भोपाल। चुनावी साल लगते ही एक तरफ शिवराज सरकार में घोषणाओं की झड़ी लगी हुई है. दूसरी तरफ पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर कर्मचारी आर पार की लड़ाई के मूड में आ चुके हैं. कर्मचारियों ने राजनीतिक दलों को सीधा ऑफर दिया है, जो ओपीएस लागू करेगा, कर्मचारियों का वोट उसे ही मिलेगा. ओपीएस की मांग को लेकर प्रदेश भर में आंदोलन कर पीएम मोदी और सीएम शिवराज को ज्ञापन सौंप चुके कर्मचारियों ने वोट फॉर ओपीएस का नारा देकर साफ कर दिया है कि एमपी में सत्ता पलटने वाले किरदार में अब किसान के बाद कर्मचारी भी होंगे. नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम मोर्चा ने मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार को 30 जुलाई तक का समय दिया है. सरकार को पूरा समय देने के बाद भी अगर सुनवाई नहीं हुई तो फिर कर्मचारी जो कमिटमेंट दिखाएगा उस सियासी दल के साथ जाएंगे.
जो ओपीएस लाएगा वोट भी वहीं पाएगा: बीते विधानसभा के बजट सत्र में सरकार ने ये साफ कर दिया कि ओपीएस लागू करने का फिलहाल कोई विचार नहीं. लिहाजा कर्मचारियों ने भी आर पार की लड़ाई में आने में वक्त नहीं लगाया. कर्मचारियों ने अब बड़ा दांव ये खेला है कि अब कर्मचारियों को ये ऑफर दिया है कि जो सियासी दल अपने मैनिफेस्टों में ओपीसएस का भरोसा दिलाएगा, कर्मचारियों का वोट भी उसी के साथ जाएगा. चुनाव के एन पहले आखिरी दांव के तौर पर कर्मचारी ब़ड़ा आंदोलन छेड़ने की तैयारी में भी है. प्रदेश भर में करीब साढे़ छह लाख कर्मचारी हैं. कर्मचारी पहले भी सत्ता पलट का सीन बनाते रहे हैं. 2003 का चुनाव इसका गवाह है. फिर डाक के जिस आखिरी वोट से हार जीत में बदलती है वो वोट भी इन कर्मचारियों का ही होता है, लेकिन अब कर्मचारी भी राजनीतिक दलों की तरह दांव खेलते मैदान में है. पहले ओपीएस को अपने एजेंडे में लाओ फिर वोट ले जाओ. नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष परमानंद डेहरिया का कहना है कि हमने शिवराज सरकार को 30 जुलाई तक का समय दिया है. विधानसभा का आखिरी सत्र रहेगा. सरकार अगर उस समय तक भी ओपीएस लागू कर देती है या आश्वासन दे देती है कि नई सरकार के आते ही ये वादा पूरा होगा तो भी ठीक. वरना तय है कि हम उस सियासी दलके साथ जाएंगे जो ओपीएस लागू करेगा.
ओपीएस में उलझन कहां है: नेशनल मूवमूट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के प्रदेश अध्यक्ष प्रदेशाध्यक्ष परमानंद डेहरिया के मुताबिक न्यू पेंशन स्कीम मार्केट बैस्ड स्कीम है. ये ही इसकी सबसे बड़ी खामी है, डेहरिया के मुताबिक इस पेंशन में जो खामिया हैं वो ये हैं कि अगर किसी का वेतन साठ हजार रुपए है तो 6 हजार उनके मूल वेतन से कट जाएगा. यानि दस प्रतिशत और 14 प्रतिशत सरकार अपनी ओर से मिलाएगी. जिसे शेयर मार्केट में लगाएगी. फिर जो पूंजी जमा है. उसकी साठ प्रतिशत एक मुश्त राशि मिलती है. यानि कि अगर दस लाख जमा हुए तो छह लाख मिलेंगे. बाकी जो चार लाख हैं, उसका जो प्राफिट है, उसको बारह महीने में विभाजित करके दे दिया जाता है. जो बहुत ही न्यूनतम होता है. डेहरिया उदाहरण देकर बताते हैं कुछ कर्मचारी तो ऐसे भी हैं जिनके हिस्से कुल चार सौ रुपए ही आ पाए.
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6 लाख से ज्यादा वोटर न्यू पेंशन के दायरे में: मध्यप्रदेश में 6 लाख से ज्यादा कर्मचारी न्यू पेंशन स्कीम के दायरे में आते हैं. भारत सरकार जो नेशनल पेंशन स्कीम लाई. उसके आधार पर 2005 के बाद के कर्मचारियों को न्यू पेंशन स्कीम में माना गया. हालांकि छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सरकार ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल कर चुकी है, लेकिन एमपी में शिवराज सरकार इस मुद्दे पर दरियादिली नहीं दिखा सकी है.
ओपीएस कर्मचारियों का एक्शन प्लान: कर्मचारी पहले चरण में सीएम शिवराज और पीएम मोदी को ओपीएस को लेकर ज्ञापन सौंप चुके हैं. अब एक मई से जिला मुख्यालयों में पेंशन अधिकार यात्रा निकाली जाएगी. इसके बाद तैयारी है एक जुलाई से पूरे प्रदेश में अनिश्चितकालीन आंदोलन की.
कर्मचारी वोटर क्यों है निर्णायक: कर्मचारी का वोट इसलिए कीमती है कि कमोबेश हर विधानसभा क्षेत्र में करीब पांच हजार कर्मचारी हैं. ये वो कर्मचारी हैं, जिनकी चुनाव में ड्यूटी भी लगती है. आखिरी में डाला जाने वाला इनका वोट ही निर्णायक भी होता है.