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राजधानी के सरकारी स्कूल की 'हालत गंभीर', क्लारूम में छतरी लगाकर पढ़ाई कर रहे छात्र

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Published : Aug 1, 2019, 7:08 AM IST

कोलार रोड पर स्थित गेंहूखेड़ा के शासकीय स्कूल में बारिश के चलते स्कूल की छत से पानी टपक रहा है. जिससे छात्र स्कूल के भीतर छतरी लगाकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं.

क्लारूम में छतरी लगाकर पढ़ाई कर रहे छात्र


भोपाल। राजधानी के कोलार स्थित गेंहूखेड़ा शासकीय स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों की एक नहीं ब्लकि कईं समस्याएं हैं. स्कूल भवन के जर्जर होने से क्लासरूम में पानी टपक रहा है. इस स्कूल से प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था भी उजागर हुई है. गेंहूखेड़ा शासकीय स्कूल में न तो छात्रों को बैठने के लिए फर्नीचर है और न ही सर छिपाने पक्की छत.

क्लारूम में छतरी लगाकर पढ़ाई कर रहे छात्र

तेज बारिश के चलते हालात ये हैं कि बच्चे बारिश से बचने के लिए स्कूल के अंदर छतरी ले जा रहे हैं. उसी से बचकर छात्र पढ़ाई करने को मजबूर हैं. इतना ही नहीं स्कूल में बुनियादी सुविधाओं का टोटा है.

स्कूल के सामने रोड ऊंची होने के चलते पानी भर जाता है. छात्र उसी पानी में से निकलकर स्कूल पहुंचते हैं. इस दौरान उन्हें गिरने का खतरा भी रहता है. चौंकाने वाली बात है कि प्रदेश की राजधानी से सटे इस स्कूल की तरफ जिम्मेदारों का ध्यान नहीं है तो ग्रामीण अंचल में आने वाले स्कूलों के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है.

स्कूल के हेड मास्टर कई बार शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को स्कूल की समस्याओं के बारे में बता चुके हैं. इसके बावजूद विभाग का स्कूल की तरफ कोई ध्यान नहीं है. क्षेत्रीय विधायक और पार्षदों ने भी स्कूल की सूरत बदले के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं.


भोपाल। राजधानी के कोलार स्थित गेंहूखेड़ा शासकीय स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों की एक नहीं ब्लकि कईं समस्याएं हैं. स्कूल भवन के जर्जर होने से क्लासरूम में पानी टपक रहा है. इस स्कूल से प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था भी उजागर हुई है. गेंहूखेड़ा शासकीय स्कूल में न तो छात्रों को बैठने के लिए फर्नीचर है और न ही सर छिपाने पक्की छत.

क्लारूम में छतरी लगाकर पढ़ाई कर रहे छात्र

तेज बारिश के चलते हालात ये हैं कि बच्चे बारिश से बचने के लिए स्कूल के अंदर छतरी ले जा रहे हैं. उसी से बचकर छात्र पढ़ाई करने को मजबूर हैं. इतना ही नहीं स्कूल में बुनियादी सुविधाओं का टोटा है.

स्कूल के सामने रोड ऊंची होने के चलते पानी भर जाता है. छात्र उसी पानी में से निकलकर स्कूल पहुंचते हैं. इस दौरान उन्हें गिरने का खतरा भी रहता है. चौंकाने वाली बात है कि प्रदेश की राजधानी से सटे इस स्कूल की तरफ जिम्मेदारों का ध्यान नहीं है तो ग्रामीण अंचल में आने वाले स्कूलों के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है.

स्कूल के हेड मास्टर कई बार शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को स्कूल की समस्याओं के बारे में बता चुके हैं. इसके बावजूद विभाग का स्कूल की तरफ कोई ध्यान नहीं है. क्षेत्रीय विधायक और पार्षदों ने भी स्कूल की सूरत बदले के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं.

Intro:राजधानी का यह शासकीय स्कूल जंहा छतरी लेकर पढ़ने को मजबूर छात्र छात्राएंBody:यह नजारा है राजधानी के गेहूं खेड़ा स्थित शासकीय प्राथमिक शाला का जहां बच्चे पानी में पढ़ने को मजबूर है शहर में हो रही बारिश के चलते जब राजधानी के शासकीय स्कूलों का रुख किया तब यह चौकाने वाली तस्वीर सामने आई,

सरकार के तमाम दावे फेल होते दिखाई दे रहे है, एक तरफ सरकार शासकीय स्कूलों को स्मार्ट बनाने की बात कर रही है वहीं दूसरी और बारिश के कारण शासकीय स्कूलों की हालत यह है कि छत से टपक रहे पानी के कारण कक्षाओं में पानी भरा हुआ है और बच्चे फर्श पर पढ़ने को बेबस है लेकिन शासन प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है जिस कारण मासूम बच्चे छतरी लेकर क्लास में बैठने को मजबूर है इतना ही नहीं स्कूल के शिक्षकों को भी क्लास में पढ़ाने के लिए छतरी का सहारा लेना पड़ रहा है

यह तस्वीरें देखकर तो आपको यकीन हो गया होगा कि सरकार शासकीय स्कूलों की व्यवस्था को सुधारने के लिए कितनी संवेदनशील है एक तरफ सरकार सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने और उन्हें निजी स्कूलों से बेहतर बनाने के तमाम दावे कर रही है लेकिन यह नजारा देखकर तो यही लग रहा है कि सरकारी स्कूल भगवान भरोसे ही चल रहे हैं

स्कूल के हेड मास्टर ने बताया कि वह कई सालों से शिक्षा विभाग के तमाम अधिकारियों को स्कूल की समस्याओं से अवगत करा चुके हैं लेकिन विभाग ने इस और आज तक ध्यान नहीं दिया जिस कारण हर साल बारिश में स्कूल परिसर में पानी भारी मात्रा में भर जाता है वह क्षेत्रीय विधायक और पार्षदों ने भी आज तक स्कूल की कोई सुध नहीं ली है

अब आपको बताते हैं कि स्कूल में पढ़ने आ रहे मासूम बच्चे स्कूल की इस दुर्दशा के बारे में क्या कर रहे हैं स्कूली बच्चों का कहना है कि स्कूल में बैठने के लिए उनके लिए टेबल तक नहीं है ऐसे में बारिश के समय गिले में ही बैठना पड़ता है इतना ही नहीं अगर वह घर से छतरी लेकर ना आए तो उनका स्कूल में बैठना भी मुश्किल हो जाता है अब देखना होगा कि शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम करने के बड़े-बड़े सपने दिखाने वाली सरकार राजधानी के शासकीय स्कूलों के सुधार के लिए क्या प्रयास करती है लेकिन अब सवाल यह भी उठता है कि जब प्रदेश की राजधानी के आसपास के स्कूलों के क्या हाल है तो अन्य क्षेत्रों के शासकीय स्कूलों का क्या हाल होगा यह तस्वीर देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है
बाइट डीपी चौहान हेड मास्टर शासकीय प्राथमिक शाला

बाइट शिक्षकConclusion:शसकिये स्कूलो की खुली पोल
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