बड़वानी। जहां पूरा देश 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. वहीं बड़वानी जिले के धाबा बावरी में करोड़ों की लागत से बना शहीद भीमा नायक का प्रेरणा केंद्र अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है. आज भी भीमा नायक की शहादत के किस्से धाबा बावरी की पहाड़ियों पर गूंजते हैं. लेकिन करोड़ों की लागत से बनाये गये इस प्रेरणा केंद्र पर ताला जड़ दिया गया है.
आजादी की पहली लड़ाई निमाड़ के आदिवासी सपूत भीमा नायक ने लड़ी थी. धाबा बावरी में आज भी अंग्रेजों का सामने करते हुई गोली के साक्ष्य मौजूद हैं. लेकिन सरकार ने शहीद भीमा नायक के प्रेरणा केंद्र को गढ़ी से दूर मुख्य मार्ग पर स्मारक बनवा दिया. जिसके चलते यहां आने वाले लोगों को शहीद भीमा नायक के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती है.हालांकि जल परियोजना, महाविद्यालय का नाम शहीद भीमा नायक के नाम में परिवर्तित कर दिया है, लेकिन चर्चित साहित्यकार डॉ निकुंज का कहना है कि इसे पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए. बता दें कि निमाड़ के रॉबिनहुड के नाम से मशहूर भीमा नायक ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ अपनी छाप छोड़ी थी.
कौन थे भीमा नायक
भीमा नायक एक आदिवासी योद्धा थे. कहा जाता है कि आजादी की जंग में भीमा नायक ने अकेले अपने दम पर अंग्रेजी शासन को हिला दिया था. यहां तक कि अंग्रेज भीमा नायक के नाम से कांपते थे. उन्होंने आदिवासियों को एकुजट किया था. वीर सपूत भीमा नायक के जीवन को लेकर आज भी कई तथ्य अनसुलझे है. आज तक उनके वास्तविक फोटो को लेकर कोई साक्ष्य नहीं मिला है.
जानकारी के मुताबिक, शहीद भीमा नायक का कार्य क्षेत्र बड़वानी रियासत से लेकर महाराष्ट्र के खानदेश तक रहा है.1857 में हुए अंबापानी युद्ध में भीमा की महत्वपूर्ण भूमिका थी. जिसके साक्ष्य आज भी भीमा गढ़ी पर देखे जा सकते है. अंग्रेज जब भीमा को ऐसे नहीं पकड़ पाए तो उन्हें उनके ही किसी करीबी की मुखबिरी पर धोखे से पकड़ा था. उनके योगदान और उनकी शहादत को लेकर कई तरह के शोध हुए हैं.
उसी शोध में एक तथ्य यह भी सामने आया है कि 1857 क्रांति में तात्या टोपे जब निमाड़ आए थे. तो उनकी मुलाकात भीमा नायक से हुई. शोध के मुताबिक कुछ साल पहले भीमा नायक का शहीद प्रमाण-पत्र पहली बार सामने आया था. इसमें ये जिक्र था कि उनकी शहादत 29 दिसंबर 1876 को पोर्ट ब्लेयर में हुई थी.