भोपाल। गैस त्रासदी मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से भोपाल गैस पीड़ितों को बड़ा झटका लगा. जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार की अतिरिक्त मुआवज़े की मांग को लेकर दायर क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया है. केंद्र सरकार ने डाउ केमिकल से अतिरिक्त मुआवजे की मांग को लेकर क्यूरेटिव याचिका लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गैस पीड़ितों ने नाराजगी जताई है उनका कहना है कि जिस तरह से यह फैसला आया है इसमें सीधे तौर पर डाउ केमिकल को ही लाभ पहुंचाया गया है.
फैसले से नाराज पीड़ित: गैस पीड़ित पिछले कई सालों से अपनी मुआवजे की मांग को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे हैं. बावजूद इसके उनके संघर्ष को दरकिनार कर दिया गया है. गैस पीड़ित नौशीन का कहना है कि पिछले कई सालों से वह सड़क से लेकर सदन तक संघर्ष कर चुकी हैं. बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कहीं ना कहीं सिर्फ डाउ केमिकल को ही फायदा पहुंचाने के लिए लिया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला नागवार: गैस पीड़ित शहजादी कहती हैं कि उनका पूरा परिवार गैस पीड़ित हो चुका है और उनके परिवार में आज भी जो नई पीढ़ी आ रही है वह कहीं ना कहीं गैस के दंश से बीमार है. बावजूद इसके उनका इलाज नहीं हो पा रहा है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन्हें नागवार गुजरता है.
Also Read: भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी अन्य खबरें |
सांठगांठ तो नहीं: गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले बालमुकुंद का कहना है कि जब से गैस कांड हुआ है तभी से अभी तक ये संघर्ष कर रहे हैं. सड़क से लेकर दिल्ली तक उन्होंने गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ी है लेकिन लगता है यह पूरा का पूरा मामला सरकार के इशारे पर ही हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट के जज गैस पीड़ित की बात सुनने को तैयार ही नहीं थे ऐसे में लग रहा है कि कहीं ये सांठगांठ तो नहीं है.
फिर सदन और कोर्ट तक लड़ाई: गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली रचना ढींगरा का भी कहना कि इसमें जिस तरह से जजों ने निर्णय लिया है वह कहीं ना कहीं डाउ केमिकल के हित में ही नजर आता है. लगता है कि पूरा का पूरा मामला डाउ केमिकल के कहने पर ही हुआ है. रचना का कहना है कि इस मामले में अब फिर से सड़क से लेकर सदन और कोर्ट तक लड़ाई की जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका खारिज करते हुए कहा कि कहा है कि गैस पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजे की मांग पूरी नहीं होगी. कोर्ट ने कहा कि केंद्र को इस मामले में पहले आना चाहिए था, ना कि तीन दशक बाद. कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक के पास मौजूद 50 करोड़ रुपए का उपयोग लंबित दावों को मुआवजा देने के लिए करे. समझौते को सिर्फ फ्रॉड के आधार पर रद्द किया जा सकता है. वहीं केंद्र सरकार की तरफ से समझौते में फ्रॉड को लेकर कोई दलील नहीं दी गई.