भिंड। बीहड़ों और डकैतों के लिए जाने जानेवाले चंबल में आज न तो बीहड़ बचे हैं, ना ही डकैत, लेकिन आज भी उन डकैतों का खौफ यहां के लोगों के जेहन में ताजा है. रिटायर्ड हेड मास्टर रामस्वरूप शर्मा का 1999 में डकैत राजन सिंह गुर्जर और डकैत किरण उर्फ लवली पांडे की गैंग ने अपहरण किया था. 91 साल के रामस्वरूप शर्मा के जेहन में आज भी पूरी घटना ताजा है.
चंबल क्षेत्र में एक दौर था, जब पूरे इलाके में डाकुओं की दहशत हुआ करती थी. लूटपाट अपहरण हत्या जैसी कई वारदातें इन डकैतों के गैंग द्वारा दहशत फैलाने के लिए की जाती थी. अपहरण में तो फिरौती मांगने के लिए बाकायदा डकैत अपने गैंग का लेटर पैड इस्तेमाल करते थे, जिस पर उनकी मुहर भी लगी होती थी. ऐसा ही एक लेटर ईटीवी भारत के हाथ भी लगा है जो शहर में रहने वाले एक बुजुर्ग के पास है.
बता दें कि, रिटायर्ड हेड मास्टर रामस्वरूप शर्मा का 1999 में डकैत राजन सिंह गुर्जर और डकैत किरण उर्फ लवली पांडे की गैंग ने अपहरण किया था. 91 साल के रामस्वरूप शर्मा के जेहन में आज भी पूरी घटना ताजा है. उन्होंने अपने अनुभव और फिरौती के लेटर की कहानी ईटीवी भारत के साथ साझा की है.
किस तरह हुआ था अपरहण
भिंड के महावीर गंज में रह रहे रामस्वरूप शर्मा का कहना है कि, 15 दिसंबर 1999 के दिन वे सुबह टहलने निकले थे, लौटते समय मेले के पास अचानक रजन और लवली पांडे की गैंग ने उन्हें पकड़कर गाड़ी में बैठा लिया, फिर सीधा इटावा के उदी मोड़ होते हुए चकरनगर के बीहड़ों में उस जगह ले गए, जहां गैंग ठहरी हुई थी. फिर उन्हें बताया गया कि, उनका अपहरण किया गया है.
चिट्ठी लिखकर मांगी थी फिरौती
उस जमाने में डकैत फिरौती के लिए लेटर पैड का इस्तेमाल करते थे. हेड मास्टर शर्मा ने बताया कि, एक प्रिंटेड लेटर पैड जिस पर राजन सिंह गुर्जर और दस्यु सुंदरी किरण और फिर लवली पांडे का नाम और पता लिखा हुआ था. उस पर मुझसे चिट्ठी लिखवाई गई, इस चिट्ठी में 6 लाख 51 हजार रुपये की फिरौती मांगी गई. शर्मा ने बताया कि, मैंने लेटर हेड पर लिखे नाम पढ़ लिए थे, तो मुझसे पूछा गया कि पढ़ना जानते हो, तो मैंने कह दिया कि, बिना चश्मे के नहीं पढ़ पाता हूं. वो चिट्ठी डाक के जरिए घर के पते पर भेजी गई थी. आज भी वो चिट्ठी उनके पास संभाल कर रखी हुई है
डाकू कहने लगे थे 'दद्दा'
डकैतों के बीच रहने के दौरान का एक किस्सा साझा करते हुए रामस्वरूप शर्मा ने बताया कि, एक रात सभी डकैत अमर गाथा गा रहे थे और बीच में ही भूल गए, तो मैंने बताया कि, ये ऐसे नहीं ऐसे है, तो सभी कहने लगे कि ये दद्दा तो बहुत जानते हैं. गैंग के सदस्यों की कुछ बेटियां शादी लायक थी, तो गुर्जर समाज के कुछ घर भी मैंने शादी के लिए बताएं, तो उनको लगा कि, यह तो हमारे समाज के बारे में भी जानते हैं. ऊपर से उम्र में भी सबसे बड़े हैं. तो सब लोग मुझे वहां दद्दा कहने लगे. बड़े प्रेम भाव के साथ 15 दिन अपने साथ रखा.
कम की फिरौती की रकम
15 दिन रहने के दौरान, उनमें से कुछ गैंग के मेंबर हेड मास्टर के चेले बन गए थे. जो उनसे सीख लेते थे और पढ़ते थे, जब बात फिरौती की आई तो आचरण को देखते हुए 6 लाख 51 हजार से बात सीधे 2 लाख पर आ गई. वहीं दो चेले बने डाकुओं ने भी 5 हजार रुपये कम कर दिए. 1 लाख 90 हजार रुपए की फिरौती लेकर डकैतों ने उस वक्त उन्हें छोड़ा था.
तीन बार डकैतों ने किया अपहरण
हेड मास्टर रामस्वरूप शर्मा के घर से डकैतों ने उनसे पहले दो बार उनके भाई का भी अपहरण किया था. हेड मास्टर शर्मा के मुताबिक साल 1960 में एक डाकू ने उनके छोटे भाई का अपहरण किया था. फिर दोबारा 1980 में डाकू मोहर सिंह ने उनके भाई का अपहरण किया था. इसके बाद तीसरी बार 1999 में खुद रामस्वरूप शर्मा को अपहरण कर लिया गया था.