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कुम्हारों के चेहरे पर छाई मायूसी, नहीं निकल रही दीए बनाने की भी लागत

दीए बनाने वाले कुम्हारों की आर्थिक हालत दयनीय है. बाजार में चाइनीज दीयों और दूसरे सजावटी सामानों की बढ़ती मांग और लोगों की मिट्टी और उससे बने सामानों में घटती रुचि के कारण कुम्हारों की दीए बनाने की लागत भी नहीं निकल पा रही है.

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Published : Oct 22, 2019, 8:42 AM IST

Updated : Oct 22, 2019, 12:02 PM IST

नही निकल पा रही लागत

भिंड।दुर्गा पूजा खत्म होने के साथ ही अब भिंड के बाजार में दिवाली की रौनक बढ़ने लगी है. रोशनी के त्योहार में लोग अपने घरों को जगमगाने के लिए सदियों से मिट्टी के दीपक का इस्तेमाल करते रहे हैं. वहीं इसका धार्मिक महत्व भी है. हालांकि वर्तमान समय में अब मिट्टी के दीए की मांग घट गई है और इसकी जगह चायनीज आइटम्स ने ले ली है. ऐसे में समाज का वह वर्ग जो हमेशा से दूसरों के घरों को रोशन करता आया है, उस कुम्हार के घर में ही अब अंधेरा छाने लगा है. त्योहार में कुम्हारों का उत्साह बढ़ने के बजाय खत्म हो गया है.

नही निकल पा रही लागत

जिले में ज्यादातर कुम्हारों की आर्थिक स्थिति खराब है. शहर में मिट्टी को आकार देकर दीए बनाने वाले कुम्हारों का परिवार आज भी कड़ी धूप में मिट्टी के दीए बनाने में जुटा है. उन्हें पता है कि मिट्टी के बढ़े दाम और दीए की मांग घटने से उन्हें मेहनत के अनुपात में उचित मुनाफा नहीं मिलेगा. फिर भी उन्हें आस है की पुरानी परंपरा और मान्यताओं को निभाने के लिए ही सही लोग कुछ दीए तो खरीदेंगे ही.

कुम्हारों का कहना है कि वह मिट्टी के बर्तन, दीपक जैसे सामान बनाते हैं, लेकिन मिट्टी और अन्य चीजों की मदद से तैयार दीपक की उन्हें लागत भी नहीं मिल पाती. उन्होंने कहा कि उनका गुजर-बसर भी मुश्किल हो रहा है. उन्होंने कहा कि अब माहौल पहले जैसा नहीं रहा. लोग चाइना लाइट और प्लास्टिक के बर्तन उपयोग करने लगे हैं. ये दीए बनाने वाले अब हताश हो गए हैं.

भिंड।दुर्गा पूजा खत्म होने के साथ ही अब भिंड के बाजार में दिवाली की रौनक बढ़ने लगी है. रोशनी के त्योहार में लोग अपने घरों को जगमगाने के लिए सदियों से मिट्टी के दीपक का इस्तेमाल करते रहे हैं. वहीं इसका धार्मिक महत्व भी है. हालांकि वर्तमान समय में अब मिट्टी के दीए की मांग घट गई है और इसकी जगह चायनीज आइटम्स ने ले ली है. ऐसे में समाज का वह वर्ग जो हमेशा से दूसरों के घरों को रोशन करता आया है, उस कुम्हार के घर में ही अब अंधेरा छाने लगा है. त्योहार में कुम्हारों का उत्साह बढ़ने के बजाय खत्म हो गया है.

नही निकल पा रही लागत

जिले में ज्यादातर कुम्हारों की आर्थिक स्थिति खराब है. शहर में मिट्टी को आकार देकर दीए बनाने वाले कुम्हारों का परिवार आज भी कड़ी धूप में मिट्टी के दीए बनाने में जुटा है. उन्हें पता है कि मिट्टी के बढ़े दाम और दीए की मांग घटने से उन्हें मेहनत के अनुपात में उचित मुनाफा नहीं मिलेगा. फिर भी उन्हें आस है की पुरानी परंपरा और मान्यताओं को निभाने के लिए ही सही लोग कुछ दीए तो खरीदेंगे ही.

कुम्हारों का कहना है कि वह मिट्टी के बर्तन, दीपक जैसे सामान बनाते हैं, लेकिन मिट्टी और अन्य चीजों की मदद से तैयार दीपक की उन्हें लागत भी नहीं मिल पाती. उन्होंने कहा कि उनका गुजर-बसर भी मुश्किल हो रहा है. उन्होंने कहा कि अब माहौल पहले जैसा नहीं रहा. लोग चाइना लाइट और प्लास्टिक के बर्तन उपयोग करने लगे हैं. ये दीए बनाने वाले अब हताश हो गए हैं.

Intro:(नोट- यह दीवाली असाइनमेंट स्टोरी है इसका पूरा रॉ विजुअल और बाइट उपलब्ध करा दिए हैं।)


दुर्गा पूजा खत्म होने के साथ ही अब भिंड के बाजार में दिवाली की रौनक बढ़ने लगी है दिवाली का त्यौहार रोशनी के लिए जाना जाता है और रोशनी बिखेरने के लिए सदियों से मिट्टी के दीपक का इस्तेमाल किया जाता रहा है हालांकि समय के साथ बदलते परिवेश में अब मिट्टी के दीयों की मांग घट गई है शहरों से लेकर गांव तक में भी बिजली की बढ़ती उपलब्धता की वजह से लोग अब कम कीमत की चाइनीज बल्ब जलाने लगे हैं या कम पैसों में उपलब्ध मोमबत्तियां पर निर्भर होने लगे हैं खासकर बल्ब जलाने के पीछे एक बड़ा कारण घी और तेल का काफी महंगा होना भी है ऐसे में समाज का वह वर्ग जो हमेशा से दूसरों के घरों को रोशन करता आया उस कुम्हार के घर में ही अब अंधेरा छाने लगा है त्योहार में कुम्हारों का उत्साह बढ़ने के बजाय खत्म हो गया है मगर कोई दूसरा रोजगार न मिलने के कारण उन्हें मजबूरन अपने परंपरागत कारोबार से ही जुड़े रहना पड़ रहा है


Body:भिंड जिले में ज्यादातर कुम्हारों की स्थिति दयनीय है शहर में मिट्टी को आकार दे कर दिए बनाने वाले कुम्हार मोहन प्रजापति का परिवार आज कड़ी धूप में भी मिट्टी के दीए बनाने में जुटा है उन्हें पता है कि मिट्टी के बढ़े दाम और बीए की मांग घटने से उन्हें मेहनत के अनुपात में उचित मुनाफा नहीं मिलेगा मगर फिर भी आस है की पुरानी परंपरा और मान्यताओं को निभाने के लिए ही सही लोग कुछ दीये की तो खरीददारी तो करेंगे ही।

मोहन की तरह ही चुन्नी लाल प्रजापति भी कहते हैं कि वह मिट्टी के बर्तन दीपक जैसे सामान बनाते हैं लेकिन मिट्टी के दाम और अन्य चीजों की मदद से तैयार दीपक की लागत भी नहीं मिलती अब किसी तरह गुजर-बसर कर रहे हैं अब पहले जैसा नहीं रहा लोग चाइना लाइट और प्लास्टिक के बर्तन उपयोग करने लगे हैं ऐसे में मिट्टी के बर्तन कौन पूछता है अब तो हम फुटपाथ पर ही हैं

इन कुम्हारों की व्यथा उस बाजारी हकीकत का एक हिस्सा है जहां लोग बाजार में बिकने के लिए रखे दीपक ओं को सिर्फ देख कर आगे बढ़ जाते हैं दीयों के व्यापारी भी अब हताश हैं क्योंकि बाजार में बेचने के लिए दीपक खरीद तो लिए लेकिन कई दिन बोहनी भी नहीं हो पाती ऐसे में अपनी लागत तक नहीं निकाल पा रहे हैं और इसके लिए वे चाइना लाइट और बढ़ती महंगाई को दोषी मानते हैं।



Conclusion:अमावस्या के दिन दीपावली पर अंधकार दूर करने के लिए घरों में जलाए जाने वाले मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों के जीवन की रोशनी धीमी पड़ चुकी है उनके चेहरे की चमक गायब हो चुकी है तमाम तरह की दिक्कतें झेलने के बाद भी अपने बलबूते हजारों दीये बनाकर ये कुंभकार जैसे तैसे अपना जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि जल्द इन कुम्हारों के हालात न बदले तो आने वाले समय में कुंभकारी कला कहीं विलुप्त ही ना हो जाए।

बाइट- मोहन प्रजापति, कुम्हार
बाइट- चुन्नीलाल प्रजापति, कुम्हार
बाइट- मनीष प्रजापति, व्यापारी

भिंड से ईटीवी भारत, मध्यप्रदेश।
Last Updated : Oct 22, 2019, 12:02 PM IST
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