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'शिव' की कुंडली में कैसे आया 'राज'योग, जानें सत्ता के शिखर पर किस तरह पहुंचे पांव-पांव वाले भैया

आरएसएस जिस काम में 1925 से लगा था, उसका अहम पड़ाव साल 2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद पूरा हुआ. लेकिन संघ सत्ता की तरह 5 साल की इकाई में नहीं सोचता, वह सोचता है दशकों में. तो 2014 खुद को दोहराता रहे इसलिए संघ की नर्सरी से निकले नेता को दिल्ली तलब किया गया. वह नेता, जिसे संघ और भाजपा ने बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार किया था. 'मोदी ने ऑफर दिया- मेरे कृषि मंत्री बन जाओ' लेकिन वह नेता दूसरे दिन अपनी राजधानी लौट आया. सत्ता को अपनी मुट्ठी में रखने वाले मोदी को ये इनकार की तरह महसूस हुआ. मध्य प्रदेश का वह सीएम जो नरेंद्र मोदी जैसे धाकड़ नेता की नाराजगी और व्यापमं जैसे भीषण भ्रष्टाचार के आरोप से लेकर किसानों पर चली गोलियों तक, हर तरह के क्राइसेस को मैनेज करने में माहिर दिखा. जी हां, हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की. शायद ही उनकी कोई ऐसी चुनावी सभा होगी, जिसमें ये न बताएं कि वे किसान पुत्र हैं. तो आइए जानते हैं कि कैसा रहा किसान पुत्र से सत्ता के शिखर तक का उनका राजनीतिक सफर...

Shivraj singh Chouhan
शिवराज की राजनीतिक प्रोफाइल
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Published : Mar 5, 2023, 6:00 AM IST

Updated : Mar 5, 2023, 2:43 PM IST

भोपाल। साल था 1959 का, जब सीहोर जिले के जैत गांव में प्रेम सिंह चौहान के घर 5 मार्च को एक बालक पैदा हुआ. उसका नाम शिवराज रखा गया. तब किसे पता था कि ये बालक बड़ा होकर मध्यप्रदेश की सत्ता की चाबी अपने हाथ में ले लेगा. किसे पता था कि ये सबसे ज्यादा समय तक सीएम आवास में रहने वाला नेता बन जाएगा. किसे पता था कि शिवराज के नाम के साथ 'राज' इस कदर जुड़ जाएगा कि वे मध्यप्रदेश में सत्ता की चौथी सफल पारी खेलने वाले पहले नेता बन जाएंगे.

छात्र जीवन में दिखाया हुनर: 16 साल की उम्र में शिवराज सिंह चौहान एबीवीपी से जुड़ गए. कॉलेज पहुंचे तो स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बने. सफर चलता रहा और भोपाल की बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी से एमए किया. यहां भी उनका राजनीतिक सफर जारी रहा. इस यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल हासिल करने वाले शिवराज खुद मध्यप्रदेश के लिए गोल्ड मैडल बन गए.

ऐसे बने जननेता: शिवराज इमरजेंसी में जेल की सलाखों के पीछे भी रहे. कहा जाता है कि इन्हें भी कैलाश जोशी की तरह मीसाबंदी फली. जब शिवराज जेल से बाहर आए तो इनको एबीवीपी का संगठन मंत्री बना दिया गया. रणनीतिक प्रतिभा को देखते हुए इसके बाद शिवराज को युवाओं की कमान सौंपी गई और मध्यप्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया. अक्टूबर 1989 में शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेशभर में क्रांति मशाल यात्रा निकाली. इस यात्रा का समापन भोपाल में हुआ. यहां लाखों की तादाद में युवाओं की भीड़ पहुंची और इस भीड़ ने शिव की कुंडली में राजयोग ला दिया. शिवराज अब नेता बन गए.

लड़े और जीतते गए: जब शिवराज सिंह चौहान युवा मोर्चा में थे, तब पदयात्रा खूब करते थे. इस कारण इन्हें पांव पांव वाले भैया के नाम से पहचाना जाने लगा. जमीन से जुड़े इस नेता पर नजर पड़ी भाजपा के दिग्गज नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा की. 1990 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ तो शिवराज ने युवा मोर्चा से जुड़े कई युवा नेताओं को टिकट दिलाई. शिवराज सिंह चौहान विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे, यह तो तय था लेकिन यह तय नहीं था कि वे कहां से लड़ेंगे. उनकी राह विदिशा से सांसद बने राघवजी ने साफ कर दी. राघव जी को दिल्ली की राह पकड़नी थी. इससे पहले वे इलाके में अपना विश्वासपात्र बैठाना चाहते थे. उनकी सलाह थी कि शिवराज बुधनी से चुनाव लड़ें. यह फंसी हुई सीट थी लेकिन शिवराज लड़े और बखूबी जीते.

बीजेपी के लिए नाक का सवाल: राघवजी ने 1991 के चुनाव में विदिशा सीट से एक बार फिर लोकसभा का पर्चा भरा, लेकिन यहां से अटल बिहारी बाजपेयी ने भी पर्चा भर दिया. लालकृष्ण आडवाणी चाहते थे कि अटल जी को सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ाया जाए. विदिशा ऐसी ही सीट थी. अटल विदिशा से चुनाव जीतें, यह मध्यप्रदेश भाजपा के लिए नाक का सवाल था. ऐसे में ये जिम्मा शिवराज को सौंपा गया. और अटल जीत गए. उन्होंने लखनऊ की सीट अपने पास रखी और विदिशा में उपचुनाव हुआ.

दीदी की टीम में भी रहे : इस चुनाव में भाजपा को जिताने वाले इस जुझारू नेता पर बाजपेयी की भी नजर थी. शिवराज सिंह चौहान को उपचुनाव में उतारा गया. जीतने के बाद जब शिवराज दिल्ली पहुंचे तो उमा भारती की टीम में शामिल हो गए. ये परिचय शिवराज के बहुत काम आया.

जनता के सांसद बने: शिवराज सिंह चौहान 6 मई 1992 को साधना के साथ शादी के बंधन में बंध गए. साधना-शिवराज के 2 बेटे हैं. सांसद बनने पर लोगों का आना-जाना बढ़ा तो विदिशा के शेरपुरा में किराए से मकान लेना उचित समझा. शिवराज जब सांसद बने तब मधयप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों को उठाया और क्षेत्र में कई पदयात्राएं निकालीं. इस तरह वे पांव-पांव वाले भैया के नाम से भी पहचाने जाने लगे.

प्रदेश अध्यक्ष से मुख्यमंत्री तक: शिवराज साल 1996 में हुए 11वें लोकसभा चुनाव के दौरान फिर विदिशा से लड़े और जीत दर्ज की. 1998 में जब 12वीं लोकसभा का चुनाव हुआ तो विदिशा से तीसरी बार सांसद चुने गए. साल 1999 में 13वें लोकसभा चुनाव में वे चौथी बार सांसद बनें. इस चुनाव के बाद केंद्र में NDA की सरकार सत्ता में आई तो शिवराज केंद्र सरकार की ओर से गठित कई समितियों के सदस्य भी रहे.

प्रदेश की राजनीति से जुड़ी ये खबरें जरूर पढ़ें...

सत्ता की सफल चौथी पारी: वर्ष 2004 में हुए 14वें लोकसभा चुनाव के दौरान शिवराज पांचवीं बार सांसद चुने गए थे. साल 2005 में शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था. 29 नवंबर 2005 को जब बाबूलाल गौर ने अपने पद से इस्तीफा दिया तो शिवराज पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद वे 2005 से 2018 तक 3 बार मध्यप्रदेश के सीएम रहे. 2018 के विधानसभा चुनाव में BJP बहुमत से थोड़ा खिसक गई. इस कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा लेकिन अल्पमत में आने के बाद कमलनाथ ने इस्तीफा दिया और शिवराज सिंह फिर चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर आ गए.

भोपाल। साल था 1959 का, जब सीहोर जिले के जैत गांव में प्रेम सिंह चौहान के घर 5 मार्च को एक बालक पैदा हुआ. उसका नाम शिवराज रखा गया. तब किसे पता था कि ये बालक बड़ा होकर मध्यप्रदेश की सत्ता की चाबी अपने हाथ में ले लेगा. किसे पता था कि ये सबसे ज्यादा समय तक सीएम आवास में रहने वाला नेता बन जाएगा. किसे पता था कि शिवराज के नाम के साथ 'राज' इस कदर जुड़ जाएगा कि वे मध्यप्रदेश में सत्ता की चौथी सफल पारी खेलने वाले पहले नेता बन जाएंगे.

छात्र जीवन में दिखाया हुनर: 16 साल की उम्र में शिवराज सिंह चौहान एबीवीपी से जुड़ गए. कॉलेज पहुंचे तो स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बने. सफर चलता रहा और भोपाल की बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी से एमए किया. यहां भी उनका राजनीतिक सफर जारी रहा. इस यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल हासिल करने वाले शिवराज खुद मध्यप्रदेश के लिए गोल्ड मैडल बन गए.

ऐसे बने जननेता: शिवराज इमरजेंसी में जेल की सलाखों के पीछे भी रहे. कहा जाता है कि इन्हें भी कैलाश जोशी की तरह मीसाबंदी फली. जब शिवराज जेल से बाहर आए तो इनको एबीवीपी का संगठन मंत्री बना दिया गया. रणनीतिक प्रतिभा को देखते हुए इसके बाद शिवराज को युवाओं की कमान सौंपी गई और मध्यप्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया. अक्टूबर 1989 में शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेशभर में क्रांति मशाल यात्रा निकाली. इस यात्रा का समापन भोपाल में हुआ. यहां लाखों की तादाद में युवाओं की भीड़ पहुंची और इस भीड़ ने शिव की कुंडली में राजयोग ला दिया. शिवराज अब नेता बन गए.

लड़े और जीतते गए: जब शिवराज सिंह चौहान युवा मोर्चा में थे, तब पदयात्रा खूब करते थे. इस कारण इन्हें पांव पांव वाले भैया के नाम से पहचाना जाने लगा. जमीन से जुड़े इस नेता पर नजर पड़ी भाजपा के दिग्गज नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा की. 1990 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ तो शिवराज ने युवा मोर्चा से जुड़े कई युवा नेताओं को टिकट दिलाई. शिवराज सिंह चौहान विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे, यह तो तय था लेकिन यह तय नहीं था कि वे कहां से लड़ेंगे. उनकी राह विदिशा से सांसद बने राघवजी ने साफ कर दी. राघव जी को दिल्ली की राह पकड़नी थी. इससे पहले वे इलाके में अपना विश्वासपात्र बैठाना चाहते थे. उनकी सलाह थी कि शिवराज बुधनी से चुनाव लड़ें. यह फंसी हुई सीट थी लेकिन शिवराज लड़े और बखूबी जीते.

बीजेपी के लिए नाक का सवाल: राघवजी ने 1991 के चुनाव में विदिशा सीट से एक बार फिर लोकसभा का पर्चा भरा, लेकिन यहां से अटल बिहारी बाजपेयी ने भी पर्चा भर दिया. लालकृष्ण आडवाणी चाहते थे कि अटल जी को सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ाया जाए. विदिशा ऐसी ही सीट थी. अटल विदिशा से चुनाव जीतें, यह मध्यप्रदेश भाजपा के लिए नाक का सवाल था. ऐसे में ये जिम्मा शिवराज को सौंपा गया. और अटल जीत गए. उन्होंने लखनऊ की सीट अपने पास रखी और विदिशा में उपचुनाव हुआ.

दीदी की टीम में भी रहे : इस चुनाव में भाजपा को जिताने वाले इस जुझारू नेता पर बाजपेयी की भी नजर थी. शिवराज सिंह चौहान को उपचुनाव में उतारा गया. जीतने के बाद जब शिवराज दिल्ली पहुंचे तो उमा भारती की टीम में शामिल हो गए. ये परिचय शिवराज के बहुत काम आया.

जनता के सांसद बने: शिवराज सिंह चौहान 6 मई 1992 को साधना के साथ शादी के बंधन में बंध गए. साधना-शिवराज के 2 बेटे हैं. सांसद बनने पर लोगों का आना-जाना बढ़ा तो विदिशा के शेरपुरा में किराए से मकान लेना उचित समझा. शिवराज जब सांसद बने तब मधयप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों को उठाया और क्षेत्र में कई पदयात्राएं निकालीं. इस तरह वे पांव-पांव वाले भैया के नाम से भी पहचाने जाने लगे.

प्रदेश अध्यक्ष से मुख्यमंत्री तक: शिवराज साल 1996 में हुए 11वें लोकसभा चुनाव के दौरान फिर विदिशा से लड़े और जीत दर्ज की. 1998 में जब 12वीं लोकसभा का चुनाव हुआ तो विदिशा से तीसरी बार सांसद चुने गए. साल 1999 में 13वें लोकसभा चुनाव में वे चौथी बार सांसद बनें. इस चुनाव के बाद केंद्र में NDA की सरकार सत्ता में आई तो शिवराज केंद्र सरकार की ओर से गठित कई समितियों के सदस्य भी रहे.

प्रदेश की राजनीति से जुड़ी ये खबरें जरूर पढ़ें...

सत्ता की सफल चौथी पारी: वर्ष 2004 में हुए 14वें लोकसभा चुनाव के दौरान शिवराज पांचवीं बार सांसद चुने गए थे. साल 2005 में शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था. 29 नवंबर 2005 को जब बाबूलाल गौर ने अपने पद से इस्तीफा दिया तो शिवराज पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद वे 2005 से 2018 तक 3 बार मध्यप्रदेश के सीएम रहे. 2018 के विधानसभा चुनाव में BJP बहुमत से थोड़ा खिसक गई. इस कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा लेकिन अल्पमत में आने के बाद कमलनाथ ने इस्तीफा दिया और शिवराज सिंह फिर चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर आ गए.

Last Updated : Mar 5, 2023, 2:43 PM IST
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