भोपाल। एम्स भोपाल ने कुल 348 किशोर छात्रों के बीच किए शोध अध्ययन किया. इसमें 4-19 वर्ष की आयु के 65.52% छात्र और 34.48% छात्राएं थीं. अध्ययन के मानक के हिसाब से देखा जाए तो 38.79% विद्यार्थी 10वीं कक्षा में, 33.62% 11वीं कक्षा में और 27.59% विषय 12वीं कक्षा में पढ़ रहे थे. 37.93% विद्यार्थियों में से अधिकांश 3 वर्ष से अधिक समय से इंटरनेट का उपयोग कर रहे थे.अधिकांश छात्रों (44.83%) ने बताया कि वे इंटरनेट का उपयोग ऑनलाइन गेमिंग के लिए करते हैं.
कई किशोर एडिक्ट मिले: समस्याग्रस्त इंटरनेट उपयोग (पीआईयू) के स्तर से देखा गया तो लगभग 5.17% छात्र पूर्ण रूप से इंटरनेट एडिक्ट मिले. 56.03% छात्रों में यह मध्यम स्तर का, जबकि 38.79% में हल्के स्तर का इंटरनेट एडिक्क्शन अनुभव किया गया. इसका तात्पर्य यह है कि लंबे समय तक इंटरनेट का उपयोग बढ़ती दैहिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा हुआ है. ये रिसर्च इंटरनेट उपयोग (पीआईयू) से संबंधित मनोदैहिक समस्याओं पर केंद्रित है. ये बताता है कि अवसाद चिंता, तनाव और दैहिक शिकायतें सीधे समस्याग्रस्त इंटरनेट उपयोग से संबंधित हैं.
शोध में मूल्यांकन 20 सवालों से : इंटरनेट की लत के परीक्षण के लिए समस्याग्रस्त इंटरनेट उपयोग (पीआईयू) का मूल्यांकन 20 प्रश्नों द्वारा किया गया. किशोरों में मनोदैहिक समस्याओं को मापने के लिए अवसाद, चिंता, तनाव स्केल (डीएएसएस-42) और स्व-संरचित प्रश्नावली जांच सूची का उपयोग किया गया. शोध में पाया गया कि आज के समय में वास्तविक चुनौती सोशल साइट्स के उपयोग पर नियंत्रण रखना है. सोशल मीडिया पर किशोर कितना समय व्यतीत कर रहे हैं. किशोर किस प्रकार की गतिविधियां ऑनलाइन कर रहे हैं.
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पैरेंट्स को निभानी होगी जिम्मेदारी : शोध के बाद निष्कर्ष निकाला गया कि माता-पिता को किशोरों को इंटरनेट के उचित उपयोग के बारे में समझाने की जरूरत है. स्क्रीन टाइम को उनके उपयोग को सीमित करना होगा. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का सही उपयोग करने की आवश्यकता है लेकिन दुर्भाग्य से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हमारा उपयोग कर रहे हैं. डोपामाइन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर के रिलीज होने के कारण एक क्लिक पर आभासी इंटरनेट गेमिंग की दुनिया में मिलने के बाद उपयोगकर्ता वास्तविक दुनिया में भी तत्काल संतुष्टि की तलाश करते हैं. यह शोध डॉ.दिगपाल सिंह चुंडावत-सहायक नर्सिंग अधीक्षक (प्रमुख अन्वेषक) और सह-लेखक डॉ.वरुण मल्होत्रा (अतिरिक्त प्रोफेसर-फिजियोलॉजी विभाग) द्वारा किया गया.