भोपाल। झाबुआ उपचुनाव के परिणाम आ चुके हैं. मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया ने बीजेपी उम्मीदवार भानू भूरिया को 27 हजार से ज्यादा मतों से हराकर बड़ी जीत दर्ज की है. कांतिलाल की जीत के साथ ही भविष्य की राजनीति और रणनीति की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी हैं. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कांतिलाल भूरिया अपने कद के चलते कमलनाथ मंत्रिमंडल में सदस्य होने के तो स्वाभाविक उम्मीदवार हैं. इसके अलावा वह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बड़े दावेदार हो सकते हैं.
मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को कोई परेशानी नहीं होगी. वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की 47 सीटों में से कांग्रेस के लिए 31 सीटें देने वाले आदिवासी वर्ग के लिए कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा पद हासिल होगा. चर्चा ये चल रही है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जानबूझकर भूरिया को झाबुआ चुनाव लड़ाकर प्रदेश अध्यक्ष पद के अन्य दावेदारों की दावेदारी कमजोर करने का काम किया है. खासतौर पर कांतिलाल भूरिया के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया की दावेदारी कमजोर पड़ती नजर आ रही है.
कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना ने बताया कि मुख्यमंत्री कमलनाथ बहुत दिनों से कह रहे हैं कि मैं मुख्यमंत्री हूं और मुझे प्रदेश अध्यक्ष पद से मुक्ति दी जाए. जिस तरह प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के रूप में समन्वय स्थापित कर कमलनाथ ने पूरे हिंदुस्तान को बता दिया है कि कमलनाथ जैसा रणनीतिकार कोई नहीं है. झाबुआ की जीत ने स्थापित कर दिया कि कांग्रेस पार्टी उनके नेतृत्व में बहुत तेजी के साथ मध्यप्रदेश में अपनी जड़े मजबूत कर रही है. जिस तरह से भाजपा के कु प्रचार और षड्यंत्र के बावजूद कांग्रेस ने भारी जीत हासिल की है, उसका पूरा श्रेय मुख्यमंत्री कमलनाथ को जाता है.
कांतिलाल भूरिया दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनेंगे या कमलनाथ मंत्रिमंडल का हिस्सा होंगे, इस सवाल पर रवि सक्सेना का कहना है कि आज तो चुनाव निपटे हैं. आगे सोनिया गांधी के साथ कमलनाथ बैठेंगे और बात करेंगे. जो भी इस दिशा में होगा वह किया जाएगा.
कितने सटीक है प्रदेशाध्यक्ष पद के दावेदार कांतिलाल भूरिया
जहां तक प्रदेशाध्यक्ष पद को लेकर कांतिलाल भूरिया की दावेदारी की है तो कांतिलाल भूरिया पहले भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभाल चुके हैं. उनके पास अच्छा खासा अनुभव है. भूरिया का अपना उपलब्धियों से भरा राजनैतिक अनुभव भी रहा है. कांतिलाल भूरिया जहां दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे हैं. तो वहीं यूपीए वन में जनजाति कल्याण विभाग के केंद्रीय मंत्री भी रहे चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने लंबे समय तक मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभाली है. दिग्विजय सिंह के करीबी होने के कारण कमलनाथ से भी उनके नजदीकी संबंध हैं.
आदिवासी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा
विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव. हाल ही में झाबुआ उपचुनाव में आदिवासी वर्ग ने कांग्रेस पर पूरा भरोसा जताया है. विधानसभा चुनाव में 47 आदिवासी सीटों में से कांग्रेस ने 30 पर जीत हासिल की थी और अब झाबुआ उपचुनाव में झाबुआ में हुई हार का बदला भी कांग्रेस ने ले लिया है. इस तरह कांग्रेस का कब्जा प्रदेश की 47 आदिवासी सीटों में से 31 आदिवासी सीटों पर हो चुका है. हालांकि कमलनाथ मंत्रिमंडल में चार आदिवासी वर्ग के मंत्री बनाए गए हैं और कांतिलाल भूरिया के जीतने के बाद वह स्वाभाविक मंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं.
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष को लेकर अटकलें तेज
मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कांतिलाल भूरिया का नाम आगे बढ़ा सकते हैं और आदिवासी वर्ग को सम्मान देने के नाम पर सोनिया गांधी दोबारा कांतिलाल भूरिया को मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप सकती हैं. कांतिलाल भूरिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की स्थिति में संगठन और सरकार में टकराव की स्थिति ना के बराबर रहेगी और अपनी वरिष्ठता और अनुभव के चलते कांतिलाल भूरिया मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते नजर आएंगे. मुख्यमंत्री कमलनाथ को इससे बड़ा फायदा यह भी होगा कि कई दावेदार ऐसे हैं.
मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए आसन नहीं है डगर
प्रदेश अध्यक्ष पद हासिल कर कमलनाथ सरकार को समानांतर चुनौती देना चाहते हैं. उनकी दावेदारी कमजोर हो जाएगी. ऐसी स्थिति में माना जा रहा है कि कांतिलाल भूरिया को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है.
मंत्रीमण्डल में जगह पाने के लिए दांवपेंज की तीर
जहां तक कमलनाथ मंत्रिमंडल में कांतिलाल भूरिया के शामिल होने की बात करें तो सरकार बचाए रखने के लिए कमलनाथ के लिए पार्टी और पार्टी के बाहर के विधायक आए दिन आंखें दिखाते रहते हैं. कांग्रेस के अंदर ही लक्ष्मण सिंह, राज्यवर्धन सिंह, बिसाहू लाल सिंह जैसे कई लोग हैं. जो पहली बार में ही मंत्री बनना चाह रहे थे. लेकिन उन्हें मंत्री पद हासिल नहीं हो सका है. इसके अलावा निर्दलीय चार विधायकों में एक विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा भी आए दिन मुख्यमंत्री पर दबाव बनाने के बयान देते रहते हैं. पिछले दिनों तो पहली बार ही विदिशा विधानसभा से चुनाव जीते शशांक भार्गव के समर्थकों ने तो मुख्यमंत्री आवास पर उनको मंत्री बनाए जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था.