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15 साल वनवास 15 माह सत्ता, अब नेता प्रतिपक्ष पर तकरार

मध्यप्रदेश में 15 महीने सत्ता में रहने के बाद विपक्ष में पहुंची कांग्रेस में अब नेता प्रतिपक्ष के नाम को लेकर चर्चा है. हालांकि कोरोना वायरस के चलते सियासी गलियारों में अभी हलचल बंद है. लेकिन कई नामों पर चर्चाओं का बाजार गर्म है.

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Published : Mar 30, 2020, 11:46 AM IST

Updated : Mar 30, 2020, 1:10 PM IST

भोपाल। कोरोना संकट से पहले मध्यप्रदेश में आए सियासी संकट के चलते कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिर गई. लॉकडाउन के चलते मध्यप्रदेश की सियासी हलचल थम गई है. लेकिन मध्यप्रदेश की भविष्य की राजनीति को लेकर कयासों और अटकलों का दौर जारी है. लॉकडाउन के पहले आनन फानन में शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री पद तो संभाल लिया, लेकिन मंत्रिमंडल का गठन अभी बाकी है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस अभी सरकार गिरने के सदमें से बाहर नहीं निकल पायी है. हालांकि सियासी गलियारों में नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर समीकरणों पर चर्चा शुरू हो गई है.

नेता प्रतिपक्ष को लेकर घमासान

कांग्रेस की तरफ से फिलहाल नेता प्रतिपक्ष को लेकर अभी तक कोई संकेत नहीं मिले हैं. एक तरफ मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ के ही नेता प्रतिपक्ष रहने की चर्चा जोर पकड़ रही है. तो दूसरी तरफ प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी उन्हीं के पास होने के कारण किसी नए चेहरे को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की अटकलें भी हैं. माना जा रहा है कि कोरोना संकट से निजात मिलने के बाद सियासी हलचल जोर पकड़ेगी. कांग्रेस को जल्द ही उपचुनाव का सामना करना होगा. बागियों के कारण खाली हुई कांग्रेस की सीटों पर फिर से जीत हासिल करने की बड़ी चुनौती सामने होगी.

ऐसी स्थिति में पूर्णकालिक अध्यक्ष के साथ एक तेजतर्रार नेता प्रतिपक्ष की जरूरत भी कांग्रेस को होगी. कमलनाथ समर्थक विधायक उनको प्रदेश अध्यक्ष के साथ नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जाने की मांग कर रहे हैं. उपचुनाव की परिस्थिति में दोहरी जिम्मेदारी कमलनाथ के लिए बोझ बन सकती है. अगर अनुभव और वरिष्ठता की बात करें, तो कमलनाथ सरकार के संसदीय कार्य मंत्री रहे डॉक्टर गोविंद सिंह का नाम सबसे पहले सामने आता है. अपनी तेज तर्रार कार्यशैली और अनुभव के चलते नेता प्रतिपक्ष पद के लिए डॉक्टर गोविंद सिंह मुफीद हो सकते हैं. वहीं जातीय और वर्ग के समीकरण साधने की बात अगर आती है. तो नेता प्रतिपक्ष पद के लिए कांग्रेस अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के नेता को यह पद सौंप सकती है. वहीं दूसरा नाम जीतू पटवारी का है, जिसने बहुत कम वक्त में ही प्रदेश की राजनीति में अपनी पहचान बनाई है. वहीं मध्यप्रदेश के सियासी हलचल में जीतू पटवारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

अनुसूचित जाति के नेता के तौर पर कमलनाथ सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे सज्जन सिंह वर्मा का नाम जोरों पर है. सज्जन सिंह वर्मा अपने तेज तर्रार तेवर के लिए जाने जाते हैं. वहीं अनुसूचित जनजाति से नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की चर्चा होती है. तो कमलनाथ सरकार में गृहमंत्री रहे बाला बच्चन का नाम भी जोर पकड़ रहा है. हालांकि जिन विधायकों ने कांग्रेस से बगावत की है. उनमें ज्यादातर विधायक ग्वालियर चंबल इलाके के हैं और सबसे ज्यादा उपचुनाव इसी इलाके में होना है. इसलिए डॉक्टर गोविंद सिंह का पलड़ा भारी नजर आता है.

भोपाल। कोरोना संकट से पहले मध्यप्रदेश में आए सियासी संकट के चलते कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिर गई. लॉकडाउन के चलते मध्यप्रदेश की सियासी हलचल थम गई है. लेकिन मध्यप्रदेश की भविष्य की राजनीति को लेकर कयासों और अटकलों का दौर जारी है. लॉकडाउन के पहले आनन फानन में शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री पद तो संभाल लिया, लेकिन मंत्रिमंडल का गठन अभी बाकी है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस अभी सरकार गिरने के सदमें से बाहर नहीं निकल पायी है. हालांकि सियासी गलियारों में नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर समीकरणों पर चर्चा शुरू हो गई है.

नेता प्रतिपक्ष को लेकर घमासान

कांग्रेस की तरफ से फिलहाल नेता प्रतिपक्ष को लेकर अभी तक कोई संकेत नहीं मिले हैं. एक तरफ मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ के ही नेता प्रतिपक्ष रहने की चर्चा जोर पकड़ रही है. तो दूसरी तरफ प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी उन्हीं के पास होने के कारण किसी नए चेहरे को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की अटकलें भी हैं. माना जा रहा है कि कोरोना संकट से निजात मिलने के बाद सियासी हलचल जोर पकड़ेगी. कांग्रेस को जल्द ही उपचुनाव का सामना करना होगा. बागियों के कारण खाली हुई कांग्रेस की सीटों पर फिर से जीत हासिल करने की बड़ी चुनौती सामने होगी.

ऐसी स्थिति में पूर्णकालिक अध्यक्ष के साथ एक तेजतर्रार नेता प्रतिपक्ष की जरूरत भी कांग्रेस को होगी. कमलनाथ समर्थक विधायक उनको प्रदेश अध्यक्ष के साथ नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जाने की मांग कर रहे हैं. उपचुनाव की परिस्थिति में दोहरी जिम्मेदारी कमलनाथ के लिए बोझ बन सकती है. अगर अनुभव और वरिष्ठता की बात करें, तो कमलनाथ सरकार के संसदीय कार्य मंत्री रहे डॉक्टर गोविंद सिंह का नाम सबसे पहले सामने आता है. अपनी तेज तर्रार कार्यशैली और अनुभव के चलते नेता प्रतिपक्ष पद के लिए डॉक्टर गोविंद सिंह मुफीद हो सकते हैं. वहीं जातीय और वर्ग के समीकरण साधने की बात अगर आती है. तो नेता प्रतिपक्ष पद के लिए कांग्रेस अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के नेता को यह पद सौंप सकती है. वहीं दूसरा नाम जीतू पटवारी का है, जिसने बहुत कम वक्त में ही प्रदेश की राजनीति में अपनी पहचान बनाई है. वहीं मध्यप्रदेश के सियासी हलचल में जीतू पटवारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

अनुसूचित जाति के नेता के तौर पर कमलनाथ सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे सज्जन सिंह वर्मा का नाम जोरों पर है. सज्जन सिंह वर्मा अपने तेज तर्रार तेवर के लिए जाने जाते हैं. वहीं अनुसूचित जनजाति से नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की चर्चा होती है. तो कमलनाथ सरकार में गृहमंत्री रहे बाला बच्चन का नाम भी जोर पकड़ रहा है. हालांकि जिन विधायकों ने कांग्रेस से बगावत की है. उनमें ज्यादातर विधायक ग्वालियर चंबल इलाके के हैं और सबसे ज्यादा उपचुनाव इसी इलाके में होना है. इसलिए डॉक्टर गोविंद सिंह का पलड़ा भारी नजर आता है.

Last Updated : Mar 30, 2020, 1:10 PM IST
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