बालाघाट। आपने आज तक स्कूल जाने वाले छात्रों को साइकिल, मोटरसाइकिल या चार पहिया वाहन से स्कूल जाते देखा या सुना होगा लेकिन, आज हम ऐसे छात्र से मिलवाने जा रहें हैं, जिसने राजा महाराजा की तरह घुड़सवारी या कहें कि 'शाही सवारी' को अपने स्कूल आने-जाने का साधन बनाया है. जी हां हम बात कर रहे हैं बालाघाट जिले के आदिवासी अंचल ग्राम खैरलांजी के कक्षा छठवीं का छात्र ललित कुमार कड़ोपे की, (Balaghat Student Lalit Kumar) जो स्कूल आने-जाने के लिए दुपहिया या चार पहिया वाहन का नहीं बल्कि घोड़े का उपयोग करते हैं.
कठिनाई को यूं बनाया सुगम: गरीब परिवार का ललित शासकीय माध्यमिक शाला खैरलांजी में कक्षा छठवीं का छात्र है और वह अपने नाना-नानी के घर रह कर पढ़ाई कर रहा है. ननिहाल से स्कूल की दूरी 4 किलोमीटर पड़ती है, रास्ते में सड़क भी नहीं है, लेकिन पढ़ाई करने के लिए हर दिन 4 किलोमीटर जाना और वापस आना छात्र ललित के लिए कठिनाइयों भरा सफर होता था. छात्र में पढ़ाई करने और आगे बढ़ने की ललक के कारण वह इस कठिनाई को सुगम बनाना चाहता था, वहीं ननिहाल में घोड़ा भी था, तो ललित ने घोड़े को स्कूल आने-जाने के लिए अपना वाहन बना लिया.
घोड़े पर स्कूल जाते देख लोग चकित: ललित हर दिन अपने घोड़े पर सवार होकर बड़ी शान से स्कूल जाता है, पढ़ाई के दौरान स्कूल के पास के मैदान में वह घोड़े को बांध देता है, इस दौरान घोड़ा मैदान में चरते रहता है. इसके बाद जब ललित के स्कूल की छुट्टी होती है तो वह वापस घोड़े पर सवार होकर अपने घर के लिए चल देता है. आज के इस आधुनिक युग में किसी छात्र को घोड़े पर सवार होकर स्कूल जाते देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं है. जब भी कोई व्यक्ति ललित को घोड़े पर स्कूल जाते देखता है तो वह भी चकित हो जाता है.
ललित की लगन प्रेरणादायक: बालाघाट से ईटीवी संवाददाता ने घोड़े पर सवार होकर स्कूल जा रहे छात्र ललित से मुलाकात की और उससे चर्चा कर ललित से घोड़े पर स्कूल जाने का कारण पूछा तो ललित ने बिना किसी हिचक के बताया कि, "पढ़ना है तो कुछ करना ही पड़ेगा. इसी धुन के कारण मैंने घोड़े को स्कूल आने-जाने के लिए अपना वाहन बना लिया, घोड़े की सवारी कर स्कूल आने जाने का कुछ अलग ही आनंद है." ललित को देखकर तो यही लगता है कि अभावों के बीच भी खुशियां तलाशी जा सकती है, फिलहाल ललित की यह लगन दूरस्थ क्षेत्रों के अन्य छात्रों के लिए भी प्रेरणादायक है.
पढ़ाई का जुनून: बस या साइकिल से नहीं रोज घोड़े पर सवार होकर स्कूल जाता है ये बच्चा
बालक के जज्बे को सलाम: आदिवासी वनांचल क्षेत्र का यह नन्हा बालक उनके लिए प्रेरणा है जो छोटी सी मुस्किलों से हार मानकर या तो अपना इरादा बदल लेते है, या फिर हार मानकर बैठ जाते हैं. आदिवासी वनांचल क्षेत्र के बालक ललित ने संसाधनों के अभाव के बावजूद तमाम चुनोतियों को स्वीकारते हुए अपने कर्म पथ की ओर अग्रसर हो चला, निश्चित तौर पर इस नन्हे बालक के जज्बे को सलाम है.