उज्जैन। महाकाल मंदिर की महिमा का इतिहास बहुत पुराना है, कहा तो यहां तक जाता है कि इस महामंदिर की स्थापना द्वापर युग से पहले की गई थी. इतना ही नहीं भारतवर्ष में विभिन्न दिशाओं में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंग में एक, महाकाल मंदिर का इतिहास मुगल काल से लेकर अब तक कई बार टूटने संवरने की कहानी बयां करता है. भले ही कई बार मंदिर टूटा और बना हो, लेकिन भक्तों की आस्था में कभी कमी नहीं आई. साथ ही हर बार जीर्णोंद्धार के साथ उनका रूप और भव्य होता गया. आइए जानते हैं महाकाल की महाकथा. (mahakal became more grand)
अकेला दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंगः देशभर के 12 ज्योतिर्लिंग में एक अकेला उज्जैन का महाकाल मंदिर है जो दक्षिणमुखी है, पुराने मंदिर और अब के मंदिर में जमीन-आसमान का अंतर है. मुगलशासन यानी 11वीं सदी में गजनी के सेनापति और 13वीं सदी में दिल्ली के शासक इल्तुमिश ने पूरी तरह से इस मंदिर को ध्वस्त करा दिया था, इसके बाद महाकाल की महिमा से कई भारतीय राजाओं ने इसका दोबारा और पहले से ज्यादा सुंदर निर्माण करवाया. अब 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार के प्रयासों से त्रिपुरारी के इस महामंदिर का पूरी तरह कायाकल्प हो गया है, इसकी औलोकिक छटा और भव्यता इतनी दिव्य हो गई है कि देखने वालों की उसपर से नजर नहीं हटती. पीएम मोदी ने अब महाकाल लोक को काफी बड़ा कर दिया है, अब मंदिर 2.8 हेक्टेयर से बढ़कर 47 हेक्टेयर में फैल चुका है. यह काशी के कॉरीडोर से करीब 9 गुना बड़ा है, मंगलवार को पीएम मोदी इस महाकाल लोक का लोकार्पण करने के साथ उसे देश को समर्पित करेंगे. (mahakal became more grand with every destruction)
कब-कब हुआ महाकाल मंदिर का जीर्णोंद्धारः पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार इस मंदिर को मुगलों ने कई बार ध्वस्त करने का प्रयास किया, लेकिन हर बार महाकाल का नया और उससे भव्य रूप उभर कर सामने आया. जब-जब मंदिर पर मुस्लिम शासकों ने हमला कर तोड़ा, तब-तब कई राजाओं ने आगे आकर इसका दोबारा निर्माण करवाया. पौराणिक कथाओं के अनुसार महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर युग से पहले की गई थी. कहते हैं जब भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन में शिक्षा प्राप्त करने आए, तो उन्होंने महाकाल स्त्रोत का गान किया था और यहीं से गोस्वामी तुलसीदास ने महाकाल मंदिर का उल्लेख किया. (rajabhoj had renovated mahakal temple)
राजा भोज ने करवाया था भव्य निर्माणः सातवीं शताब्दी के बाण भट्ट की कादंबिनी में महाकाल मंदिर का विस्तार से वर्णन मिलता है. 11वीं शताब्दी में राजा भोज ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया, इनमें महाकाल मंदिर भी शामिल हैं. उन्होंने महाकाल मंदिर के शिखर को और ऊंचा करवाया था. छठी शताब्दी में बुद्धकालीन राजा चंद्रप्रद्योत के समय महाकाल उत्सव हुआ था, इसका आशय उस दौरान भी महाकाल उत्सव मनाया गया था. इसका उल्लेख बाण भट्ट ने अपने शिलालेख में किया था.
महाकाल मंदिर पर कब-कब हुआ आक्रमणः इतिहास के पन्नों में देखेंगे तो उज्जैन में 1107 से 1728 ई. तक यमनों का शासन था, इनके शासनकाल में 4500 वर्षों की हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं-मान्यताओं को खंडित और नष्ट करने का प्रयास किया गया. 11वीं शताब्दी में गजनी के सेनापति ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया था, इसके बाद सन् 1234 में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर पर हमला कर यहां मार-काट भी थी. उसने मंदिर भी नष्ट किया था, मुस्लिम इतिहासकारों ने स्वयं इसका उल्लेख अपनी किताब में किया है. धार के राजा देपालदेव हमला रोकने निकले, लेकिन वे उज्जैन पहुंचते, इससे पहले ही इल्तुतमिश ने मंदिर तोड़ दिया. इसके बाद देपालदेव ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया. (When was attack on the Mahakal temple)
राजा सिंधिया गुस्से से तिलमिला उठे थेः मराठा राजाओं ने मालवा पर आक्रमण कर 22 नवंबर 1728 में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था. इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौट आया. 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही. मराठों के शासनकाल में उज्जैन में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, इनमें पहली- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पुनः प्रतिष्ठित किया गया. और दूसरी- शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ पर्व कुंभ शुरू हुआ. मंदिर का पुनर्निर्माण ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने कराया था. बाद में उन्हीं की प्रेरणा पर यहां सिंहस्थ समागम की दोबारा शुरुआत कराई गई. (King Scindia was trembling with anger)
500 साल तक भग्नावशेषों में पूजे गए महाकालः इतिहासकारों के मुताबिक, महाकाल के ज्योतिर्लिंग को करीब 500 साल तक मंदिर के भग्नावशेषों में ही पूजा जाता था, मराठा साम्राज्य विस्तार के लिए निकले ग्वालियर-मालवा के तत्कालीन सूबेदार और सिंधिया राजवंश के संस्थापक राणोजी सिंधिया ने जब बंगाल विजय के रास्ते में उज्जैन में पड़ाव किया, तो महाकाल मंदिर की दुर्दशा देख गुस्से से तिलमिला उठे थे. उन्होंने यहां अपने अधिकारियों और उज्जैन के कारोबारियों को आदेश दिया कि बंगाल विजय से लौटने तक महाकाल महाराज के लिए भव्य मंदिर बन जाना चाहिए. राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपनी आत्मकथा ‘राजपथ से लोकपथ पर’ में लिखा है कि राणोजी अपना संकल्प पूरा कर जब वापस उज्जैन पहुंचे, तो नवनिर्मित मंदिर में उन्होंने महाकाल की पूजा अर्चना की. इसके बाद राणो जी ने ही 500 साल से बंद सिंहस्थ आयोजन को भी दोबारा शुरू कराया.(Mahakal worshiped in ruins for 500 years)
जलसमाधि में 500 साल तक रहे महाराजाधिराज महाकालः भारतीय इतिहास के उस अंधेरे युग में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण के दौरान एक बार फिर महाकाल मंदिर को ध्वस्त कर दिया था, उस वक्त पुजारियों ने महाकाल ज्योतिर्लिंग को कुंड में छिपा दिया था. इसके बाद औरंगजेब ने मंदिर के भग्नावशेषों पर मस्जिद बनवा दी थी. मंदिर के पुनर्निर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुन: प्राणप्रतिष्ठा कराने से पहले राणोजी सिंधिया ने उस मस्जिद को ध्वस्त करा दिया था. बंगाल विजय और महाकाल मंदिर की पुनर्प्रतिष्ठा व सिंहस्थ का आयोजन दोबारा शुरू कराने के बाद एक विजय यात्रा से लौटते वक्त राणोजी की मृत्यु शुजालपुर में हो गई थी, उनकी वहीं समाधि बना दी गई. समाधि पर उनकी कीर्तिगाथा भी मराठी में उकेरी गई है. राणोजी सिंधिया की समाधि आज भी शुजालपुर में मौजूद है. (Maharajadhiraj Mahakal lived for 500 years in Jal Samadhi)