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सदियों का इतिहास बता रही बैतूल स्टेशन पर लगी ये घंटी, बनी आकर्षण का केंद्र - etv भारत

बैतूल रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर लगी एक घंटी आजकल लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. जिसके जरिए ब्रिटिश काल में ट्रेनों के आने की सूचना दी जाती थी.

सदियों का इतिहास बता रही बैतूल स्टेशन पर लगी ये घंटी
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Published : Sep 7, 2019, 1:53 PM IST

बैतूल। रोजाना करोड़ों यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाली भारतीय रेल के आधुनिकीकरण से तो सभी वाकिफ हैं, लेकिन रेलवे के इतिहास से भी वाकिफ होना जरूरी है. इसकी बानगी बैतूल रेलवे स्टेशन पर देखने को मिल रही है. जहां ब्रिटिश काल में ट्रेन आने की सूचना देने के लिए जो घंटी उपयोग में लाई जाती थी, 107 साल बाद भी यहां देखने को मिल रही है. वहीं इस घंटी का इतिहास जानने के लिए लोग उत्सुक हैं तो रेलवे कर्मचारी भी इस बारे में लोगों को बताने में फक्र महसूस कर रहे हैं.

सदियों का इतिहास बता रही बैतूल स्टेशन पर लगी ये घंटी

लकड़ी से बने शानदार नक्काशी वाले आकर्षक फ्रेम के बीच पीतल और कांसे से बनी घंटी लटक रही है. सन 1912 में ट्रेनों के आने और जाने की जानकारी यात्रियों को इसी घंटी के जरिए दी जाती थी. लगभग 50 सालों तक ये घंटी बैतूल रेलवे स्टेशन पर सूचना देने के उपयोग में लाई गई. उप ट्रैक पर आने वाली ट्रेनों के लिए चार घंटी, जबकि डाउन ट्रैक पर आने वाली ट्रेनों के लिए तीन बार घंटी बजाई जाती थी.

जैसे ही रेलवे का आधुनिकीकरण शुरू हुआ तो इस घंटी को भी एक रूम में रख दिया गया, लेकिन स्टेशन प्रबंधक वीके पालीवाल के प्रयासों से इस इतिहास को जानने का आम लोगों को मौका मिल रहा है क्योंकि अब इस घंटी को बैतूल स्टेशन के एक नंबर प्लेटफॉर्म पर लगा दिया गया है, ताकि लोग इसके बारे में जान सकें.

दरअसल, बैतूल रेलवे स्टेशन को ब्रिटिश हुकूमत के समय ग्रेट इंडियन पेनीसुला के नाम से जाना जाता था, जबकि आजादी के बाद इसका नाम सेंट्रल रेलवे में परिवर्तित कर दिया गया. बैतूल स्टेशन इस समय नागपुर मंडल के तहत आता है.

बैतूल। रोजाना करोड़ों यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाली भारतीय रेल के आधुनिकीकरण से तो सभी वाकिफ हैं, लेकिन रेलवे के इतिहास से भी वाकिफ होना जरूरी है. इसकी बानगी बैतूल रेलवे स्टेशन पर देखने को मिल रही है. जहां ब्रिटिश काल में ट्रेन आने की सूचना देने के लिए जो घंटी उपयोग में लाई जाती थी, 107 साल बाद भी यहां देखने को मिल रही है. वहीं इस घंटी का इतिहास जानने के लिए लोग उत्सुक हैं तो रेलवे कर्मचारी भी इस बारे में लोगों को बताने में फक्र महसूस कर रहे हैं.

सदियों का इतिहास बता रही बैतूल स्टेशन पर लगी ये घंटी

लकड़ी से बने शानदार नक्काशी वाले आकर्षक फ्रेम के बीच पीतल और कांसे से बनी घंटी लटक रही है. सन 1912 में ट्रेनों के आने और जाने की जानकारी यात्रियों को इसी घंटी के जरिए दी जाती थी. लगभग 50 सालों तक ये घंटी बैतूल रेलवे स्टेशन पर सूचना देने के उपयोग में लाई गई. उप ट्रैक पर आने वाली ट्रेनों के लिए चार घंटी, जबकि डाउन ट्रैक पर आने वाली ट्रेनों के लिए तीन बार घंटी बजाई जाती थी.

जैसे ही रेलवे का आधुनिकीकरण शुरू हुआ तो इस घंटी को भी एक रूम में रख दिया गया, लेकिन स्टेशन प्रबंधक वीके पालीवाल के प्रयासों से इस इतिहास को जानने का आम लोगों को मौका मिल रहा है क्योंकि अब इस घंटी को बैतूल स्टेशन के एक नंबर प्लेटफॉर्म पर लगा दिया गया है, ताकि लोग इसके बारे में जान सकें.

दरअसल, बैतूल रेलवे स्टेशन को ब्रिटिश हुकूमत के समय ग्रेट इंडियन पेनीसुला के नाम से जाना जाता था, जबकि आजादी के बाद इसका नाम सेंट्रल रेलवे में परिवर्तित कर दिया गया. बैतूल स्टेशन इस समय नागपुर मंडल के तहत आता है.

Intro:बैतूल ।। आज हम रेलवे के आधुनिकीकरण से भली भांति वाकिफ है लेकिन रेलवे के इतिहास से भी हमारा वाकिफ होना काफी जरूरी है । इसकी बानगी बैतूल रेलवे स्टेशन पर देखने को मिल रही है यात्रियों को ट्रेन आने के पहले इसकी सूचना देने के लिए जो घंटी ब्रिटिश काल मे उपयोग में लाई जाती थी अब वह पूरे 107 साल बाद बैतूल रेलवे स्टेशन पर नुमाया हो रही है । आम लोग भी जहा इस इतिहास की विषय को जानने के लिए उत्सुक है तो वही रेलवे कर्मचारी भी इस घंटी बेल के विषय मे लोगो को जानकारी देने में फक्र महसूस कर रहे है ।


Body:लकड़ी से बने हुए एक आकर्षक फ्रेम के बीच मे शोभायमान हो रही इस पीतल और कांसे से बनी घंटी का इतिहास जाने तो यह वही घंटी है जो सन 1912 में ट्रेनों के आने और जाने की जानकारी यात्रियों को दिए जाने के लिए सन 1912 में उपयोग में लाई गई । क्योंकि इटारसी, बैतूल और आमला के बीच सन 1912 में पहली बार ट्रैन का संचालन शुरू किया गया था । लगभग 50 सालो तक यह घंटी बैतूल रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को ट्रेनों की सूचना देने के उपयोग में लाई गई । उप ट्रैक पर आने वाली ट्रेन के लिए 4 घंटी तो वही डाउन ट्रैक पर आने वाली ट्रेन के 3 घंटी बजाई जाती थी ।

जैसे ही रेलवे का आधुनिकीकरण शुरू हुआ तो यह घंटी एक रूम में कैद कर दी गई । लेकिन रेलवे स्टेशन प्रबंधक वी के पालीवाल के प्रयासों से इस इतिहास को जानने का आम लोगो को मौका मिला । और जैसे जैसे लोगो को इस प्राचीन धरोहर के विषय मे जानकारी मिल रही हैं वेसे वैसे इस बेल के इतिहास को जानने बैतूल स्टेशन पहुच रहे है ।

दरअसल ब्रिटिश हुकूमत के समय रेलवे का नाम ग्रेट इंडियन पेनीसुला रेलवे के नाम से जाना जाता था और देश की आजादी के बाद इसका नाम सेंट्रल रेलवे में परिवर्तित हो गया । बैतूल स्टेशन इस समय नागपुर मंडल के तहत आता है ।


Conclusion:बाइट -- धर्मेंद्र कुमार ( यात्री )
बाइट -- तरुण कुमार ( रेलकर्मी )
बाइट -- वी के पालीवाल ( स्टेशन मास्टर )
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