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गुमनाम हो गया 1857 क्रांति का आदिवासी योद्धा भीमा नायक, सरकार की उपेक्षा से प्रेरणा केंद्र पर लगा ताला - Bhima Nayak the tribal warrior

निमाड़ का रॉबिनहुड भीमा नायक आजादी की लड़ाई के पहला आदिवासी योद्धा. जिसने आदिवासी सेना बना कर अंग्रेजों के दांत किए खट्टे थे लेकिन आज उनका प्रेरणा केंद्र बदहाली के आंसू बहा रहा है.

1857 क्रांति का आदिवासी योद्धा भीमा नायक
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Published : Aug 15, 2019, 1:46 PM IST

बड़वानी। जहां पूरा देश 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. वहीं बड़वानी जिले के धाबा बावरी में करोड़ों की लागत से बना शहीद भीमा नायक का प्रेरणा केंद्र अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है. आज भी भीमा नायक की शहादत के किस्से धाबा बावरी की पहाड़ियों पर गूंजते हैं. लेकिन करोड़ों की लागत से बनाये गये इस प्रेरणा केंद्र पर ताला जड़ दिया गया है.

1857 क्रांति का आदिवासी योद्धा भीमा नायक

आजादी की पहली लड़ाई निमाड़ के आदिवासी सपूत भीमा नायक ने लड़ी थी. धाबा बावरी में आज भी अंग्रेजों का सामने करते हुई गोली के साक्ष्य मौजूद हैं. लेकिन सरकार ने शहीद भीमा नायक के प्रेरणा केंद्र को गढ़ी से दूर मुख्य मार्ग पर स्मारक बनवा दिया. जिसके चलते यहां आने वाले लोगों को शहीद भीमा नायक के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती है.हालांकि जल परियोजना, महाविद्यालय का नाम शहीद भीमा नायक के नाम में परिवर्तित कर दिया है, लेकिन चर्चित साहित्यकार डॉ निकुंज का कहना है कि इसे पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए. बता दें कि निमाड़ के रॉबिनहुड के नाम से मशहूर भीमा नायक ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ अपनी छाप छोड़ी थी.

कौन थे भीमा नायक
भीमा नायक एक आदिवासी योद्धा थे. कहा जाता है कि आजादी की जंग में भीमा नायक ने अकेले अपने दम पर अंग्रेजी शासन को हिला दिया था. यहां तक कि अंग्रेज भीमा नायक के नाम से कांपते थे. उन्होंने आदिवासियों को एकुजट किया था. वीर सपूत भीमा नायक के जीवन को लेकर आज भी कई तथ्य अनसुलझे है. आज तक उनके वास्तविक फोटो को लेकर कोई साक्ष्य नहीं मिला है.

जानकारी के मुताबिक, शहीद भीमा नायक का कार्य क्षेत्र बड़वानी रियासत से लेकर महाराष्ट्र के खानदेश तक रहा है.1857 में हुए अंबापानी युद्ध में भीमा की महत्वपूर्ण भूमिका थी. जिसके साक्ष्य आज भी भीमा गढ़ी पर देखे जा सकते है. अंग्रेज जब भीमा को ऐसे नहीं पकड़ पाए तो उन्हें उनके ही किसी करीबी की मुखबिरी पर धोखे से पकड़ा था. उनके योगदान और उनकी शहादत को लेकर कई तरह के शोध हुए हैं.

उसी शोध में एक तथ्य यह भी सामने आया है कि 1857 क्रांति में तात्या टोपे जब निमाड़ आए थे. तो उनकी मुलाकात भीमा नायक से हुई. शोध के मुताबिक कुछ साल पहले भीमा नायक का शहीद प्रमाण-पत्र पहली बार सामने आया था. इसमें ये जिक्र था कि उनकी शहादत 29 दिसंबर 1876 को पोर्ट ब्लेयर में हुई थी.

बड़वानी। जहां पूरा देश 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. वहीं बड़वानी जिले के धाबा बावरी में करोड़ों की लागत से बना शहीद भीमा नायक का प्रेरणा केंद्र अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है. आज भी भीमा नायक की शहादत के किस्से धाबा बावरी की पहाड़ियों पर गूंजते हैं. लेकिन करोड़ों की लागत से बनाये गये इस प्रेरणा केंद्र पर ताला जड़ दिया गया है.

1857 क्रांति का आदिवासी योद्धा भीमा नायक

आजादी की पहली लड़ाई निमाड़ के आदिवासी सपूत भीमा नायक ने लड़ी थी. धाबा बावरी में आज भी अंग्रेजों का सामने करते हुई गोली के साक्ष्य मौजूद हैं. लेकिन सरकार ने शहीद भीमा नायक के प्रेरणा केंद्र को गढ़ी से दूर मुख्य मार्ग पर स्मारक बनवा दिया. जिसके चलते यहां आने वाले लोगों को शहीद भीमा नायक के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती है.हालांकि जल परियोजना, महाविद्यालय का नाम शहीद भीमा नायक के नाम में परिवर्तित कर दिया है, लेकिन चर्चित साहित्यकार डॉ निकुंज का कहना है कि इसे पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए. बता दें कि निमाड़ के रॉबिनहुड के नाम से मशहूर भीमा नायक ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ अपनी छाप छोड़ी थी.

कौन थे भीमा नायक
भीमा नायक एक आदिवासी योद्धा थे. कहा जाता है कि आजादी की जंग में भीमा नायक ने अकेले अपने दम पर अंग्रेजी शासन को हिला दिया था. यहां तक कि अंग्रेज भीमा नायक के नाम से कांपते थे. उन्होंने आदिवासियों को एकुजट किया था. वीर सपूत भीमा नायक के जीवन को लेकर आज भी कई तथ्य अनसुलझे है. आज तक उनके वास्तविक फोटो को लेकर कोई साक्ष्य नहीं मिला है.

जानकारी के मुताबिक, शहीद भीमा नायक का कार्य क्षेत्र बड़वानी रियासत से लेकर महाराष्ट्र के खानदेश तक रहा है.1857 में हुए अंबापानी युद्ध में भीमा की महत्वपूर्ण भूमिका थी. जिसके साक्ष्य आज भी भीमा गढ़ी पर देखे जा सकते है. अंग्रेज जब भीमा को ऐसे नहीं पकड़ पाए तो उन्हें उनके ही किसी करीबी की मुखबिरी पर धोखे से पकड़ा था. उनके योगदान और उनकी शहादत को लेकर कई तरह के शोध हुए हैं.

उसी शोध में एक तथ्य यह भी सामने आया है कि 1857 क्रांति में तात्या टोपे जब निमाड़ आए थे. तो उनकी मुलाकात भीमा नायक से हुई. शोध के मुताबिक कुछ साल पहले भीमा नायक का शहीद प्रमाण-पत्र पहली बार सामने आया था. इसमें ये जिक्र था कि उनकी शहादत 29 दिसंबर 1876 को पोर्ट ब्लेयर में हुई थी.

Intro:पूरा देश आजादी के तराने के बीच देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले देश के जांबाज नायकों को याद कर उनकी शहादत के किस्से सुना रहा है वही बड़वानी जिले के धाबा बावड़ी पर बना शहीद भीमा नायक की गढ़ी और करोड़ो की लागत से बना प्रेरणा केन्र्द अपनी बदहाली पर एकांत में आंसू बहा रहा है। Body:आज भी जहाँ आजादी की पहली लड़ाई निमाड के इस सपूत ने लड़ी थी वहां अंग्रेजो से आमने सामने हुई गोली बारी के साक्ष्य मौजूद है किंतु सरकार ने इसे संरक्षित करने की बजाए गढ़ी से दूर मुख्य मार्ग पर स्मारक बनवा दिया, जिसके चलते यहां आने वाले भीमा नायक के इतिहास से वंचित रह जाते है इसके अलावा जल परियोजना, महाविद्यालय का नाम शहीद भीमा नायक के नाम में परिवर्तित कर दिया है लेकिन चर्चित साहित्यकार डॉ निकुंज का कहना है कि इसे पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए।बता दे कि निमाड़ के रॉबिनहुड के नाम से मशहूर भीमा नायक 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ अपनी छाप छोड़ी थी। भीमा नायक एक आदिवासी योद्धा थे, कहा जाता है कि आजादी की जंग में भीमा नायक ने अकेले अपने बूते अंग्रेजी शासन की चूलें हिला दी थीं। अंग्रेज भीमा नायक के नाम से कांपते थे. उन्होंने आदिवासियों को एकुजट किया था। भीमा नायक के जीवन को लेकर अब भी कई तथ्य अबूझ ही हैं, जैसे कि भीमा नायक के वास्तविक फोटो को लेकर भी अब तक कोई साक्ष्य नहीं है, मौजूद फोटो या स्कैच काल्पनिक हैं।
शोधों के अनुसार भीमा नायक का कार्य क्षेत्र बड़वानी रियासत से वर्तमान महाराष्ट्र के खानदेश तक रहा है। 1857 में हुए अंबापानी युद्ध में भीमा की महत्वपूर्ण भूमिका थी जिसके साक्ष्य आज भी भीमा गढ़ी पर देखे जा सकते है । अंग्रेज जब भीमा को ऐसे नहीं पकड़ पाए तो उन्हें उनके ही किसी करीबी की मुखबिरी पर धोखे से पकड़ा गया था. उनके योगदान और मौत को लेकर कई तरह के शोध हुए हैं ।
उसी शोध में एक तथ्य यह भी सामने आया है कि 1857 क्रांति में तात्या टोपे जब निमाड़ आए थे तो उनकी मुलाकात भीमा नायक से हुई थी. एक अन्य शोध के अनुसार कुछ साल पहले भीमा नायक का मृत्यु प्रमाण-पत्र पहली बार सामने आया था. इसमें ये जिक्र था कि उनकी मौत 29 दिसंबर 1876 को पोर्ट ब्लेयर में हुई थी।
पीटीसी-रवि चौधरी
बाइट01-डॉ निकुंज वर्मा-साहित्यकार

Conclusion:स्पेशल 15 अगस्त
आजादी की लड़ाई में आदिवासी जननायक जिसे निमाड़ का रॉबिनहुड भी कहा जाता है, उसने अंग्रेजो को जमकर छकाया था, आज भी भीमा नायक की शहादत के किस्से धाबा बावड़ी की पहाड़ियों पर गूंजते है। इसके विपरीत सरकार ने करोड़ों की लागत से प्रेरणा केंद्र बना कर इतिश्री कर ली जहा ताला लगा रहता है वही गढ़ी भी उपेक्षा का शिकार है।
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