बैतूल। प्रदेश की लुप्त होती हस्तशिल्प कला को जीवित रखने के लिए वाघमारे परिवार जी-जान से जुटा है, जो पीतल और वेल मेटल से आदिवासी कल्चर से जुड़ी कलाकृतियां बनाता है. इनकी हस्तशिल्प कला देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रही है. इनकी मेहनत के चलते अब उनके गांव को भारत सरकार ने क्राफ्ट विलेज के तमगे से नवाजा है और गांव को क्राफ्ट विलेज घोषित कर दिया है.
पीतल को पिघलाकर बनाते हैं कलाकृतियां
टिगरिया गांव निवासी वाघमारे परिवार कई पीढ़ियों से आदिवासी कलाकृतियां बनाता आ रहा है, जो आज भी कायम है. बलदेव वाघमारे का कहना है कि पीतल को पिघलाकर पहले उनके परिवार के लोग घुंघरू, बैलों की घंटी, बर्तन, आदिवासी महिलाओं की ज्वैलरी बनाते थे, लेकिन उनका चलन अब कम हो चुका है. बदलते समय के साथ मध्यप्रदेश के कुछ विभागों से मिले सुझावों के बाद अब घर में रखने वाले सजावटी समान बनाने लगे हैं.
महिलाओं को दे रहे ट्रेनिंग
वाघमारे बताते हैं कि लोगों के लिए भी रोजगार का अच्छा माध्यम है. अभी वे 10 से 15 महिलाओं को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं. जिससे उन्हें रोजगार मिल सके और उन्हें भी सहयोग मिले. इन कलाकृतियों को बनाने वाले इस परिवार को हाल ही में 18 लाख रुपये का ऑर्डर मिला है. जिससे वे ही नहीं कई और लोग भी रोजगार पाकर अपना गुजर-बसर कर सकते हैं. प्रशिक्षण ले रही महिलाओं का कहना है कि इन कलाकृतियों को बनाने से उन्हें रोजगार मिल रहा है. पहले वे सिलाई का काम करती थीं. जिसमें कम कमाई होती थी, लेकिन आज वे दिन में 300 से 500 रुपए तक कमा रही हैं, जिसके चलते उनकी घर गृहस्थी बढ़ियां चल रही है.
प्राचीन काल में होता था कलाकृतियों का निर्माण
प्राचीन काल में राजा महाराजाओं के दरबार से लेकर शयन कक्ष में सजने वाली कलाकृतियों को परिवार आज भी आकार दे रहा है. इन कलाकृतियों की देश के बाहर विदेशों में भी बड़ी मांग है. ये परिवार हाथी, घोड़ा, हिरण, मोर चिमनी और लालटेन जैसे उत्पाद बनाते हैं.