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MP: संविधान का एक 'बिग' तो दूसरा 'बॉस', किसका मंगल करेगा सियासत का मंगल'वार'

मध्यप्रदेश में सत्ता की लड़ाई अब अहम की लड़ाई बनती जा रही है, बॉस और बिग बॉस के बीच कम्यूनिकेशन गैप भी काफी हद तक इसके लिए जिम्मेदार है, अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सबकी निगाहें टिकी हैं. कुल मिलाकर अभी तक प्रदेश के सियासी संकट का कोई मुकम्मल हल नहीं निकल सका है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार, विधानसभा अध्यक्ष और प्रमुख सचिव को नोटिस जारी किया है साथ ही बागी विधायकों को भी पक्षकार बनाने का आदेश दिया है, अब बुधवार को सुबह 10.30 पर फिर सुनवाई होगी.

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Published : Mar 17, 2020, 9:51 AM IST

Updated : Mar 17, 2020, 1:13 PM IST

mp govt crisis
सियासत का मंगल'वार'

भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासी लड़ाई राजभवन से विधानसभा होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है, सियासत का ये मंगलवार ही तय करेगा कि असल मंगल किसका होगा क्योंकि अब ये लड़ाई सियासी से ज्यादा निजी होती जा रही है. सबके अपने-अपने अधिकार हैं तो सबका अपना अपना दायरा भी है, तकनीकी रूप से राज्यपाल विधानसभा अध्यक्ष को आदेशित नहीं कर सकता है और विधानसभा अध्यक्ष राज्यपाल के निर्देश को अपनी कसौटी पर कसने के बाद ही उसे मानने पर विचार करेगा, जबकि सुप्रीम कोर्ट पर भी सबके अधिकारों को ही संरक्षित करने की जिम्मेदारी रहती है, ऐसे में बॉस और बिग बॉस के बीच अधिकारों के इस पर टकराव के पटापेक्ष के लिए सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं.

मुकुल रोहतगी

मंगलवार को बीजेपी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद प्रदेश सरकार, विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी किया है, साथ ही बागी विधायकों को भी पक्षकार बनाने का आदेश दिया है. अब बुधवार को सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट दोबारा इस मसले पर सुनवाई करेगा, अब इसके बाद सबकी निगाहें राजभवन पर टिक गई हैं क्योंकि राज्यपाल ने दोबारा आज ही फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कहा है. हालांकि, कोर्ट में सुनवाई आगे बढ़ने के बाद मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को पत्र लिखा है, जबकि बीजेपी अब भी चेतावनी दे रही है कि सरकार अल्पमत में है, इस बात को कांग्रेस जितनी जल्दी समझ जाये, उतना ही अच्छा है.

  • मध्यप्रदेश की सरकार अल्पमत में है। इस वस्तुस्थिति को कांग्रेस के नेता जितनी जल्दी समझ लें, उनके लिए उतना ही अच्छा होगा!

    — Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) March 17, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

विधानसभा की कार्यवाही खत्म होते ही शिवराज सिंह 106 विधायकों को लेकर राजभवन पहुंच गए और राज्यपाल के सामने परेड कराने के बाद विधायकों के समर्थन वाली सूची भी सौंपी और कहा कि महामहिम आपके आदेशों की अवहेलना हुई है, सरकार अल्पमत में हैं, हमारे पास बहुमत है, लेकिन सरकार रणछोड़ बन गई है और बिना बहुमत साबित किए ही विधानसभा को 10 दिन के लिए स्थगित कर दिया गया, जोकि पूरी तरह असंवैधानिक है. जिसके बाद फौरन राज्यपाल ने दूसरा पत्र भी ये कहते हुए जारी कर दिया कि यदि 17 मार्च को सरकार सदन में बहुमत साबित नहीं करती है तो ये मान लिया जाएगा कि सरकार अल्पमत में है. इसके बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने फिर राज्यपाल से मुलाकात की थी.

letter for governor
राज्यपाल को लिखा पत्र

कुल मिलाकर तकनीकी रूप से देखा जाये तो 17 मार्च को फ्लोर टेस्ट नहीं होने की स्थिति में राज्यपाल ने सरकार को अल्पमत में मान लिया है, ऐसे में संभव है कि राज्यपाल सरकार को बर्खास्त कर दें या फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा राष्ट्रपति से कर दें. पर ऐसा करने से पहले राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे और दूसरी बात ये भी है कि राज्यपाल सरकार को तकनीकी खामियां करने का मौका भी बार-बार दे रहे हैं, ताकि लोकतंत्र की हत्या करने के कलंक से भी वो बच सकें. उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट भी विधानसभा अध्यक्ष को फ्लोर टेस्ट कराने को कह सकता है. कुल मिलाकर सिंधिया समर्थक 16 बागी विधायकों पर ही संग्राम छिड़ा है.

letter for governor
राज्यपाल को लिखा पत्र

अब जब सिंधिया समर्थक विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ठीक पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एक सुर में कह दिया कि हम सब अपनी स्वेच्छा से यहां आए हैं, हमे किसी ने बंधक नहीं बनाया है, सीआरपीएफ की सुरक्षा मिलने के तुरंत बाद हम भोपाल चले जाएंगे, विधायकों ने अपना दर्द भी बयां किया है कि कैसे प्रदेश सरकार सिर्फ छिंदवाड़ा तक सीमित रह गई है. अब सुप्रीम कोर्ट में बागी विधायकों को बंधक बनाने के कांग्रेस के आरोप का बीजेपी को तोड़ मिल गया है, अब कुल मिलाकर लगता है कि फ्लोर टेस्ट का रास्ता लगभग साफ हो गया है क्योंकि कांग्रेस बार-बार यही कहती रही है कि विधायकों को बीजेपी रिहा करे. अब विधायक आने के लिए भी तैयार हैं, साथ ही ये भी सवाल उठा रहे हैं कि जब 22 विधायकों का कृत्य एक जैसा ही है तो फिर सिर्फ 6 विधायकों का इस्तीफा ही क्यों मंजूर किया गया.

भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासी लड़ाई राजभवन से विधानसभा होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है, सियासत का ये मंगलवार ही तय करेगा कि असल मंगल किसका होगा क्योंकि अब ये लड़ाई सियासी से ज्यादा निजी होती जा रही है. सबके अपने-अपने अधिकार हैं तो सबका अपना अपना दायरा भी है, तकनीकी रूप से राज्यपाल विधानसभा अध्यक्ष को आदेशित नहीं कर सकता है और विधानसभा अध्यक्ष राज्यपाल के निर्देश को अपनी कसौटी पर कसने के बाद ही उसे मानने पर विचार करेगा, जबकि सुप्रीम कोर्ट पर भी सबके अधिकारों को ही संरक्षित करने की जिम्मेदारी रहती है, ऐसे में बॉस और बिग बॉस के बीच अधिकारों के इस पर टकराव के पटापेक्ष के लिए सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं.

मुकुल रोहतगी

मंगलवार को बीजेपी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद प्रदेश सरकार, विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी किया है, साथ ही बागी विधायकों को भी पक्षकार बनाने का आदेश दिया है. अब बुधवार को सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट दोबारा इस मसले पर सुनवाई करेगा, अब इसके बाद सबकी निगाहें राजभवन पर टिक गई हैं क्योंकि राज्यपाल ने दोबारा आज ही फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कहा है. हालांकि, कोर्ट में सुनवाई आगे बढ़ने के बाद मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को पत्र लिखा है, जबकि बीजेपी अब भी चेतावनी दे रही है कि सरकार अल्पमत में है, इस बात को कांग्रेस जितनी जल्दी समझ जाये, उतना ही अच्छा है.

  • मध्यप्रदेश की सरकार अल्पमत में है। इस वस्तुस्थिति को कांग्रेस के नेता जितनी जल्दी समझ लें, उनके लिए उतना ही अच्छा होगा!

    — Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) March 17, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

विधानसभा की कार्यवाही खत्म होते ही शिवराज सिंह 106 विधायकों को लेकर राजभवन पहुंच गए और राज्यपाल के सामने परेड कराने के बाद विधायकों के समर्थन वाली सूची भी सौंपी और कहा कि महामहिम आपके आदेशों की अवहेलना हुई है, सरकार अल्पमत में हैं, हमारे पास बहुमत है, लेकिन सरकार रणछोड़ बन गई है और बिना बहुमत साबित किए ही विधानसभा को 10 दिन के लिए स्थगित कर दिया गया, जोकि पूरी तरह असंवैधानिक है. जिसके बाद फौरन राज्यपाल ने दूसरा पत्र भी ये कहते हुए जारी कर दिया कि यदि 17 मार्च को सरकार सदन में बहुमत साबित नहीं करती है तो ये मान लिया जाएगा कि सरकार अल्पमत में है. इसके बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने फिर राज्यपाल से मुलाकात की थी.

letter for governor
राज्यपाल को लिखा पत्र

कुल मिलाकर तकनीकी रूप से देखा जाये तो 17 मार्च को फ्लोर टेस्ट नहीं होने की स्थिति में राज्यपाल ने सरकार को अल्पमत में मान लिया है, ऐसे में संभव है कि राज्यपाल सरकार को बर्खास्त कर दें या फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा राष्ट्रपति से कर दें. पर ऐसा करने से पहले राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे और दूसरी बात ये भी है कि राज्यपाल सरकार को तकनीकी खामियां करने का मौका भी बार-बार दे रहे हैं, ताकि लोकतंत्र की हत्या करने के कलंक से भी वो बच सकें. उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट भी विधानसभा अध्यक्ष को फ्लोर टेस्ट कराने को कह सकता है. कुल मिलाकर सिंधिया समर्थक 16 बागी विधायकों पर ही संग्राम छिड़ा है.

letter for governor
राज्यपाल को लिखा पत्र

अब जब सिंधिया समर्थक विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ठीक पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एक सुर में कह दिया कि हम सब अपनी स्वेच्छा से यहां आए हैं, हमे किसी ने बंधक नहीं बनाया है, सीआरपीएफ की सुरक्षा मिलने के तुरंत बाद हम भोपाल चले जाएंगे, विधायकों ने अपना दर्द भी बयां किया है कि कैसे प्रदेश सरकार सिर्फ छिंदवाड़ा तक सीमित रह गई है. अब सुप्रीम कोर्ट में बागी विधायकों को बंधक बनाने के कांग्रेस के आरोप का बीजेपी को तोड़ मिल गया है, अब कुल मिलाकर लगता है कि फ्लोर टेस्ट का रास्ता लगभग साफ हो गया है क्योंकि कांग्रेस बार-बार यही कहती रही है कि विधायकों को बीजेपी रिहा करे. अब विधायक आने के लिए भी तैयार हैं, साथ ही ये भी सवाल उठा रहे हैं कि जब 22 विधायकों का कृत्य एक जैसा ही है तो फिर सिर्फ 6 विधायकों का इस्तीफा ही क्यों मंजूर किया गया.

Last Updated : Mar 17, 2020, 1:13 PM IST
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