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प्राचीन हस्तशिल्प को इस परिवार ने दिलाई पहचान, गांव को सरकार ने घोषित किया क्राफ्ट विलेज - betul news

वाघमारे परिवार आदिवासी कल्चर से जुड़ी कलाकृतियां बनाता है और अब वो इस हस्तशिल्प कला को जी-जान से बचाने में जुटा है. जिसके लिए परिवार महिलाओं को ट्रेनिंग भी देता है. जिससे महिलाओं को भी रोजगार के अवसर मिले.

हस्तशिल्प कलाकृति
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Published : Jun 4, 2019, 9:02 PM IST

बैतूल। प्रदेश की लुप्त होती हस्तशिल्प कला को जीवित रखने के लिए वाघमारे परिवार जी-जान से जुटा है, जो पीतल और वेल मेटल से आदिवासी कल्चर से जुड़ी कलाकृतियां बनाता है. इनकी हस्तशिल्प कला देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रही है. इनकी मेहनत के चलते अब उनके गांव को भारत सरकार ने क्राफ्ट विलेज के तमगे से नवाजा है और गांव को क्राफ्ट विलेज घोषित कर दिया है.

हस्तशिल्प कलाकृति

पीतल को पिघलाकर बनाते हैं कलाकृतियां

टिगरिया गांव निवासी वाघमारे परिवार कई पीढ़ियों से आदिवासी कलाकृतियां बनाता आ रहा है, जो आज भी कायम है. बलदेव वाघमारे का कहना है कि पीतल को पिघलाकर पहले उनके परिवार के लोग घुंघरू, बैलों की घंटी, बर्तन, आदिवासी महिलाओं की ज्वैलरी बनाते थे, लेकिन उनका चलन अब कम हो चुका है. बदलते समय के साथ मध्यप्रदेश के कुछ विभागों से मिले सुझावों के बाद अब घर में रखने वाले सजावटी समान बनाने लगे हैं.

महिलाओं को दे रहे ट्रेनिंग

वाघमारे बताते हैं कि लोगों के लिए भी रोजगार का अच्छा माध्यम है. अभी वे 10 से 15 महिलाओं को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं. जिससे उन्हें रोजगार मिल सके और उन्हें भी सहयोग मिले. इन कलाकृतियों को बनाने वाले इस परिवार को हाल ही में 18 लाख रुपये का ऑर्डर मिला है. जिससे वे ही नहीं कई और लोग भी रोजगार पाकर अपना गुजर-बसर कर सकते हैं. प्रशिक्षण ले रही महिलाओं का कहना है कि इन कलाकृतियों को बनाने से उन्हें रोजगार मिल रहा है. पहले वे सिलाई का काम करती थीं. जिसमें कम कमाई होती थी, लेकिन आज वे दिन में 300 से 500 रुपए तक कमा रही हैं, जिसके चलते उनकी घर गृहस्थी बढ़ियां चल रही है.

प्राचीन काल में होता था कलाकृतियों का निर्माण

प्राचीन काल में राजा महाराजाओं के दरबार से लेकर शयन कक्ष में सजने वाली कलाकृतियों को परिवार आज भी आकार दे रहा है. इन कलाकृतियों की देश के बाहर विदेशों में भी बड़ी मांग है. ये परिवार हाथी, घोड़ा, हिरण, मोर चिमनी और लालटेन जैसे उत्पाद बनाते हैं.

बैतूल। प्रदेश की लुप्त होती हस्तशिल्प कला को जीवित रखने के लिए वाघमारे परिवार जी-जान से जुटा है, जो पीतल और वेल मेटल से आदिवासी कल्चर से जुड़ी कलाकृतियां बनाता है. इनकी हस्तशिल्प कला देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रही है. इनकी मेहनत के चलते अब उनके गांव को भारत सरकार ने क्राफ्ट विलेज के तमगे से नवाजा है और गांव को क्राफ्ट विलेज घोषित कर दिया है.

हस्तशिल्प कलाकृति

पीतल को पिघलाकर बनाते हैं कलाकृतियां

टिगरिया गांव निवासी वाघमारे परिवार कई पीढ़ियों से आदिवासी कलाकृतियां बनाता आ रहा है, जो आज भी कायम है. बलदेव वाघमारे का कहना है कि पीतल को पिघलाकर पहले उनके परिवार के लोग घुंघरू, बैलों की घंटी, बर्तन, आदिवासी महिलाओं की ज्वैलरी बनाते थे, लेकिन उनका चलन अब कम हो चुका है. बदलते समय के साथ मध्यप्रदेश के कुछ विभागों से मिले सुझावों के बाद अब घर में रखने वाले सजावटी समान बनाने लगे हैं.

महिलाओं को दे रहे ट्रेनिंग

वाघमारे बताते हैं कि लोगों के लिए भी रोजगार का अच्छा माध्यम है. अभी वे 10 से 15 महिलाओं को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं. जिससे उन्हें रोजगार मिल सके और उन्हें भी सहयोग मिले. इन कलाकृतियों को बनाने वाले इस परिवार को हाल ही में 18 लाख रुपये का ऑर्डर मिला है. जिससे वे ही नहीं कई और लोग भी रोजगार पाकर अपना गुजर-बसर कर सकते हैं. प्रशिक्षण ले रही महिलाओं का कहना है कि इन कलाकृतियों को बनाने से उन्हें रोजगार मिल रहा है. पहले वे सिलाई का काम करती थीं. जिसमें कम कमाई होती थी, लेकिन आज वे दिन में 300 से 500 रुपए तक कमा रही हैं, जिसके चलते उनकी घर गृहस्थी बढ़ियां चल रही है.

प्राचीन काल में होता था कलाकृतियों का निर्माण

प्राचीन काल में राजा महाराजाओं के दरबार से लेकर शयन कक्ष में सजने वाली कलाकृतियों को परिवार आज भी आकार दे रहा है. इन कलाकृतियों की देश के बाहर विदेशों में भी बड़ी मांग है. ये परिवार हाथी, घोड़ा, हिरण, मोर चिमनी और लालटेन जैसे उत्पाद बनाते हैं.

Intro:बैतूल ।।

लुप्त हो रही हस्तशिल्प कला को जीवित रखने में बैतूल जिले का एक परिवार जुटा हुआ है । इनकी हस्तशिल्प कला देश ही नही बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रही है । बड़ी से बड़ी सख्सशियत भी इन कलाकृतियों की कायल है । पीतल और बेल मेटल से यह परिवार आदिवासी कल्चर से जुड़ी कलाकृतिया बनाता है । इनकी इस मेहनत के चलते अब उनके गांव को भारत सरकार क्राफ्ट विलेज के तमगे से नवाजा है और उनके गांव को क्राफ्ट विलेज घोषित कर दिया है ।


Body:जिले के टिगरिया गांव में रहने वाला वाघमारे परिवार पीढियो से आदिवासी कलाकृतिया बनाता आ रहा है जो आज भी कायम है । प्राचीन काल मे राजा महाराजो के दरबार से लेकर शयन कक्ष में सजने वाली कलाकृतियो को यह परिवार आज भी बनाने में जुटा हुए है । इन कलाकृतियों को बनाने वाले बलदेव वाघमारे ने बताया कि पीतल को पिघलाकर पहले उनका परिवार घुंगरू, बैलो की घंटी, बर्तन, आदिवासी महिलाओं की जेवेलरी बनाते थे लेकिन उनका चलन अब कम हो चुका है । बदलते समय के साथ मध्यप्रदेश के कुछ विभागों से मिले सुझावों से अब घर मे रखने वाले सजावटी समान बनाने लगे है ।


उन्होंने बताया कि पीतल और बेल मेटल से उन्हें जिस प्रकार की भी डिजाइन मिलती है वे वो बना लेते है अब वे हाथी, घोड़ा, हिरण, मोर चिमनी और लालटेन जैसे आइटम बनाते है । उनके द्वारा बनाए गए सामानों की देश ही नही बल्कि विदेशों में भी भारी मांग है । श्री वाघमारे बताते है कि लोगो के लिए भी रोजगार का अच्छा माध्यम है अभी वे 10 से 15 महिलाओं को ट्रेनिंग भी दे रहे है जिससे उन्हें रोजगार मिल सके और उन्हें भी सहयोग मिले । इन कलाकृतियों को बनाने वाले इस परिवार को हाल ही में 18 लाख रुपये का आर्डर मिला है जिससे वे ही नही कई और लोग भी राजगार पाकर अपना गुजर बसर कर सकते है ।

इन कलाकृतियों को बनाना सीख रही कुछ महिलाओं का कहना है कि इन कलाकृतियों को बनाने उन्हें रोजगार मिल रहा है । पहले वे सिलाई का काम किया करती थी जिसमे कम कमाई होती थी लेकिन आज वे दिन में 300 से 500 रुपए तक कमा रही है जिसके कारण उनकी घर गृहस्ती बढ़िया चल रही है ।


Conclusion:टिगरिया गांव आज जिले में क्राफ्ट विलेज के नाम से मशहूर हो चुका है लेकिन बदनसबी ही है कि जिले के लोगो को इस गांव और इस परिवार की जानकारी ही नही है ।

बाइट -- सरोज ( काम सीखने वाली महिला ) सूट पहने हुए
बाइट -- अनिता ( काम सीखने वाली महिला ) पीली साड़ी पहने हुए
बाइट -- बलदेव वाघमारे ( अध्यक्ष, क्राफ्ट विलेज )
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