कहते हैं कि भूख से बड़ी कोई बीमारी नहीं होती, कोरोना के कारण पूरे देश में ताला बंदी करनी पड़ी, कोई कोरोना के संक्रमण से मर रहा है तो कोई भूख से. आज देश की गरीब जनता पर दोहरी मार पड़ रही है. बाहर जाएगी तो कोरोना का डर और घर पर रहेगी तो पेट की आग परेशान करती है. सरकारें दावा कर रहीं है कि सभी को खाने की व्यवस्था की जा रही है लेकिन इसी बीच आज भी कई ऐसे मजदूर हैं जिनके घर में पिछले कई दिनों से अन्न तक नहीं है. उनके बच्चों के मुंह से एक बात निकलती है कि साहब खाने को कुछ दे दो, मजदूर कह रहे हैं कि साहब हमने थाली भी बजाई और ताली भी. फिर भी भूख न मिट सकी.
अब गरीब मजदूर भी क्या करें उनको थोड़ी मालूम था कि पहले गरीबी का संकट रहेगा फिर कमाने निकलेंगे तो कोरोना का संकट सिर पर आ बैठेगा. पहले रोटी नहीं, रोजगार नहीं जब रोजगार मिला तो लॉकडाउन में वो छिन गया. मजदूर अब जाए भी तो कहां अपने परिवापर की भूख मिटाए भी तो कैसे. रोजगार नहीं तो पैसे भी नहीं ऐसे में घर में बूढ़े मां बाप को दवाई, बच्चों की स्कूल फीस कैसे दी जाएगी इस बात की चिंता हर उस मजबूर मां बाप को सता रही है.
जब इस तरह की तस्वीरें सामने आतीं हैं तो मन में कई तरह के सवाल उठने लगते हैं, कि जब सरकार ने मजदूरों के लिए कई तरह की योजनाएं बनाईं हैं तो उनका फायदा जमीनी स्तर पर इन मजदूरों को क्यों नहीं मिलता. खाने की राह देखती इन मजदूर लोगों के परिवार को आखिर कब हर मुमकिन सुविधा मिलेगी. इन तस्वीरों से साफ पता चलता है कि इनको कोरोना कम भूख ज्यादा सता रही है, वरना यूं ही नहीं कोई 2 जून की रोटी के लिए भटकता है.