश में काफी अंतर था. नागपुर का हिस्सा तब दक्षिणी हिस्सा था. इसके बाद 1956 में मध्यप्रदेश का पुन:निर्माण किया गया. इनमें मध्यभारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल विरासत को जोड़ा गया. भोपाल को राजधानी की पहचान मिली. इस राज्य के पहले गवर्नर सीतारमैया बने और मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ला को बनाया गया.
तीसरी घटना: मध्यप्रदेश के इतिहास में सबसे बड़ा बदलाव तब आया, जब गैर कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई. इसके मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह थे. ये ऐतिहासिक राजनैतिक घटना थी. प्रदेश में पहली गठबंधन की सरकार का निर्माण हुआ. इस गठबंधन का नाम संयुक्त विधायक दल था. लेकिन ये सरकार ज्यादा दिन नहीं चली, और जनता पार्टी के शासन काल में लगातार तीन मुख्यमंत्री बदल दिए गए. इन घटनाओं का टाइम पीरियड 1977 से 1980 रहा. इसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, जो 1990 तक सत्ता में रही. फिर आया सुंदरलाल पटवा युग और पहली बार प्रदेश में बीजेपी की सरकार स्थापित हुई.
चौथी घटना: एक घटना जो बेहद जरूरी थी, वो साल प्रदेश में 2 दिसंबर को 1982 को घटी. ये घटना डिसक्वरी ऑफ नर्मदा मैन (Discovery of Narmada Man) के नाम से फेमस हुई. यानी नर्मदा के किनारे आदम की खोज. इसका पूरा श्रेय जियोलॉजिस्ट या भू विज्ञानी अरुण सोनकिया को जाता है. इस खोज ने मानव इतिहास यानि Human Existence को पूरी तरह बदल दिया. उन्हें सीहोर जिले के हथनोरा गांव में नर्मदा के किनारे सबसे बड़ा जीवाश्म मिला (Greatest Fossil). ये इसलिए चर्चा में आया क्योंकि भारत का पहला मानव जीवाश्म था. यानी एक आदम युग के मानव की खोपड़ी का अंश. जिसके बाद भारत भी विश्व जीवाश्म के नक्शे पर आ गया. इसने मानव की उपस्थिति को साबित किया. ये लगभग 5 से 6 लाख पुराना है.
पांचवी घटना: एक विकराल घटना ने न सिर्फ मध्यप्रदेश को झकझोरा बल्कि पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया. ये औद्योगिक दुनिया की सबसे आमनवीय घटना था, जो आज भी लोगों को जहन में है. भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड का प्लांट था. यहां से मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का रिसाव हुआ, और 5 लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित कर दिया. इस जानलेवा घटना ने लगभग 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली. यहां श्मशानों में जगह न होने की वजह से कई लाशों को नर्मदा में बहा देना पड़ा. श्मशान में लकड़ियों के लिए पेड़ काटे गए. करीबन दो हजार जानवरों की मौत हो गई.
छटवीं घटना: नई शताब्दी मे दस्तक दे रही दुनिया खुश थी. लेकिन एमपी के लिए विघटन का समय था. भौगोलिक रूप से मध्यप्रदेश को दो हिस्सों में बांट दिया गया. ये हुआ 1 नवंबर 2000 में. प्रदेश के दक्षिणी पूर्वी इलाके को अलग कर नया प्रदेश का गठन किया गया. ये राज्य छत्तीसगढ़ के रूप में अस्तित्व में आया. इस राज्य को बनाने की मांग 1920 से चली आ रही थी. इसी तरह की मांग के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गई थी. लेकिन उस समय आयोग ने इन मामलों को संज्ञान में नहीं लिया. साल 1990 में एक मंच तैयार हुआ. इसका नाम रखा छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण मंच. इसने छत्तीसगढ़ बनाने की मांग को रखा. इसके बाद संसद में बिल पास हुआ और एक नया राज्य मध्यप्रदेश से कटकर अस्तित्व में आया.