भिंड। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत सरकार गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लाभार्थियों को एलपीजी का कनेक्शन बांटती है. इस योजना का लाभ केवल महिलाएं उठा सकती हैं. इसका उद्देश्य महिलाओं को धुएं से होने वाली घातक बीमारियों से बचाना है, लेकिन भिंड जिले में इसी उज्ज्वला योजना के हितग्राही लगातार बढ़ रही गैस की कीमतों से परेशान हैं. नतीजा अब ये है कि सिलेंडर कबाड़ में बिक रहे हैं. पूर्व सीएम कमलनाथ ने इस संबंध में ट्विटर पर एक पोस्ट भी डाली है.
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मध्यप्रदेश के भिंड में इस तरह कबाड़ में बिक रहे है मोदी सरकार की सबसे ज़्यादा प्रचार-प्रसार वाली वाली उज्ज्वला योजना के गैस सिलेंडर और चूल्हे भूसे के ढेर में पड़े है।
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यह स्थिति उस प्रदेश की है जहाँ के जबलपुर में देश के गृहमंत्री ने उज्जवला योजना के दूसरे चरण की शुरुआत की थी। pic.twitter.com/Fn7szpjHd9
">मध्यप्रदेश के भिंड में इस तरह कबाड़ में बिक रहे है मोदी सरकार की सबसे ज़्यादा प्रचार-प्रसार वाली वाली उज्ज्वला योजना के गैस सिलेंडर और चूल्हे भूसे के ढेर में पड़े है।
— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) October 23, 2021
यह स्थिति उस प्रदेश की है जहाँ के जबलपुर में देश के गृहमंत्री ने उज्जवला योजना के दूसरे चरण की शुरुआत की थी। pic.twitter.com/Fn7szpjHd9मध्यप्रदेश के भिंड में इस तरह कबाड़ में बिक रहे है मोदी सरकार की सबसे ज़्यादा प्रचार-प्रसार वाली वाली उज्ज्वला योजना के गैस सिलेंडर और चूल्हे भूसे के ढेर में पड़े है।
— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) October 23, 2021
यह स्थिति उस प्रदेश की है जहाँ के जबलपुर में देश के गृहमंत्री ने उज्जवला योजना के दूसरे चरण की शुरुआत की थी। pic.twitter.com/Fn7szpjHd9
कबाड़ में दिखे उज्ज्वला के सिलेंडर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना उज्जवला योजना कबाड़ बनती जा रही है. इसकी ताजा तस्वीरें भिंड के एक कबाड़ी की दुकान पर देखने को मिली हैं. इन तस्वीरों में एक या दो नहीं दर्जनों सिलेंडर कबाड़ में पड़े हुए हैं. कई तो कटे हुए दिखाई दे रहे हैं. इन तस्वीरों ने भारत सरकार की मंशा और दावों की पोल खोल कर रख दी है.
रीफिल की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हितग्राही
यह कहना गलत नहीं होगा कि जिले में उज्ज्वला गैस के सिलेंडर महज शोपीस बनकर रह गए हैं. गैस के दाम बढ़ने से 50 प्रतिशत हितग्राही ही गैस रीफिल कराने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं. जिले में उज्ज्वला योजना के तहत 2 लाख 76 हजार गैस कनेक्शन लाभार्थियों को दिए गए हैं, लेकिन वह एक बार ले जाने के बाद दोबारा रीफिलिंग की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. कई गरीबों ने चूल्हे तो घर के भूसे में दबा कर रख दिए गए हैं.
लगातार बढ़ रहे गैस के दाम बनी वजह
लगातार बढ़ते गैस के दामों की वजह से एक बार फिर गरीब तबके के लोग गोबर के कंडे और लकड़ी जलाकर चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर हैं. उज्ज्वला योजना की पड़ताल में सामने आया कि जरूरतमंदों को मुफ्त में मिले गैस-चूल्हे और सिलेंडर अब घर पर महज शोपीस बनकर रह गए हैं. जिलेभर में लगभग दो लाख परिवारों को इस योजना का लाभ दिया गया है, लेकिन खुद एजेंसी संचालकों का मानना है कि सिलेंडर के दाम 925 से 1050 रुपए के आसपास पहुंचने से सालभर में 50 फीसदी लाभार्थी ही सिलेंडर भरवा रहे हैं.
सिलेंडर नहीं भरवा पा रहे 50 फीसदी हितग्राही
जिले में 2 लाख 76 हजार लोगों के पास गैस कनेक्शन हैं. जिसमें करीब 1.5 लाख कनेक्शन उज्ज्वला के तहत मिले हैं. प्रशासन का कहना है कि लगभग 77% लाभार्थियों को वो गैस दे चुके हैं, बाकी के लिये सर्वे जारी है. रसोई गैस एजेंसी संचालकों का कहना है कि उज्ज्वला योजना के तहत करीब 1.5 लाख रसोई गैस कनेक्शन धारकों में से 50 फीसदी ही गैस दोबारा भरवा रहे हैं.
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‘उपभोग करेंगे तो भरवाना तो पड़ेगा सिलेंडर’
इस पूरे मामले में जब ज़िले के ज़िम्मेदार अधिकारियों से बात की गयी तो जहां भिंड के खाद्य आपूर्ति अधिकारी अब भी कह रहे हैं की ज़िले में 30 फ़ीसदी गैस कनेक्शन प्रधानमंत्री योजना के तहत अभी दिए जाने बाक़ी है. उनका कहना था कि सरकार इस बार उज्जवला योजना 2.0 मैं गैस चूल्हा सिलेंडर के साथ रीफिल भी मुफ़्त मुहैया करा रही है लेकिन अगर लोगों को गैस का इस्तेमाल करना है तो आगे सिलेंडर ख़ुद रीफ़िल करवाना ही पड़ेगा. वहीं उन्होंने कबाड़ वाले सिलेंडरों को लेकर कहा है कि इस मामले पर जांच कराएंगे.
प्रशासन ने भी माना सिलेंडर उज्ज्वला योजना के
मामले पर अपर कलेक्टर प्रवीण फ़ुलपगारे का कहना है कि प्रशासन अपने स्तर पर मामले की जांच कराएगा. तथ्य सामने आने के बाज कार्रवाई की जाएगी. साथ ही वह यह भी मान रहे हैं कि यह सिलेंडर उज्जवला योजना के तहत दिए गए हैं. ऐसे में इन्हें कबाड़ मैं देना ग़लत है, क्योंकि यह सरकारी सम्पत्ति है इसको नष्ट करने का भी प्रावधान सरकार के नियमों के अनुसार होता है.