नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को असम सरकार और केंद्र सरकार की विदेशी घोषित लोगों को निर्वासित करने में देरी के लिए कड़ी आलोचना की. साथ ही सवाल किया कि उन्हें अनिश्चित काल तक हिरासत केंद्रों में रखने से क्या उद्देश्य पूरा होता है.
यह मामला न्यायमूर्ति ए एस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया जिसमें न्यायमूर्ति उज्जल भुयान शामिल थे. सुनवाई के दौरान पीठ ने चुटकी लेते हुए पूछा कि क्या असम सरकार विदेशियों को निर्वासित करने के लिए किसी शुभ समय का इंतजार कर रही है. पीठ ने कहा, 'पता न होने पर भी आप उन्हें निर्वासित कर सकते हैं.
आप उन्हें अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रख सकते.' पीठ ने कहा कि एक बार जब उन लोगों को विदेशी के रूप में हिरासत में ले लिया गया तो उन्हें तुरंत निर्वासित कर दिया जाना चाहिए था. पीठ ने कहा कि सरकार उनकी नागरिकता की स्थिति जानती है. साथ ही पूछा, 'आप उनका पता मिलने तक कैसे इंतजार कर सकते हैं?' पीठ ने जोर देकर कहा कि यह इस देश के लिए नहीं है, बल्कि दूसरे देश को तय करना है कि उन्हें कहां जाना चाहिए.
असम सरकार के वकील ने दलील दी कि पता न होने की स्थिति में इन लोगों को कहां भेजा जाए. पीठ ने कहा कि मान लीजिए कि व्यक्ति पाकिस्तान से है, तो सरकार को उस देश की राजधानी पता है.
पीठ ने पूछा, 'आप उन्हें यहां कैसे हिरासत में रख सकते हैं, यह कहते हुए कि उनका विदेशी पता ज्ञात नहीं है?'. सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पीठ के समक्ष उपस्थित हुए. मेहता ने पीठ को आश्वासन दिया कि अदालत के समक्ष सही स्थिति लाने का प्रयास किया जाएगा और वह केंद्रीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के साथ इस पर चर्चा करेंगे और समाधान निकालेंगे.
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि लोगों को अनिश्चित काल तक हिरासत केंद्रों में नहीं रखा जा सकता और हिरासत शिविरों में अनिश्चित काल तक नजरबंद रखना बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यदि राज्य सरकार को पता चलता है कि राष्ट्रीयता स्थिति सत्यापन फॉर्म दो महीने से अधिक समय पहले भेजे गए हैं तो राज्य विदेश मंत्रालय को एक अनुस्मारक जारी करेगा और उसके बाद मंत्रालय द्वारा प्रभावी कार्रवाई की जानी चाहिए.
पीठ ने कहा, 'हम असम सरकार को निर्देश देते हैं कि वह आज से दो सप्ताह के भीतर 63 व्यक्तियों (जिनके नाम अदालत में प्रस्तुत किए गए हैं) को निर्वासित करने की प्रक्रिया शुरू करे.' पीठ ने कहा कि विदेशियों की दो श्रेणियां हैं. एक श्रेणी वह है जहां व्यक्तियों को भारतीय नागरिक नहीं घोषित किया गया है लेकिन उनकी राष्ट्रीयता ज्ञात है. और दूसरी श्रेणी वह है जहां न्यायाधिकरण ने घोषित किया है कि व्यक्ति भारतीय नागरिक नहीं हैं और उनकी राष्ट्रीयता ज्ञात नहीं है.
जहां तक पहली श्रेणी का सवाल है, उनके निर्वासन में कोई कठिनाई नहीं है. दूसरी श्रेणी के मामले में केंद्र को अदालत को बताना होगा कि उनके मामलों को किस तरह से निपटाया जाना चाहिए. हम इस मुद्दे से निपटने के लिए हलफनामा दायर करने के लिए भारत सरकार को एक महीने का समय देते हैं.
न्यायमूर्ति ओका ने कहा ने कहा, 'भारत सरकार उन घोषित व्यक्तियों का विवरण भी रिकॉर्ड में रखेगा जो भारतीय नागरिक नहीं हैं. उन व्यक्तियों का विवरण भी जिन्हें अब तक निर्वासित किया गया है. निर्वासन के तरीके के बारे में भी विवरण दिया जाना चाहिए और आंकड़ों का भी खुलासा किया जाना चाहिए.' पीठ ने असम सरकार को दो सप्ताह के भीतर एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया.
पीठ ने सरकार से यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि हिरासत केंद्रों में बंद लोगों को उचित सुविधाएं दी जाएं. इसके अलावा असम को हर 15 दिन में राज्य में हिरासत केंद्रों का दौरा करने के लिए अधिकारियों की एक समिति गठित करने का निर्देश दिया. पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 25 फरवरी को तय की है.