भोपाल। मध्यप्रदेश में हुए 28 विधानसभा उपचुनाव के बाद दबी जुबान में कमलनाथ के 2 पदों पर बने रहने का विरोध शुरू हो गया है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. वहीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं. उपचुनाव में हुई हार के बाद कुछ लोग कमलनाथ के दो पद पर बने रहने पर सवाल खड़े कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में कमलनाथ पर भी दबाव बन रहा है.
हालांकि बुधवार को हुई विधायक दल की बैठक में कमलनाथ ने संकेत दिए हैं कि वह प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे. ऐसी स्थिति में तय माना जा रहा है कि कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ देंगे. इन परिस्थितियों में दावेदारों ने भी दावेदारी शुरू कर दी है. हालांकि सीधे तौर पर कोई दावेदार अपनी दावेदारी पेश नहीं कर रहा है, लेकिन मीडिया के माध्यम से अलग-अलग नाम सुर्खियां बटोर रहे हैं.
प्रदेश अध्यक्ष बने रहने के दिए संकेत
विधायक दल की बैठक में कमलनाथ के संबोधन से साफ संकेत मिल है कि, वह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने रहेंगे. उन्होंने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि हम हिम्मत हारने वालों में से नहीं हैं, हम संघर्ष करेंगे और 2023 के लिए अभी से संघर्ष शुरू करेंगे. अगला समय नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव का है. उसके लिए अभी से हम सभी को जुटना होगा. कमलनाथ ने कहा कि वह अपने जीवन में कभी भी किसी भी कांग्रेसी का सर झुकने नहीं दिया, जो कहते हैं कि कमलनाथ प्रदेश छोड़कर चले जाएंगे, वह सुन लें कि कमलनाथ जीवन भर कांग्रेस के साथ मिलकर प्रदेश वासियों की सेवा करते रहेंगे.
कांग्रेस में हुआ भीतरघात
मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अजय सिंह यादव का कहना है कि 2018 विधानसभा के चुनाव में कमलनाथ का ऊर्जावान नेतृत्व था. जिसकी वजह से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार 15 साल बाद बनी थी. उसके बाद किस तरह से हमारी सरकार 15 महीने बाद गिराई गई. हमारे अपने लोगों ने धोखा दिया. पार्टी में रिक्तिता की स्थिति आई है. वहीं इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार देवदत्त दुबे कहते हैं कि स्वाभाविक रूप से जब हार होती है, तो नेतृत्व के ऊपर ठीकरा फूटता है और जीत होती है, तो श्रेय भी मिलता है. लेकिन एक बात कांग्रेस और कांग्रेसियों को समझना पड़ेगा कि मध्य प्रदेश में बीजेपी की 15 साल की सरकार के बाद कमलनाथ जब प्रदेश अध्यक्ष बन कर आए तो उन्होंने सब को एक साथ लिया, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया को साथ लिया. और सब की भूमिका तय की. उन्होंने पीसीसी के अंदर 3 महीने बैठकर बूथ स्तर पर जो कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी की उसी का नतीजा था कि 15 साल बाद कांग्रेस सरकार प्रदेश में आई थी.