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आखिर क्यों जागेश्वरी मंदिर में दिखता है माता का सिर्फ मुख, जानें क्या है इस मंदिर का इतिहास - जागेश्वरी मंदिर

इतिहास की नगरी चंदेरी का वह मंदिर जहां राजा कीर्तिपाल की एक गलती के चलते देवी का केवल मुख प्रगट हो पाया था. जहां मंदिर की पहाडी से पानी का झरना हमेशा बहता रहता है.

जागेश्वरी का इतिहास
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Published : Sep 29, 2019, 12:28 AM IST

अशोकनगर। इतिहासों की नगरी चंदेरी में एक प्राचीन मंदिर स्थित है जो की मां जागेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर को चंदेरी के राजा कीर्तिपाल ने बनवाया था. यह मंदिर कीर्ति दुर्ग किले के पास स्थित है.
मंदिर में माता जागेश्वरी जी की प्रतिमा है जो की घने जंगलों के बीच एक खुली गुफा में स्थित है तथा मंदिर में एक शिवलिंग भी है, जिसमे अंदर 1100 छोटे शिवलिंग स्थापित है. मंदिर पर पहुंचने के दो रास्ते है, पहला रास्ता किले के मार्ग से होते हुए सीधे मंदिर तक जाता है और दूसरा रास्ता किले के पास स्थित सीढ़ियों से सीधे नीचे मंदिर तक पहुंचता है.

मंदिर का इतिहास
चंदेरी के शाशक राजा कीर्तिपाल जो कोढ़ की बीमारी से पीड़ित थे. एक बार राजा जब जंगल में शिकार को जा रहे थे, तब उन्हें एक तलाब दिखा जिसमे उन्होंने जाके स्नान किया. स्नान करते ही राजा कीर्तिपाल का कुष्ट रोग ठीक हो गया. जिस तालाब में राजा ने स्नान किया था उसका नाम परमेश्वर तालाब है. राजा कीर्तिपाल का रोग ठीक होते ही राजा भगवान का धन्यवाद करने लगे. उसी समय वहां एक देवी जी प्रकट हुई और वह बोली वो उनका एक मंदिर बनवाएं जहाँ राजा शिशुपाल यज्ञ करते थे.

जागेश्वरी का इतिहास

देनी ने राजा से कहा था कि मंदिर बनने के बाद 15 दिन पट न खोले जाएं पर राजा ने मंदिर बनते ही पट तीसरे ही दिन खुलवा दिए, तब उन्होंने पाया की केवल देवी जी का मुख ही प्रकट हो पाया था पूरी मूर्ति नहीं. तभी से मा जागेश्वरी देवी के नाम पर मेला प्रारम्भ किया गया जो की 15 दिन तक बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है.

यह मंदिर काफी ऊंची पहाड़ी पर स्थित है फिर भी मंदिर की पहाडी से पानी का झरना हमेशा बहता रहता है. मंदिर के पुजारी बताते है कि जब गर्मियों में चंदेरी शहर में पानी की किल्लत पड़ती है, तब शहरवासी यही से पानी भरकर ले जाते है.

अशोकनगर। इतिहासों की नगरी चंदेरी में एक प्राचीन मंदिर स्थित है जो की मां जागेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर को चंदेरी के राजा कीर्तिपाल ने बनवाया था. यह मंदिर कीर्ति दुर्ग किले के पास स्थित है.
मंदिर में माता जागेश्वरी जी की प्रतिमा है जो की घने जंगलों के बीच एक खुली गुफा में स्थित है तथा मंदिर में एक शिवलिंग भी है, जिसमे अंदर 1100 छोटे शिवलिंग स्थापित है. मंदिर पर पहुंचने के दो रास्ते है, पहला रास्ता किले के मार्ग से होते हुए सीधे मंदिर तक जाता है और दूसरा रास्ता किले के पास स्थित सीढ़ियों से सीधे नीचे मंदिर तक पहुंचता है.

मंदिर का इतिहास
चंदेरी के शाशक राजा कीर्तिपाल जो कोढ़ की बीमारी से पीड़ित थे. एक बार राजा जब जंगल में शिकार को जा रहे थे, तब उन्हें एक तलाब दिखा जिसमे उन्होंने जाके स्नान किया. स्नान करते ही राजा कीर्तिपाल का कुष्ट रोग ठीक हो गया. जिस तालाब में राजा ने स्नान किया था उसका नाम परमेश्वर तालाब है. राजा कीर्तिपाल का रोग ठीक होते ही राजा भगवान का धन्यवाद करने लगे. उसी समय वहां एक देवी जी प्रकट हुई और वह बोली वो उनका एक मंदिर बनवाएं जहाँ राजा शिशुपाल यज्ञ करते थे.

जागेश्वरी का इतिहास

देनी ने राजा से कहा था कि मंदिर बनने के बाद 15 दिन पट न खोले जाएं पर राजा ने मंदिर बनते ही पट तीसरे ही दिन खुलवा दिए, तब उन्होंने पाया की केवल देवी जी का मुख ही प्रकट हो पाया था पूरी मूर्ति नहीं. तभी से मा जागेश्वरी देवी के नाम पर मेला प्रारम्भ किया गया जो की 15 दिन तक बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है.

यह मंदिर काफी ऊंची पहाड़ी पर स्थित है फिर भी मंदिर की पहाडी से पानी का झरना हमेशा बहता रहता है. मंदिर के पुजारी बताते है कि जब गर्मियों में चंदेरी शहर में पानी की किल्लत पड़ती है, तब शहरवासी यही से पानी भरकर ले जाते है.

Intro:अशोकनगर.चंदेरी एक इतिहासों की नगरी है जो की मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में स्थित है. पूरा चंदेरी शहर तालाब, घने जंगल और खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ है. और इसके अलावा आपको बुंदेला और मालवा राजपूतों के  ऐतिहासिक स्मारक और अनगिनत इतिहास जानने को भी यहाँ मिलेंगे.
चंदेरी शहर में एक प्राचीन देवी का मंदिर स्थित है जो की माँ जागेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर  को चंदेरी के राजा कीर्तिपाल ने बनवाया था. यह मंदिर कीर्ति दुर्ग किले के पास स्थित है,इस मंदिर पर पहुंचने के दो रास्ते है, पहला रास्ता किले के सड़क मार्ग से होते हुए सीधे मंदिर तक जाता है , दूसरा रास्ता किले के पास स्थित सीढ़ियों से सीधे नीचे मंदिर तक पहुँचता है. Body:मंदिर में माता जागेश्वरी जी की प्रतिमा है जो की एक खुली गुफा में स्थित है तथा मंदिर में आपको एक शिवलिंग मिलेगा. जिसमे आपको 1100 छोटे प्रकार के शिवलिंग स्थापित है. जागेश्वरी मंदिर का वातावरण एक घने जंगल की तरह है जहाँ आपको प्राकतिक झरने, मीठी-मीठी पक्षियों की आवाज़ और बन्दर देखने को भी मिलेंगे.
जागेश्वरी माता मंदिर एक ऐतिहासिक माता मंदिर है, जिसके पीछे बहुत सारा इतिहास जुड़ा हुआ है तो आइये पढ़ते इस मंदिर के इतिहास के बारे में-
मंदिर का इतिहास:-
अगर हम चंदेरी के इतिहास के बारे में बात करे तो यह पता चलता है कि चंदेरी के शाशक राजा कीर्तिपाल थे.और ऐसा कहा गया है कि वे कोढ़ की बीमारी से पीड़ित थे. एक बार राजा जब जंगल में शिकार को जा रहे थे, तब उन्हें एक तलाब दिखा जिसमे उन्होंने जाके स्नान किया , स्नान करते ही  राजा कीर्तिपाल का  कुष्ट रोग ठीक हो गया. जिस तालाब में राजा ने स्नान किया था उसका नाम परमेश्वर तालाब है. राजा कीर्तिपाल का रोग ठीक होते ही राजा भगवान् का धन्यवाद् करने लगे.उसी समय वहां एक देवी जी प्रकट हुई और वह बोली वो उनका एक मंदिर बनवाएं जहाँ राजा शिशुपाल यज्ञ करते थे. तथा उसके पट 15 दिन तक नहीं खोले , परन्तु राजा जी ने मंदिर बनते ही पट तीसरे ही दिन खुलवा दिए, तब उन्होंने पाया की केवल देवी जी  का मुख ही प्रकट हो पाया था पूरी मूर्ति नहीं.तभी से माँ जागेश्वरी देवी के नाम पर मेला प्रारम्भ किया गया जो की 15 दिन तक बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है । कुछ वर्षों पहले पशु धन का क्रय विक्रिया किया जाता थ. इसीलिए इसे पशु मेले के नाम से भी जाना जाता है । यह मेला गणगौर पर्व में आयोजित किया जाता है तथा यह मेला नवरात्री पर्व की शुरुवात भी माना जाता है . यह मेले में राई नृत्य, गणगौर नृत्य, बुंदेलखंडी लोक गीत तथा अन्य लोग कला कृतियाँ के प्रदर्शन भी दिखाई देते है ।
Conclusion:यह मंदिर काफी ऊंची पहाड़ी पर स्थित है,ओर मौसम कोई सा भी हो,लेकिन इस मंदिर की पहाड़ी से पानी झरने के रूप में टपकता ही रहता है.मंदिर के पुजारी बताते है कि जब गर्मियों में चंदेरी सहर में पानी की किल्लत पड़ती थी,तब सहरवासी यही से पानी भरकर ले जाते थे,इन सभी झरनों से बहते पानी का स्वाद अलग-अलग है.
बाइट- जागेश्वरी माता मंदिर, पुजारी
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